ब्रह्मदीप अलूने
पिछले पांच दशकों में भारत और बांग्लादेश के आपसी रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। भारत को अपने इस पड़ोसी राष्ट्र से गंभीर सुरक्षा चुनौतियां मिलती रही हैं, लेकिन इसके समाधान को भारत ने परस्पर आर्थिक सहयोग बढ़ा कर ढूंढ़ा है और इसके अपेक्षित परिणाम भी सामने आ रहे हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच एक मैत्री तेल पाइपलाइन की शुरुआत होने जा रही है। दोनों देशों के बीच यह पहली तेल पाइपलाइन होगी। इस परियोजना पर आने वाली लागत का अधिकांश भार भारत उठाने जा रहा है। इससे उत्तरी बांग्लादेश के सात राज्यों में हाई स्पीड डीजल पहुंचाया जाएगा।
भारत के लिए बांग्लादेश अहम पड़ोसी के साथ दक्षिण एशिया में बड़ा व्यापारिक साझेदार है
भारत के लिए बांग्लादेश अहम पड़ोसी होने के साथ दक्षिण एशिया में उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। भारत और बांग्लादेश के बीच करीब चार हजार किलोमीटर से ज्यादा की सीमा रेखा है और यह मुख्यत: असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, मेघालय और मिजोरम को छूती है। बांग्लादेश और भारत सीमा के बीच पूर्वोत्तर की भौगोलिक परिस्थितियां घुसपैठ के अनुकूल हैं और पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आइएसआइ ने लंबे समय तक इसका फायदा उठाया।
शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ा
इससे घुसपैठ, तस्करी, मदरसों का जाल और नकली मुद्रा के अवैध कारोबार से भारत की समस्याएं बढ़ीं। मगर 2009 में शेख हसीना के बांग्लादेश की सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ा है। पूर्वोत्तर भारत में चरमपंथी गतिविधियों पर लगाम लगाने में बांग्लादेश ने कई बार सहयोग किया है। दो साल पहले बांग्लादेश में फेनी नदी पर बने मैत्री सेतु के उद्घाटन से माहौल में गर्मजोशी आई है। इस पुल ने त्रिपुरा के सबरूम से चटगांव बंदरगाह की दूरी को बहुत कम कर दिया है। यह कारोबार और आवाजाही की दृष्टि से अहम है। बांग्लादेश की मदद से भारत को सुरक्षा के क्षेत्र में होने वाले खर्च में लाखों डालर की बचत हो रही है। चार हजार किलोमीटर से अधिक लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा का इस्तेमाल पूर्वोत्तर भारत के कई चरमपंथी समूह करते थे।
बांग्लादेश ने चटगांव और मोंगला बंदरगाह, पूर्वोत्तर में व्यापार के लिए खोला
2016 में बांग्लादेश और भारत के बीच पेट्रोपोल और बेनापोल के बीच व्यापार मार्ग की शुरुआत हुई, जो दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में अहम माना गया। भारत की भौगोलिक सीमा की कठिनाइयों को देखते हुए बांग्लादेश ने चटगांव और मोंगला बंदरगाह, पूर्वोत्तर में व्यापार के लिए खोल दिए हैं। हालांकि भारत और बांग्लादेश के आपसी रिश्तों को प्रभावित करने की चीन की कोशिशें भी बदस्तूर जारी हैं। वह दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों को कर्ज के जाल में उलझा कर भारत पर सामरिक बढ़त लेना चाहता है और उसे इसमें सफलता भी मिली है। भारत के कई पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश को छूती हैं। इन इलाकों की कठिन भौगोलिक स्थिति तथा विविध सांस्कृतिक परिस्थितियों ने भारत की चुनौतियों को बढ़ाया है।
दक्षिण एशिया में भारत के सामर्थ्य को प्रभावित करने की चीनी बदनीयती में बांग्लादेश कहीं न कहीं मददगार बना है। वह खराब आधारभूत ढांचे के कारण कई मामलों में बहुत पिछड़ा हुआ है। चीन उसे ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना के तहत कई बड़ी परियोजनाओं में आर्थिक मदद मुहैया करा रहा है। चीन पद्मा नदी पर चार अरब डालर का एक ब्रिज रेलवे लाइन बना रहा है, जो बांग्लादेश के दक्षिणी-पश्चिमी और उत्तरी-पूर्वी इलाकों को जोड़ेगा। चीन और बांग्लादेश के बीच 2002 में रक्षा सहयोग पर समझौता हुआ था। वह बांग्लादेश को परमाणु ऊर्जा के विकास में भी सहायता कर रहा है।
कुनपिंग परियोजना के अंतर्गत चीन म्यांमा के रास्ते चटगांव और कुनपिंग को नौ सौ किलोमीटर लंबे राजमार्ग से जोड़ने की योजना बना रहा है, ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ सके। बांग्लादेश ने भी इस परियोजना के लिए हामी भर दी है। वह इस समय चीन से सर्वाधिक हथियारों का आयात कर रहा है।
वह पाकिस्तान के बाद चीन से सैन्य हथियार खरीदने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भी इस बात को मानती हैं कि चीन इस इलाके में बड़ी भूमिका निभा रहा है। भारत और बांग्लादेश के बीच नदी के पानी के बंटवारे को लेकर तो तनाव रहता ही है, अब चटगांव बंदरगाह पर चीन के प्रभाव से सामरिक चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। अब चीन के साथ अपने मजबूत संबंधों को आगे करके बांग्लादेश, भारत से सौदेबाजी की संभावनाएं भी तलाश रहा है। पूर्वोत्तर की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि बांग्लादेश भारत को पारगमन मार्ग की सुविधा प्रदान करे। इस क्षेत्र का शेष भारत से जुड़ाव सिलीगुड़ी गलियारे द्वारा होता है, जो लगभग चालीस किलोमीटर चौड़ा है। यह एक ओर चीन तथा दूसरी ओर बांग्लादेश से घिरा हुआ है।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए यह एकमात्र संपर्क मार्ग है। पारगमन मार्ग मिलने से भारत को बड़ा आर्थिक और सामरिक फायदा हो सकता है। जैसे कोलकाता और अगरतला के बीच की दूरी करीब बारह सौ किलोमीटर कम हो जाएगी। इसी प्रकार बांग्लादेश के चटगांव पत्तन को अगरतला रेल मार्ग से जोड़ दिया जाए, तो पूर्वोत्तर राज्यों से भारत के अन्य क्षेत्रों के लिए सामान की ढुलाई सरल हो जाएगी। बांग्लादेश तीस्ता नदी के पानी को लेकर आशान्वित है और भारत से समझौता करना चाहता है। तीस्ता का पानी बांग्लादेश के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसके उत्तरी इलाकों में पानी की किल्लत है और इसे सिक्किम के रास्ते उत्तरी बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करने वाली तीस्ता नदी ही पूरा कर सकती है। मगर भारत के लिए यह स्थिति कठिन है, क्योंकि पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से के किसान ऐसे किसी समझौते से संकट में पड़ सकते है। बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए भारत से ‘ट्रांजिट रूट’ चाहता है।
दोनों देशों के बीच अभी कई समस्याएं हैं, जिनका समाधान बहुत दूर नजर आता है। बांग्लादेश के जन्म का सबसे बुरा असर असम को झेलना पड़ता है। असम से अलग हुए मेघालय, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा को जनजातियों का राज्य माना जाता था और यहां अस्सी प्रतिशत जनजातियां निवास करती थीं। 1971 के बाद यहां की जनसंख्या में भारी बदलाव आया है और अब जनजातीय समूह अल्पमत में आ गए हैं। पूर्वोत्तर के जनसांख्यिकी बदलाव से सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान खोने का संकट बढ़ा, तो जनजातीय समूहों ने हथियार उठा लिए और अब इन इलाकों में पृथकतावादी और हिंसक आंदोलनों का गहरा प्रभाव देखा जाता है। दूसरी तरफ पूर्वोत्तर में घुसपैठ और उग्रवाद की समस्या इतनी विकराल रही है कि यहां काम करने वाली सरकारें इन्हीं मुद्दों में उलझी रहती है, जिससे यह समूचा क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता के बाद भी गरीबी, पिछड़ेपन, जातीय हिंसा और सांप्रदायिक समस्याओं में बुरी तरह जकड़ा हुआ है।
म्यांमा से विस्थापित दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों का बोझ झेल रहे बांग्लादेश में आम राय यह है कि भारत ने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। जबकि रोहिंग्या के कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा पर संकट बढ़ा है। दोनों देशों के बीच करीब पचास से अधिक नदियां बहती हैं, लेकिन 1996 गंगा समझौते के बाद दोनों में पानी के बंटवारे को लेकर कोई समझौता नहीं हो पाया है।
सीमा पर बाड़ लगाना बाकी है, कई स्थानों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ जाती हैं। फरक्का बांध का विवाद बना हुआ है। बांग्लादेश और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। बहरहाल, तमाम चुनौतियों के बीच भी भारत और बांग्लादेश के संबंध बेहतरीन दौर में हैं और इसका फायदा समस्याओं के समाधान की दिशा में उठाने की जरूरत है।