संघर्ष रोकने के लिए ज्यादा महिलाओं की भागीदारी जरूरी: भारत
यूएन वूमन की प्रमुख पी एम गकुका ने कहा, ‘‘महिलाओं को नियुक्त किया जाना चाहिए ताकि वे ज्यादा काम कर सकें।

शांतिरक्षा से जुड़ी गतिविधियों में महिलाओं की कमी के कारण उपजी चुनौतियों को रेखांकित करते हुए भारत ने संघर्षों की रोकथाम एवं उनके समाधान के काम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने सोमवार (28 मार्च) को कहा, ‘‘संघर्ष की रोकथाम और इन्हें सुलझाने में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने और इसे संस्थागत रूप दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए सिर्फ निर्देशात्मक सलाह की जरूरत नहीं है, इसके लिए जमीनी स्तर पर क्षमता निर्माण और संस्थान निर्माण की जरूरत है।’’
‘अफ्रीका में संघर्ष रोकथाम और समाधान में महिलाओं की भूमिका’ के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में अपने संबोधन में अकबरूद्दीन ने अफ्रीका में लैंगिक सशक्तीकरण की दिशा में हुई प्रगति को रेखांकित किया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि शांतिरक्षक गतिविधियों में महिलाओं की कमी के कारण बड़ी चुनौतियां मौजूद हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों का हवाला देते हुए बताया कि वैश्विक तौर पर शांतिरक्षक गतिविधियों में महिलाओं की संख्या शांति समझौतों पर हस्ताक्षर करने वालों के चार प्रतिशत से भी कम है। यह संख्या शांतिवार्ता की मेजों पर मौजूद वार्ताकारों के 10 प्रतिशत से भी कम है। महिलाओं की संख्या शांति अभियानों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैनात की गई सेना का महज तीन प्रतिशत और पुलिस का महज 10 प्रतिशत है।
अकबरूद्दीन ने कहा, ‘‘ये संख्याएं हमारे समक्ष मौजूद चुनौतियों की व्यापकता को दर्शाती हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि महिला शांति एवं सुरक्षा एजेंडा पर फोकस बढ़ने के बावजूद बड़ी पीड़ित महिलाएं और लड़कियां ही हैं। संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा अभियानों में बड़ी संख्या में सैनिक भेजने वाले भारत ने लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र के लिए पहली महिला पुलिस इकाई उपलब्ध करवाई। उन्होंने कहा कि इस इकाई की उसके काम के लिए और एक नयी मिसाल कायम करने के लिए व्यापक स्तर पर सराहना हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत ने सैन्य पर्यवेक्षकों और चिकित्सा इकाइयों में स्टाफ अधिकारियों के रूप में भी महिला अधिकारियों की तैनाती की है।
यूएन वूमन की प्रमुख पी एम गकुका ने कहा, ‘‘महिलाओं को नियुक्त किया जाना चाहिए ताकि वे ज्यादा काम कर सकें। शांतिनिर्माण कोष में से कम से कम 15 प्रतिशत राशि का आवंटन लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के लिए करने की प्रतिबद्धता हकीकत में बदलनी चाहिए।’’