हाल में भारत और बांग्लादेश के बीच तेल पाइपलाइन का उद्घाटन किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की उनकी समकक्ष शेख हसीना ने मिलकर इस परियोजना के चालू होने का एलान किया। अब तक बांग्लादेश में तेल भारतीय रेल के जरिए भेजा जाता था और इसे सड़क मार्ग से आगे पहुंचाया जाता था। अब इस पाइपलाइन के शुरू होने के बाद सड़क यातायात में होने वाला बांग्लादेश का खर्च बचेगा। इस पाइपलाइन को 377 करोड़ रुपए की लागत में बनाया गया है जिसमें बांग्लादेश में पड़ने वाला हिस्सा 285 करोड़ में बना है।
इसका भुगतान भी भारत सरकार ने ही किया है। इस पाइपलाइन की क्षमता 10 लाख मैट्रिक टन प्रति साल है। इससे उत्तरी बांग्लादेश के सात राज्यों में हाई स्पीड डीजल पहुंचाया जाएगा। बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। बांग्लादेश की राजनीति में भारत हमेशा अहम रहा है, लेकिन बीते दो दशकों में चीन ने बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर निवेश किए हैं। इसने भारत को असहज किया। इसे देखते हुए भारत ने सक्रियता बढ़ाई और साल 2017 में बांग्लादेश को पांच अरब डालर का कर्ज दिया। भारत की ओर से बांग्लादेश को दिया गया यह सबसे बड़ा कर्ज था।
ऊर्जा के क्षेत्र पर असर
भारत के लिए बांग्लादेश उसका अहम पड़ोसी और मित्र है। साल 2021-22 में बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था और एशिया में भारत के निर्यात के लिहाज से सबसे बड़ा देश था। बांग्लादेश भारत का छठा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में भी वृद्धि हुई है, जोकि वर्ष 2020-21 में 10.8 बिलियन अमेरिकी डालर था। वह 2021-22 में बढ़कर 18.2 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुंच गया है। दोनों देशों के बीच यह पहली सीमा पार उर्जा पाइपलाइन है। इस पाइपलाइन की लंबाई 130 किलोमीटर है और इसका अधिकतर हिस्सा लगभग 125 किमी बांग्लादेश में है। मात्र पांच किलोमीटर ही भारत के हिस्से में है। भारत ने कहा है कि इस पाइपलाइन के शुरू हो जाने से भारत से बांग्लादेश तक एचएसडी को ले जाने के लिए यह एक किफायती, विश्वसनीय, पर्यावरणीय अनुकूल है। दोनों देश आगे भी उर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे। मौजूदा पाइपलाइन पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से दिनाजपुर के पार्वतीपुर मेघना पेट्रोलियम डिपो तक है।
भारत की ‘पड़ोस प्रथम’ की नीति
बांग्लादेश की सीमा तीन तरफ से भारत के साथ जुड़ती है। दोनों देशों के बीच 4096.7 किलोमीटर की सीमा रेखा है। असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और पश्चिम बंगाल राज्य बांग्लादेश से सटे हुए हैं। यह भारत की किसी भी अपने पड़ोसी देश के साथ सबसे लंबी सीमा है। इतना ही नहीं दोनों देशों के बीच कुल 54 नदियों के माध्यम से भी जुड़ाव है। भारत की नेबरहुड फर्स्ट पालिसी (‘पड़ोस प्रथम’ की नीति) में बांग्लादेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध सभ्यतागत, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक हैं। ऐसा बहुत कुछ है जो दोनों देशों को जोड़ता है। हालांकि, अभी भी भारत और बांग्लादेश के बीच नदी जल विवाद (तीस्ता नदी जल बंटवारे), अवैध अप्रवासियों की सहायता और नशीली दवाओं के व्यापार जैसे प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं, जिन्हें सुलझाए जाने की कवायद चल रही है।
एनआरसी, आतंकवाद और घुसपैठ
दोनों देशों के बीच दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा अवैध प्रवासन का है। बांग्लादेश से भारत में अवैध प्रवासी, जिसमें शरणार्थी और आर्थिक प्रवासी दोनों शामिल हैं का आना-जाना बेरोकटोक जारी है। उत्तर-पूर्व के सीमा पर लगे भारतीय राज्यों के लोगों के लिए यह एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक समस्या के रूप में सामने आया है। भारत सरकार इसके निदान के तौर पर राष्ट्रीय नागरिक नंजी (एनआरसी) लेकर आई है। इसकी आलोचना में बांग्लादेश मुखर रहा है। दूसरे, सीमा पार से नशीली दवाओं की तस्करी, बच्चों और महिलाओं की तस्करी, विभिन्न जानवरों और पक्षियों की प्रजातियों का अवैध शिकार का मुद्दा भी अहम है।

साथ ही, दोनों देशों के बीच आतंकवाद का भी मुद्दा प्रमुख है। जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश जैसे कई संगठन भारत में अपना जाल फैलाने की कोशिश करते रहे हैं। इसके अलावा वर्तमान में बांग्लादेश चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में एक सक्रिय भागीदार है। भारत ने इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा बांग्लादेश रक्षा क्षेत्र में पनडुब्बियों सहित चीनी सैन्य उपकरणों का आयात करता है, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रमुख चिंता का विषय है।