कोरोना के साथ सुधर जा, धरती तेरे बाप की नहीं…
चिट्ठी में लिखा था, मैंने लाड़ के कारण तुझे इतनी बुद्धि दे दी है कि तू लगता है कि फ्रैंकेंस्टीन बनता जा रहा है। तुझे रास्ते पर लाने के लिए चेचक, प्लेग, कॉलरा, फ्लू जैसी बीमारियों की चाबुक थीं लेकिन...

नई दिल्ली। चिट्ठी में भगवान आगे लिखते हैं : इस तरह अपने अकेलेपन से उकता कर मैंने सृष्टि रचनी शुरू कर दी। काम आसान नहीं था। मैं भी नया-नया भगवान बना था। सृष्टि पूर्व के हालात उन बुढ्ढों को याद होंगे जिन्होंने किशोरावस्था में भारत की खोज सीरियल देखा होगा…
सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ
किसने ढका था
उस पल तो
अगम अतल जल भी कहां था….
बस एक बिंदु था। सघनतम से सघनतम से सघनतम। उसी में मैं सन्निहित था। नहीं। वह बिंदु मैं ही था। बिंदु के नाते एक फायदा मुझे यह मिला कि मुझे गोलाई का अहसास था। इसीलिए अन्तःस्फोट करने के बाद गोले बनाने लगा। गोले के ऊपर गोले। गोले के ऊपर गोले। छोटे गोले। बड़े गोले। ठंडे गोले…जलते गोले। मैं गोले बनाता और वे अंतरिक्ष में इधर-उधर बह जाते। मेरी दशा हवा में साबुन के बुलबुले उड़ाते बच्चे की तरह थी। पुलकित। गदगद। दरअसल, था तो मैं बच्चा ही, जिसे खाली स्लेट पर चित्र बनाने थे।
मैंने करोड़ो साल चित्र बनाए। एक दिन जंगल बनाया तो अगले दिन उसे चरने वाला हिरन। फिर जंगल को बचाने के लिए शेर बना दिया। बहुत रुच-रुच कर, बड़ी मेहनत से बनाया है सब कुछ। एक रचना दूसरी का पेट भरे और दूसरी तीसरी का। सेल्फ ससटेनिंग, आत्मनिर्भर सृष्टि। दसियों करोड़ साल शांति रही। जीवधारी पैदा होते थे और मर जाते थे। जब किसी जीवविशेष की संख्या बढ़ती तो बैक्टीरिया और वायरस संतुलन स्थापित कर देते।
एक दिन मैं अपने रचे संसार को निहार रहा था। हालांकि कम्पटीशन में कोई नहीं था, फिर भी मुझे मादक गर्व हो उठा। मैंने धरती से पूछा: गुंजाइश है। धरती बोली ओके। और, मैंने तुझे, है मानव तुझे बना कर धरती पर भेज दिया। तूने नीचे गिरते ही धरती माता का जयकारा लगाया और धरती माता को खाने लगा। सारे जीवधारी भौंचक। तू सब कुछ खा रहा था। गाय, बकरी, मछली, परिंदे और पैंगोलिन, चमगादड़ ही नहीं तू सोना, चांदी, पत्थर, बालू–सब कुछ खाए डाल रहा था।
आज हालत यह है कि तू जैसे ही बंदेमातरम बोलता है, धरती भयाक्रांत होकर मुझे कॉल लगा देती है। दहाड़ मारकर रोते-रोते कहती है: रोक लो अपने मुचन्डे को..फिर मेरी छाती फाड़ने आ रहा है।
तू ही बता मैं क्या करूँ? मैंने लाड़ के कारण तुझे इतनी बुद्धि दे दी है कि तू लगता है कि फ्रैंकेंस्टीन बनता जा रहा है। तुझे रास्ते पर लाने के लिए चेचक, प्लेग, कॉलरा, फ्लू जैसी बीमारियों की चाबुक थीं लेकिन एंटीबायोटिक और वैक्सीन के बाद तू मुझे अंगूठा दिखाने लगा है। दरअसल जैसे हिरनों की संख्या पर काबू के लिए मैंने शेर बनाए थे , वैसे ही आदमी के पीछे मैंने रोग लगा दिए थे। चलो, तुझे मौका देता हूँ। कोरोना के साथ सुधर जा। सबसे मिलजुल कर रह। यह धरती तेरे बाप की नहीं, तेरे बच्चों की है।
यह मेरी पहली और अंतिम चिट्ठी है।
सबको प्यार के साथ
तुम्हारा भगवान।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)