यूरोप भर की नजर टिकी ऑस्ट्रिया के 31 साल के नेता पर
ऑस्ट्रिया में 31 साल के नेता सेबास्टियान कुर्त्स के नेतृत्व में नई सरकार ने पद संभाल लिया है। कुर्त्स इस समय यूरोप ही नहीं दुनियाभर में सबसे कम उम्र के सरकार प्रमुख हैं।

महेश झा
ऑस्ट्रिया में 31 साल के नेता सेबास्टियान कुर्त्स के नेतृत्व में नई सरकार ने पद संभाल लिया है। वे इस समय यूरोप ही नहीं दुनियाभर के सबसे कम उम्र के सरकार प्रमुख हैं। कंजरवेटिव ओवीपी और अथि दक्षिणपंथी एफपीओ की सरकार यूरोप में अकेली सरकार है, जहां आप्रवासियों और यूरोपीय संघ का विरोध करने वाली पार्टी सत्ता में है। पिछली सरकार में विदेश और यूरोप मामलों के मंत्री रह चुके कुर्त्स के मंत्रिमंडल के 14 मंत्रियों का सरकार चलाने का कुल अनुभव सिर्फ 7 साल का है और ये सात साल भी कुर्त्स के अपने सात साल हैं। बाकी सारे मंत्री पूरी तरह नए हैं। कुर्त्स ने नए गैर अनुभवी लोगों को मंत्री बनाकर नई सरकार की आलोचना को कम रखने की कोशिश की है, लेकिन गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय अति दक्षिणपंथी फ्रीडम पार्टी को सौंपना बहुत से लोगों को रास नहीं आ रहा है।
सेबास्टियान कुर्त्स भले ही सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के साथ सरकार में रहे हों लेकिन वे नए तरह के कंजरवेटिव हैं। उन्होंने पिछले सालों में शरणार्थियों के मुद्दे पर पश्चिम यूरोप की दूसरी कंजरवेटिव पार्टियों से अलग रुख अपनाया है और यूरोपीय संघ में तुर्की की सदस्यता के मुद्दे पर भी सख्त रहे हैं। अब अति दक्षिणपंथी पार्टी एफपीओ के साथ सरकार बनाकर उन्होंने साफ कर दिया है कि वे यूरोप में मध्य की ओर जाते अनुदारवाद यानी कंजरवेटिज्म के बदले अनुदारवादी राजनीति की नई राह पर चलने के लिए तैयार हैं।
ये नई राह उतनी आसान नहीं होगी। हालांकि कंजरवेटिव चांसलर कुर्त्स ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार एफपीओ के साथ बनी होने के बावजूद यूरोप समर्थक सरकार होगी, लेकिन यूरोपीय नेताओं के साथ भरोसे का माहौल बनाना आसान नहीं होगा। 17 साल पहले 2000 में कंजरवेटिव ओवीपी और अति दक्षिणपंथी एफपीओ की पहली गठबंधन सरकार बनी थी। तब यूरोपीय संघ के देशों ने उग्र दक्षिणपंथी पार्टी को सत्ता की मुख्यधारा में लाने का बदला द्विपक्षीय संबंधों का दर्जा घटा कर चुकाया था। ये एफपीओ की विदेशी विरोधी और नस्लवादी नीति का विरोध था। लेकिन 17 साल बाद माहौल बदल चुका है, आज कोई भी इस तरह की सजा के बारे में नहीं सोच सकता।
सरकार बनने के मौके पर 17 साल पहले के विपरीत उतना बड़ा प्रदर्शन नहीं हुआ है। उस समय नए मंत्रियों को भूमिगत रास्ते से राष्ट्रपति के पास जाना पड़ा था। इस समय चांसलर कुर्त्स का मानना है कि लोगों को नई सरकार का विरोध करने का हक है। ऑस्ट्रिया के बुद्धिजीवी इस बात की वकालत कर रहे हैं कि नई सरकार और उसके मंत्रियों को पहले काम करने का मौका दिया जाना चाहिए। लेकिन आलोचकों का कहना है कि पहली बार ऐसे लोग सरकार में हैं जिनके अतीत में उग्र दक्षिणपंथियों और नवनाजियों के साथ संबंध रहे हैं। उनकी आलोचना होनी ही चाहिए।
इसकी एक वजह ये भी है कि एफपीओ न तो अब वैसी पार्टी है जैसी तब थी और न ही यूरोपीय संघ उस हालत में है जैसा तब था। इस बीच 2008 के वित्तीय संकट और 2015 के शरणार्थी संकट ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। ब्रिटेन ईयू से बाहर निकलने का फैसला ले चुका है तो पोलैंड और हंगरी अपनी अति दक्षिणपंथी नीतियों से संघ के देशों को परेशान करते रहे हैं। इसलिए ऑस्ट्रिया की नई सरकार की यूरोप समर्थक नीति के मायने उतने स्पष्ट नहीं हैं। एक ओर तो एफपीओ यूरोप विरोधी रुख अपनाती रही है और अभी भी उसके सांसद यूरोपीय संसद में फ्रांस की उग्र दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल फ्रंट के सांसदों के साथ बैठते हैं।
शरणार्थियों और समाज में उनके समेकन पर सख्ती अख्तियार करने के फैसले के साथ ऑस्ट्रिया की सरकार ईयू के प्रमुख देशों जर्मनी और फ्रांस के दृष्टिकोण से दूर हुई है। ऑस्ट्रिया की नई सरकार ईयू के प्रमुख देशों से जर्मनी और फ्रांस से दूर होती और खासकर शरणार्थियों के मुद्दे पर पोलैंड और हंगरी के नजदीक जाती दिख रही है। ऐसे में यूरोप के पूरब और पश्चिम के विचारों में उसकी मध्यस्थता की भूमिका समाप्त होने का खतरा है। लेकिन दूसरी और यह ईयू नेतृत्व की भी चुनौती होगी कि कैसे ऑस्ट्रिया मुख्यधारा में बना रहे और यूरोप विरोधियों के लिए मधुमक्खी का छत्ता न बन जाएं। वरना अपने में सिमटा यूरोप दुनिया के लिए आकर्षण और आदर्श नहीं रहेगा।
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