इतिहास का अध्ययन राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भारत और पाकिस्तान जैसे नव-स्थापित और उत्तर-औपनिवेशिक देशों के लिए विशेष रूप से सच है। दोनों देशों का एक साझा अतीत है।
धर्म के आधार पर एक हिंसक विभाजन से पैदा हुए इन दोनों देशों में इतिहास की समझ विपरीत अर्थों में विकसित हुई। दिलचस्प है कि दोनों देशों में मुगल वंश के दो सबसे बड़े शासकों – अकबर और औरंगज़ेब के विपरीत चरित्र-चित्रण मिलते हैं।
भारतीय पाठ्यपुस्तकों और लोगों के बीच प्रचलित कहानियों में अकबर अक्सर एक न्यायप्रिय और सहिष्णु नेता के रूप में चित्रित किए जाते रहे हैं। उन्हें एक ऐसे मुस्लिम शासक के रूप में जाना जाता है, जिसने देश और लोगों को धार्मिक विश्वास से ऊपर रखा। वहीं अकबर के पोते औरंगजेब को मुगल साम्राज्य के पतन के उत्प्रेरक के रूप में चित्रित किया जाता है। साथ ही एक धर्मांध और ऐसा कट्टर मुस्लिम शासक माना जाता है, जो हिंदुओं से नफरत करता था।
औरंगज़ेब: धर्मांध पुरातनपंथी बनाम आदर्श मुस्लिम
भारत में औरंगज़ेब की छवि धार्मिक उन्माद से भरे कट्टरपंथी बादशाह की है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में औरंगज़ेब को एक धर्मांध और पुरातनपंथी शख़्स के रूप में पेश किया है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी औरंगजेब की आततायी सोच वाला मानते हैं।
सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, “…उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बड़ी उम्मीद गुरु तेगबहादुर जी के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी सोच के सामने उस समय गुरु तेगबहादुर जी, ‘हिन्द दी चादर’ बनकर, एक चट्टान बनकर खड़े हो गए थे।”
दूसरी तरफ पाकिस्तान में औरंगज़ेब को एक आदर्श मुस्लिम शासक के रूप में पूजा जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी आस्था को सबसे ऊपर रखा। पाकिस्तान में उनके सैन्यवाद, इस्लाम के प्रति व्यक्तिगत सम्मान और साम्राज्य के सामाजिक ताने-बाने के भीतर इस्लामी नैतिकता को बढ़ावा देने के लिए तारीफ की जाती है।
‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ लिखने वाले अल्लामा इकबाल ने सबसे पहले टू नेशन थ्योरी दी थी। भारत से अलग एक मुस्लिम राष्ट्र हो सकता है, यह मौलिक विचार अल्लामा इकबाल का ही था। कवि, राजनेता और दार्शनिक अल्लामा इकबाल औरंगज़ेब को एक राष्ट्रवादी और “भारत में मुस्लिम राष्ट्रीयता के संस्थापक” के रूप में देखते थे। मौलाना अबुल अला मौदूदी जैसे प्रभावशाली राजनीतिक नेताओं ने इस्लाम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए औरंगज़ेब की प्रशंसा की थी।
पाकिस्तान के पाठ्यक्रमों में औरंगज़ेब को इस्लाम के एक अगुवा के रूप में बताया जाता है। जनरल जिया उल-हक, जिन्होंने “इस्लाम के अपने गंभीर, अधिनायकवादी संस्करण के साथ आज के पाकिस्तान के चरमपंथ का बीजारोपण किया” औरंगज़ेब से बहुत अधिक प्रेरित थे। उनके समय से मुगल सम्राट औरंगज़ेब की तस्वीर कई सरकारी कार्यालयों की दीवारों पर टंगी है।
औरंगज़ेब का व्यक्तित्व
औरंगज़ेब के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों पर बहस हो सकती है लेकिन इस्लाम के प्रति उनकी भक्ति निर्विवादित है। औरंगज़ेब के रूढ़िवाद को उनकी परवरिश और सत्ता के लिए किए गए जटिल युद्धों से समझा जा सकता है। औरंगज़ेब शाहजहां के बेटे थे। लेकिन शाहजहां के जिंदा रहते ही औरंगज़ेब और उनके तीन भाइयों, विशेष रूप से दारा शिकोह के साथ सत्ता के लिए एक लंबा संघर्ष चला। दारा शिकोह मुसलमानों और हिंदुओं के बीच सद्भाव के लिए सार्वजनिक रूप से वकालत करते थे। शाहजहां ने दारा को ही अपना उत्तराधिकारी चुना था लेकिन औरंगज़ेब ने शाहजहां को आगरा के किले में कैद कर अपने भाइयों से सत्ता के लिए जंग लड़ा था। और अंत में अपने भाइयों को मरवाकर सत्ता पायी थी।
1659 में अपने दूसरे राज्याभिषेक के बाद, औरंगज़ेब ने अपने मुस्लिम विश्वास के पालन में शराब पीने, जुआ खेलने और वेश्यावृत्ति जैसी प्रथाओं पर रोक लगाना का आदेश जारी कर दिया था। उन्होंने कई करों (टैक्स) को भी समाप्त कर दिया जो इस्लामी कानून द्वारा अधिकृत नहीं थे, और घट रहे राजस्व की भरपाई के लिए गैर-मुस्लिमों पर जज़िया कर को फिर से लगाया था।