चुनाव आयोग को महज एक कठपुतली मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि अब सरकार के हाथों में इसकी कमान नहीं होगी। एक समिति जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शामिल होंगे, वो मुख्य चुनाव आयुक्त और बाकी आयुक्तों की नियुक्ति करेगी। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने और जो कुछ कहा वो भारत के लोकतंत्र, राजनीकति और मीडिया को भी शर्मसार करने वाला है।
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का जिक्र कर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनका कहना था कि सरकार को कानून के हिसाब से ही चलना होगा। कोर्ट का कहना था कि भारत के परिपेक्ष्य में हम देखें तो ये बात कहीं से भी लागू नहीं होती। राजनीति में बेशुमार पैसा है। बाहुबली लोग अपने हिसाब से चीजें तय करते हैं। मीडिया पर इन लोगों को बेनकाब करने की जिम्मेदारी है। लेकिन उनका एक बड़ा सेक्शन अपनी विश्वसनीयता खो चुका है। जो पार्टी सत्ता में है वो चुनाव आयोग को अपना गुलाम बनाकर येन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहना चाहती है।
जो सरकार के सामने हाथ फैलाते हों, निष्पक्ष नहीं हो सकते
सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि राजनीतिक दल कभी भी नहीं चाहते कि उन पर निगरानी का जो तंत्र है वो मजबूत हो। वो हमेशा अपने हिसाब से चीजों को नियंत्रित करना चाहते हैं। चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाना ही होगा। जो लोग छोटी छोटी चीज के लिए सरकार के सामने हाथ फैलाते हों उनका दिमाग कैसे निष्पक्ष हो सकता है। जो ईमानदार है वो किसी भी सूरत में सत्ता का दबाव नहीं मानेगा। उनके सामने झुकेगा नहीं।
अदालत ने सवाल पूछा कि इंडिपेंडेंस क्या है। योग्य को कभी भी भय नहीं होना चाहिए। लेकिन योग्यता तभी निखर कर सामने आएगी जब शख्स के दिमाग पर किसी का असर न हो। शख्स ईमानदार होगा तो वो ताकतवर से भी भिड़ जाएगा। उसे किसी की परवाह नहीं होती। ऐसे में एक आम और कमजोर शख्स को उससे उम्मीद होगी कि वो आगे आकर लोकतंत्र को बचाए। लेकिन एक ऐसा चुनाव आयोग जो कानून के राज की गारंटी भी नहीं दे सकता, वो लोकतंत्र के अनुकूल नहीं है। लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब सिस्टम के सारे हिस्से उसे मजबूत बनाने के लिए काम करें।
लोकतंत्र को सफल बनाने का जिम्मा सबसे ज्यादा चुनाव आयोग पर ही है। वो चुनाव ऐसे तरीके से कराए जिसमें लोगों का फैसला साफ तौर पर दिखे। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाने के लिए हम उन सभी पहलुओं पर विचार करेंगे जो जरूरी हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं की गर्दन साफ तौर पर चुनाव आयोग के हाथ में होती है। वो निष्पक्ष रहेगा तो बेबाकी से भ्रष्ट बाहुबलियों पर नियंत्रण कर सकेगा।
बैलट सबसे ताकतवर, किसी को भी सत्ता से हटा सकता है
कोर्ट का कहना था कि बैलट की ताकत सबसे बड़ी है। ये सबसे मजबूत दलों को भी सत्ता से बेदखल कर सकती है। आयोग को चाहिए कि वो ईमानदार तरीके से बगैर डरे अपना काम करे। आयोग पर संसद और असेंबली के चुनाव कराने का जिम्मा होता है। हम उसे मजबूत बनाकर रहेंगे।