Conflict Between Power and Army in Pakistan: पाकिस्तान (Pakistan) के विदेश मंत्री (Foreign Minister) बिलावल भुट्टो जरदारी (Bilawal Bhutto-Zardari) ने 1971 के युद्ध (War of 1971) में अपनी हार और बांग्लादेश (Bangladesh) के अलग होने के लिए सेना को जिम्मेदार ठहराया है। इसको लेकर वहां हंगामा मच गया है। उन्होंने पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा (General Qamar Javed Bajwa) के इस दावे को खारिज कर दिया कि यह “राजनीतिक चूक (Political Failure)” थी। उन्होंने कहा कि ढाका में 1971 में मिली पराजय वास्तव में एक “सैन्य विफलता (Military Failure)” थी, जिसने जुल्फिकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) के नेतृत्व वाली पीपीपी (PPP) के लिए कई चुनौतियां ला दी थीं।
अपनी पार्टी PPP के स्थापना दिवस पर संस्थापक की बताईं उपलब्धियां
बिलावल ने यह टिप्पणी अपनी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के 55वें स्थापना दिवस (Foundation Day) के उपलक्ष्य में निश्तार पार्क में आयोजित एक रैली में की। वह पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने इस अवसर पर अपनी पार्टी के इतिहास की चर्चा की और इसके संस्थापक (Founder) एवं अपने नाना जुल्फिकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) की ‘‘उपलब्धियों’’ को याद किया।
बिलावल ने कहा युद्धबंदी सैनिकों को उनके नाना भारत से वापस लाए
डॉन अखबार (Dawn Newspaper) ने उनके हवाले से कहा, ‘‘जब जुल्फिकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) ने सत्ता संभाली, उस समय लोगों की उम्मीदें टूटी हुई थीं और वे हर तरह से निराश थे।’’ बिलावल ने कहा, ‘‘लेकिन उन्होंने (जुल्फिकार) राष्ट्र का पुनर्निर्माण (Reconstruction) किया और अंतत: हमारे 90,000 सैनिकों को वापस लेकर आए, जिन्हें ‘सैन्य विफलता’ के कारण भारत ने युद्धबंदी (War Prisoner) बना लिया था। उन 90,000 सैनिकों को उनके परिवारों से मिलाया गया। और यह सब उम्मीद की… एकता की… और समावेश की राजनीति के कारण संभव हुआ।’’
बाजवा ने 29 नवंबर को अपनी सेवानिवृत्ति से पहले कहा था कि पूर्वी पाकिस्तान को लेकर भारत से हुई लड़ाई में इस्लामाबाद (Islamabad) को मिली हार “राजनीतिक विफलता” थी और पाकिस्तानी सैनिकों के बलिदान को कभी ठीक से मान्यता नहीं दी गई।
पूर्व सेना प्रमुख ने कहा था कि युद्धबंदी 92 हजार ने सिर्फ 34 हजार थे
उन्होंने कहा था कि 1971 के युद्ध में आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों की संख्या 92,000 नहीं थी और केवल 34,000 लड़ाके थे, जबकि अन्य लोग विभिन्न सरकारी विभागों से थे। पिछले सप्ताह रावलपिंडी में सेना मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में बाजवा ने कहा था, “मैं रिकॉर्ड को सही करना चाहता हूं। सबसे पहले, पूर्वी पाकिस्तान का पतन सैन्य विफलता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक विफलता थी। लड़ने वाले सैनिकों की संख्या 92,000 नहीं थी, बल्कि केवल 34,000 थी, बाकी लोग विभिन्न सरकारी विभागों से थे।’’
जनरल बाजवा (61) गत 29 नवंबर को सेवानिवृत्त हो गए। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा 2019 में उन्हें तीन साल का सेवा विस्तार दिया गया था। वर्तमान में खान पाकिस्तानी सेना के सबसे बड़े आलोचक हैं।