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इजराइल-हमास संघर्षविराम: लंबी शांति के लिए किस बात पर जोर

संघर्षविराम के बाद विश्व समुदाय, खासकर यूरोपीय और अरब देशों ने उस इलाके में स्थायी समाधान की बात उठाई है। अमेरिका, मिस्र, भारत समेत कई देशों ने इजराइल और फिलिस्तीन- दोनों देशों के सह-आस्तित्व को दो राष्ट्र सिद्धांत की बात उठाई है।

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हमास के ठिकाने पर इजराइल हमले के बाद उठता धुंआ (ऊपर), तथा सुशांत सरीन, रक्षा और विदेश नीति विशेषज्ञ (नीचे बाएं) तथा टीएस तिरुमूर्ति, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि (नीचे दाएं)।

इजराइल और फिलस्तीन के चरमपंथी समूह हमास के बीच संघर्ष विराम पर सहमति बन गई है। इसके बाद 11 दिन तक चले युद्ध पर विराम लग गया। यह 11 दिन का संघर्ष 2014 के गाजा युद्ध के बाद से सबसे भीषण संघर्ष रहा है। इसमें 240 से अधिक लोगों की मौत हो गई। गाजा पट्टी में बड़े पैमाने पर बर्बादी हुई और इस अस्थिर क्षेत्र के कहीं अधिक अस्थिर होने का डर पैदा हो गया था। यह संघर्ष 10 मई को शुरू हुआ था। तब कई हफ्तों से पूर्वी येरुशलम में बढ़ते इजराइली-फलस्तीनी तनाव ने संघर्ष का रूप ले लिया था। संघर्षविराम के बाद विश्व समुदाय, खासकर यूरोपीय और अरब देशों ने उस इलाके में स्थायी समाधान की बात उठाई है। अमेरिका, मिस्र, भारत समेत कई देशों ने इजराइल और फिलिस्तीन- दोनों देशों के सह-आस्तित्व को दो राष्ट्र सिद्धांत की बात उठाई है। अमेरिका, अलबेनिया, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, साइप्रस, जर्मनी, हंगरी, इटली, स्लोवेनिया और यूक्रेन समेत कई देश इजराइल के साथ खड़े हैं। इस संघर्ष में तेल उत्पादक देशों का संगठन (जिसमें अधिकांश मुसलिम देश हैं) ओआइसी अपने ढुलमुल रवैए के कारण नाकाम माना गया।

संघर्षविराम के लिए दबाव
गाजा इलाके में संघर्ष विराम, अमेरिका, मिस्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों की तरफ से हिंसा को रोकने के लिए बनाए जा रहे दबाव के बाद शुक्रवार को प्रभावी हुआ। इजरायली सुरक्षा कैबिनेट ने जब संघर्षविराम को स्वीकार करने के पक्ष में वोट डाले, तब दक्षिण इजरायल और गाजा दोनों उन्माद में थे। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू के कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया कि सुरक्षा कैबिनेट परस्पर एवं बिना शर्त शत्रुता समाप्त करने पर सर्वसम्मति से सहमत हुई है। बयान में कहा गया, नेताओं ने कहा है कि जमीनी हकीकत अभियान के भविष्य को निर्धारित करेगी। हालांकि, नेतन्याहू ने इजराइली सुरक्षा बलों को उस स्थिति के लिए तैयार रहने को कहा है कि अगर हमास मिस्र के संघर्षविराम प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है। संघर्षविराम के बाद गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में भी जश्न मनाते हुए प्रदर्शन किए गए। सोशल मीडिया पर अपलोड किए गए कई वीडियो में आतिशबाजी, गाना-बजाना और लोग सड़कों पर परेड करते दिखे। इजराइल और हमास दोनों ने संघर्ष में अपनी-अपनी जीत का दावा किया है। संघर्ष में मारे गए करीब 240 लोगों में एक भारतीय नर्स भी शामिल हैं। केरल के इदुक्की जिले की 30 साल की सौम्या संतोष की गाजा से फिलस्तीनियों चरमपंथियों द्वारा किए गए रॉकेट हमले में एशकेलोन में मौत हो गई थी।

भारत का रुख
भारत ने रेखांकित किया है कि इजराइल और फिलस्तीन के बीच वार्ता बहाल करने में सहायक माहौल तैयार करने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता कायम करने के लिए अर्थपूर्ण वार्ता का दौर लंबा चल सकता है। पश्चिम एशिया और फिलस्तीन की स्थिति पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा की बुलाई गई बैठक में भारत के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत एवं स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा, हम लगातार जोर दे रहे हैं कि तत्काल तनाव को कम करना इस वक्त की जरूरत है ताकि हिंसा की कड़ी को तोड़ा जा सके। हम अपील करते हैं कि तनाव को बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिए। इसके साथ ही एक तरफा तरीके से यथास्थिति बदलने की कोशिश से भी बचना चाहिए। इजराउल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रिश्ते काफी बेहतर हैं।

मोदी 70 साल में पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे जिन्होंने इजराइल का दौरा किया था। इजराइल भी इधर कुछ साल से भारत का सबसे बड़ा दोस्त बन कर उभरा है। दूसरी ओर, भारत का रिश्ता फिलिस्तीन के साथ इतिहास में बहुत गहरा रहा है। सत्तर के दशक में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के मुखिया यासिर अराफात के रहते हुए फिलिस्तीन और भारत के रिश्ते काफी बेहतर थे। रिश्ते कितने बेहतर थे यह इसी बात से समझा जा सकता है कि यासिर अराफात इंदिरा गांधी को अपनी बड़ी बहन मानते थे और उनकी कोई भी बात नहीं टालते थे। इंदिरा गांधी भी उन्हें वैसे ही मानती थीं। इसलिए जब भी यासिर अराफात भारत आते थे तो हवाई अड्डे पर उन्हें लेने इंदिरा गांधी जाती थीं। 1974 में भारत अकेला गैर मुसलिम देश था, जिसने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को मान्यता दी थी। 1988 में फिलिस्तीन को बतौर राष्ट्र मान्यता देने वाला भारत पहली पंक्ति में खड़ा था। फिलिस्तीन के साथ भारत मानवाधिकार और आजादी जैसे मुद्दों पर हमेशा से खड़ा रहा।

मिस्र की मध्यस्थता की पहल
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सीसी ने इजरायल और हमास के बीच मिस्र की मध्यस्थता से हुए संघर्ष विराम की सफलता के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का शुक्रिया किया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि फिलस्तीनियों और इजराइलियों को सुरक्षित तरीके से जीवन जीने का समान रूप से अधिकार है और स्वतंत्रता, समृद्धि एवं लोकतंत्र के समान प्रावधानों को प्राप्त करने का भी हक है। बाइडन ने गुरुवार को वाइट हाउस में कहा, मेरा मानना है कि फिलस्तीनियों और इजराइलियों को समान रूप से सुरक्षित जीवन जीने का तथा स्वतंत्रता, समृद्धि एवं लोकतंत्र के समान उपायों को हासिल करने का अधिकार है। मेरा प्रशासन उस दिशा में हमारी शांत एवं अनवरत कूटनीति को जारी रखेगा। मेरा मानना है कि हमारे पास प्रगति करने के वास्तविक अवसर हैं और मैं इसपर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।

ओआइसी देशों के अपने हित हैं। तुर्की के इजराइल के साथ उसके गहरे कारोबारी संबंध हैं। जब इस्लाम से संबंधित कोई मुद्दा उठता है तो कभी अपने दूत को वापस बुला लेता तो कभी बयानबाजी करके चुप हो जाता है। सऊदी अरब व अमेरिका के रणनीतिक संबंध हैं। समझदार देश संतुलन बनाकर चलते हैं।

– सुशांत सरीन, रक्षा और
विदेश नीति विशेषज्ञ

तनाव के बीच भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और यथास्थिति में एकतरफा बदलाव के प्रयास से बचने की अपील की है। पूर्वी यरूशलम में शुरू हुई हिंसा के नियंत्रण से बाहर जाने का खतरा उत्पन्न हो गया था। भारत इजराइल और फिलस्तीन के बीच वार्ता बहाल के हरसंभव प्रयास का समर्थन करता है।
– टीएस तिरुमूर्ति, संयुक्त राष्ट्र में
भारत के स्थायी प्रतिनिधि

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First published on: 25-05-2021 at 00:34 IST
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