मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में पिछले साल नामीबिया से लाए गए 4 चीता में से एक की मौत हो गई। 4 साल की मादा चीता ‘साशा’ की मौत के एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में केंद्र से जवाब तलब किया है। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने केंद्र सरकार से चीता संरक्षण के लिए बनाई गई टास्क फोर्स के सदस्यों की जानकारी और उनके क्वालिफिकेशन का ब्यौरा मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से 2 सप्ताह के अंदर एफिडेविट देने को कहा है।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2020 में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन प्रोजेक्ट को सलाह-सुझाव देने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई थी। इसी कमेटी ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी कि पर्यावरण मंत्रालय ने जो टास्क फोर्स बनाई है, उसमें एक भी ऐसा एक्सपर्ट नहीं है, जिसे चीता संरक्षण या मैनेजमेंट की जानकारी है। इस एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी अर्जी में मांग की थी कि टास्क फोर्स को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी को लेटेस्ट अपडेट उपलब्ध कराने चाहिए और उनकी सलाह माननी चाहिए। कमेटी की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट प्रशांत चंद्र सेन ने दावा किया कि केंद्र सरकार के टास्क फोर्स में एक भी विशेषज्ञ सदस्य नहीं है।
केंद्र सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि सरकार ने चीता संरक्षण के लिए वैज्ञानिकों, फॉरेस्ट ऑफिस, चीता एक्सपर्ट के सहयोग से एक्शन प्लान तैयार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते के भीतर ब्योरा उपलब्ध कराने को कहा है।
कौन-कौन हैं टास्क फोर्स में?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) ने चीता संरक्षण-संवर्धन और प्रोजेक्ट की निगरानी के लिए 9 सदस्यों की टास्क फोर्स बनाई है। इसका कार्यकाल दो साल का है। टास्क फोर्स में मध्य प्रदेश के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेट्री, टूरिज्म डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेट्री, मध्य प्रदेश के प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट व फॉरेस्ट फोर्स के प्रमुख, मध्य प्रदेश के प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (वाइल्ड लाइफ) व चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन शामिल हैं।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के पूर्व चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट्स (वाइल्ड लाइफ) व चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन आलोक कुमार, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के आईजी डॉ. अमित मलिक, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून की वैज्ञानिक डॉ. विष्णु प्रिया, अभिलाष खांडेकर और शुभोरंजन सेन शामिल हैं।

टास्क फोर्स क्यों विवादों में रहा है?
यह पहला मौका नहीं है जब केंद्र सरकार द्वारा गठित टास्क फोर्स विवादों में है। सरकार ने जब टास्क फोर्स में पिछले 13 सालों से चीता प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे और चर्चित बायोलॉजिस्ट यादवेंद्रदेव विक्रम सिंह झाला (Yadavendradev Vikramsinh Jhala) को शामिल नहीं किया था, तब भी इस पर सवाल उठे थे।
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ( Wildlife Institute of India) के डीन झाला उन लोगों में शामिल थे, जो नामीबिया से पहली बार चीता, कूनो नेशनल पार्क ले आए थे। झाला साल 2010 में बने चीता टास्क फोर्स के सदस्य भी थे और इस प्रोजेक्ट के टेक्निकल टीम को लीड किया था।
सरकार ने अचानक घटा दिया एक्सपर्ट का कार्यकाल
आपको बता दें कि चीता प्रोजेक्ट को देखते हुए यादवेंद्रदेव विक्रम सिंह झाला को रिटायरमेंट के बाद दो साल का सेवा विस्तार दिया गया था। केंद्र सरकार ने इसी महीने उनके कार्यकाल को घटाकर एक साल कर दिया था। तब भी इस पर सवाल खड़े हुए थे। तमाम वैज्ञानिकों ने भी सरकार के इस फैसले पर हैरानी जताई थी।