एंग्लिया रस्किन विश्वविद्यालय में पशु एवं पर्यावरणीय जीवन विज्ञान की शिक्षक क्लाउडिया वाशर के मुताबिक चार्ल्स डार्विन ने 1872 में अपनी पुस्तक ‘द एक्सप्रेशन आॅफ द इमोशंस इन मैन एंड एनिमल्स’ में कुत्तों, बिल्लियों, ंिचपैंजी, हंस और अन्य जानवरों में भावनाओं की एक ऐसी विकसित शृंखला का वर्णन किया है जो जन्मजात होती हैं। लेकिन जानवर चूंकि मौखिक रूप से अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं और मनुष्य अक्सर उनकी भावनाओं को गलत तरीके से समझते हैं, जिससे अच्छे इरादों के बावजूद उन्हें और भी बुरा महसूस करा सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम जानवरों का मानवीकरण कर देते हैं और उनमें मानवीय भाव और भावनाएं देखते हैं जो हमारी समझ को प्रभावित करते हैं कि वे वास्तव में कैसा महसूस कर रहे हैं।
यह सीखना कि जानवर भावनाओं को कैसे समझते हैं, महत्त्वपूर्ण है। यह समझना कि वे किस बात से तनावग्रस्त या दुखी हैं, यह बता सकता है कि हम चिड़ियाघरों, समुद्री जीवन केंद्रों और खेतों में पशु कल्याण के साथ-साथ अपने पालतू जानवरों के साथ अधिक करुणापूर्ण व्यवहार कैसे कर सकते हैं। काव्यात्मक रूप से कहें तो शोधकर्ताओं ने जानवरों के दिल की धड़कन को उनकी भावनाओं से जोड़ा है। जैसा कि मेरे हालिया पेपर में विस्तृत रूप से बताया गया है। विभिन्न स्थितियों की प्रतिक्रिया में जानवरों की हृदय गति में कैसे उतार-चढ़ाव होता है, इसे मापकर, हम यह समझने के करीब पहुंच रहे हैं कि जानवर कैसा और कब महसूस करते हैं।
मनुष्यों और जानवरों दोनों में, भावनात्मक उत्तेजना में निम्न से उच्च तक वृद्धि को हृदय गति में वृद्धि से मापा जा सकता है, जिसे बीट्स प्रति मिनट (बीपीएम) में मापा जाता है। जानवरों की हृदय गति तेजी से बढ़ जाती है, जब वह झगड़ा या आक्रामक मुठभेड़ करते हैं और सहलाने जैसी मैत्रीपूर्ण गतिविधि के दौरान कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, भूरी टांगों वाले हंस में, आक्रामक गतिविधि के दौरान औसत हृदय गति 84 बीपीएम से बढ़कर 157 बीपीएम हो जाती है। जब हंस एक अधिक प्रभावशाली प्रतिद्वंद्वी के साथ संवाद कर रहे होते हैं, तो हृदय गति अधिक बढ़ जाती है।