2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Legislative Assembly Election) में गुर्जर समुदाय (Gujjar community) से आठ विधायक चुने गए थे। इनमें से एक भी भाजपा (BJP) से नहीं थे। इस साल के अंत में राजस्थान (Rajasthan) में विधानसभा के चुनाव हैं। राज्य में कांग्रेस (Congress) की सरकार है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को बदलाव की उम्मीद है।
शनिवार को पीएम मोदी ने भीलवाड़ा (Bhilwara) में गुर्जर समाज के लोक देवता भगवान देवनारायण के जन्मोत्सव समारोह में हिस्सा लिया और सभा को भी संबोधित किया। अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, “भगवान देवनारायण ने जो रास्ता दिखाया है, वह ‘सबका साथ’ से ‘सबका विकास’ का है; आज देश इसी रास्ते पर चल रहा है।”
पीएम ने कमल के साथ गुर्जर समाज के लोक देवता के जुड़ाव को रेखांकित करते हुए कहा, “कलम पर अवतरित होने वाले भगवान देवनारायण के 1111वें अवतरण वर्ष में भारत ने जी-20 की अध्यक्षता संभाली है। G-20 के लोगो में भी कमल को दर्शाया गया है। हम वो लोग हैं जो जन्म से कमल के साथ हैं। इसलिए हमारा संबंध काफी गहरा है।”
भाजपा में एक भी गुर्जर विधायक नहीं
2018 में चुने गए समुदाय के आठ विधायकों में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, मौजूदा मंत्री शकुंतला रावत और अशोक चांदना के साथ-साथ गजराज खटाना, इंद्राज गुर्जर, जितेंद्र सिंह, बिधूड़ी राजेंद्र सिंह और जोगिंदर सिंह अवाना का नाम शामिल है। अवाना को छोड़कर सभी गुर्जर नेता कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने हैं। अवाना बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। हालांकि 2019 अवाना राज्य के छह बसपा विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। गुर्जर नेताओं में सबसे ऊंचे कद पायलट का है।
भाजपा की बात करें तो, कम से कम डेढ़ दशक से भारतीय जनता पार्टी का समुदाय के साथ एक असहज समीकरण रहा है। 2007-2008 के बीच गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में 70 से अधिक लोग मारे गए थे। उस वक्त राज्य में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार थी।
गुर्जर आंदोलन के मुख्य सूत्रधार किरोड़ी सिंह बैंसला का 2022 में निधन हो गया। उनके बेटे विजय बैंसला ने कमान संभालने का प्रयास किया है, लेकिन अब तक उन्हें बहुत कम सफलता मिली है।
भाजपा को गुर्जर चेहरे की तलाश
विजय को भाजपा का करीबी माना जाता है। लेकिन विजय से समुदाय का एक वर्ग नाराज है। उन पर “गुर्जरों को शहीद करने वाली” पार्टी के साथ होने का आरोप है। बैंसला ने विभिन्न मुद्दों पर समुदाय को एकजुट करने का प्रयास किया है लेकिन विफल रहे। ऐसे में भाजपा के पास कोई गुर्जर चेहरा नहीं है, जो समुदाय का वोट ला सके। इस बीच केंद्रीय नेतृत्व और राजे के बीच संबंध खराब हुए हैं।
दूसरी तरफ समुदाय का एक वर्ग सीएम अशोक गहलोत से नाराज है। समुदाय का आरोप है कि गहलोत पायलट को सीएम की कुर्सी पर बैठने से रोकने रहे हैं। विधानसभा चुनाव से पहले के घटनाक्रमों के आधार पर समुदाय का कांग्रेस के प्रति असंतोष बढ़ सकता है। अगर दोनों नेताओं के बीच खाई चौड़ी हुई तो बीजेपी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी।
दोनों पार्टियां कर रहीं गुर्जर समुदाय को लुभाने का प्रयास
इस बीच सीएम ने देवनारायण जयंती मनाने के लिए शनिवार को राजकीय अवकाश की घोषणा की है। गुर्जर आंदोलन के बाद सबसे पहले देवनारायण बोर्ड का गठन किया गया था और वर्तमान में इसका नेतृत्व अवाना कर रहे हैं। रावत, चांदना और अन्य गुर्जर नेताओं ने पहले गहलोत को पत्र लिखकर इस दिन को अवकाश घोषित करने की मांग की थी। गुर्जर नेताओं के गैर-पायलट खेमे के माध्यम से सीएम ने यह भी दर्शाने का प्रयास किया है कि उनके और समुदाय के बीच सब ठीक है।
एक महीने पहले सीएम ने भरतपुर जिले के नदबई में एक कार्यक्रम भी किया था, जहाँ उन्होंने 95 करोड़ रुपये की 13 परियोजनाओं का उद्घाटन किया और 333 करोड़ रुपये की 11 परियोजनाओं का शिलान्यास किया।
प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में उपस्थित नहीं रहने वाली राजे ने भी पीछे नहीं हैं, उन्होंने शनिवार को बताया कि उनकी सरकार के तहत 2018 में “भगवान देवनारायण जी का एक भव्य चित्रमाला मालासेरी में भगवान के जन्मस्थान पर बनाया गया था”।
उन्होंने आगे कहा, “मुझे खुशी है कि करीब 4.5 करोड़ रुपये की लागत से बना यह पैनोरमा लोगों के जेहन में उनकी चिरस्थाई यादों को हमेशा बनाए रखेगा।”
गुर्जर समुदाय की मांग?
जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं राजनीतिक दलों का गुर्जर समुदाय के प्रति झुकाव बढ़ सकता है। कांग्रेस के पूर्व विधायक धीरज गुर्जर ने मोदी पर उनके कार्यक्रम को लेकर निशाना साधते हुए कहा, “देश के लाखों गुर्जर भाई उम्मीद कर रहे थे कि आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की हमारी मांग पर मुहर लगेगी और एक गुर्जर रेजीमेंट घोषणा की जाएगी, लेकिन हुआ कुछ नहीं। बस एक चुनावी सभा हुई और समुदाय फिर से खाली हाथ रह गया।”