गर्भवती हथिनी की हत्या के खिलाफ जानवरों ने खोला मोर्चा, शेरखान ने दी धमकी
शेरख़ान ने कहा, मुझे वह वक़्त भी याद है जब यह आदमी हमारे साथ जंगल में रहता था। एक दिन यह पिछले पावों पर खड़ा हो गया और फिर सारे जंगल में शोर मचाता फिरता रहा।

नई दिल्ली। शेरख़ान का इशारा हुआ और कोयल ने मंच की ज़िम्मेदारी सम्भालते हुए मच्छर जी से बोलने का आग्रह किया। मच्छर जी बेआवाज़ उड़कर माइक तक आए लेकिन उनसे पहले शेरख़ान बोलने लगे, ” दखल दे रहा हूं क्योंकि यह बताना जरूरी है कि मच्छर धरती का सबसे बहादुर प्राणी है। एक बूंद खून के लिए मौत से रोज़ाना भिड़ने वाला दूसरा शख्स मेरी प्रजा में नहीं। तो, तालियों से स्वागत कीजिए मच्छर जी का।”
मच्छर जी ने माइक संभाल लिया और अपनी महीन, सुरीली आवाज़ में बोले, “आप सबको मेरा लाल सलाम। पालघाट में मारी गई हथिनी बहन को आज इस मंच से श्रद्धांजलि देता हूं और आदमी को चेतावनी कि उसने अगर इस तरह की हरकत दोबारा की तो मैं ऐसी तबाही मचाऊंगा कि लोग कोरोना को भूल जाएंगे। याद रखना कि हर साल दस लाख लोग मेरे दंश से मरते हैं।…दस लाख मानव मौतों को लेकर गुस्सा आए तो आदमी सोच ले कि वह कितने जीव रोज़ मारता है…और हां, मेरे सर्वनाश की साजिश रचने से पहले इतना और जान ले कि पशुपतिनाथ ने कोई चीज़ ख्वामख्वाह नहीं बनाई है।
मैं कितना इम्पोर्टेन्ट हूं, अगर बताऊं तो किताब लिख जाए। तू बस इतना जान ले कि मेरे लारवा पानी मे पड़े आर्गेनिक कचरे को खाते रहते हैं। तभी तुझे नदी, तालाब का साफ पानी मिलता है। ये लारवा, मछली को बहुत प्रिय हैं। और, मछली किसे प्रिय है?” मच्छर ने खुद को आदमी से वरिष्ठ बताते हुए कहा कि मैं डेढ़ करोड़ साल पहले डायनासोरों के साथ खेलता था। आदमी तो 60 लाख साल का बच्चा है।
मच्छर जी के बाद लगभग सभी जीवों ने हथिनी की हत्या पर आक्रोश जताया। हाथी ने गणेश चतुर्थी, सिद्धि विनायक, अष्टविनायक की पूजा को स्वांग करार देते हुए आदमी को फ्रॉड एवं धरती का बोझ बताया। बन्दर ने भी आदमी के आचरण पर दुख जताया और कहा कि हमारी पीड़ा गहरी है क्योंकि आदमी भाई लगता है। आख़िरी भाषण शेरख़ान ने दिया। उन्होंने आदमी की श्रेष्ठता की सोच को सिरे से खारिज़ किया। ऐसा क्या है जो हम नहीं कर पाते। आदमी(बहुत) खाता है: हम भी (संतुलित) खाते हैं। वह सोता है: हम सोते हैं। वह बच्चे पैदा करता है: हम भी करते हैं। यही तीन सुख हैं जो हाथी और चीटी दोनों को उपलब्ध हैं। मानव मंगल पर जाकर भी भोजन, नींद और नर/मादा तलाशेगा। हमारा बीटल यही सुख धरती पर गोबर की गोली लुढ़काते हुए हासिल कर लेता है।
शेरख़ान ने कहा, मुझे वह वक़्त भी याद है जब यह आदमी हमारे साथ जंगल में रहता था। एक दिन यह पिछले पावों पर खड़ा हो गया और फिर सारे जंगल में शोर मचाता फिरता रहा। सबके पास जाता और कहता, मैं अब जानवर नहीं रह गया। सारा जंगल उस दिन हंसता रहा था। फिर एक दिन यह हिरन की खाल लपेट कर आ गया और सबको नंगा-नंगा कहता रहा। एक दिन इसने पत्थर मार-मार के 20 खरगोश मार डाले। जंगल में भोजन संग्रह पर रोक है। मुझे आदमी को आखिरकार जंगल से बाहर खदेड़ना पड़ा।
शेरख़ान ने कहा: आदमी में एक बड़ा ऐब यह है कि यह गर्व बहुत करता है। काहे का गर्व!! आदमी थूकता है तो कोरोना फैलता है। मधुमक्खी थूकती है तो शहद बनता है। ज़रा-सी चीटी अपने वजन का 20 गुना उठा लेती है। और गोबरखोर गुबरैला वज़न का सौ गुना उठाता है। तो भी यह नकली दोपाया ऐंठा घूमता है। अरे, उसैन बोल्ट भी चीते से तीन सेकंड धीमे हैं।
शेरख़ान ने कहा: आदमी की एकमात्र उपलब्धि कूड़ा उत्पादन है। हर दिन 35-40 लाख टन कचरा। अरे, हम जंगली जानवर भी यहां रहते आए हैं। कोई कूद नहीं। यहां मल-मूत्र खाद है। मृत शरीर ह्यूमस। गुटखा-तम्बाकू खाते नहीं। थूकने का हुनर हमें वैसे भी नहीं आता। अंत में शेरख़ान ने आदमी को सुधरने की चेतावनी दी और कहा कि न मानने पर पशुपतिनाथ से शिकायत की जाएगी। सभा का समापन भृमर गीत से हुआ। इसके लिए कोयल ने भँवरा जी को आमंत्रित किया। भँवरा जी ने गीत सुनाने से पहले स्पष्ट किया कि उसे यह गीत फूल का है। आदमी से त्रस्त एक फूल का। फूल ने भँवरे को सुनाया था। ये रहा गीत
हम हैं फूल हमारा मजहब हंसना, महकाना, सरसाना।
तुम हो कौन तुम्हारा मजहब क्यों धरती में आग लगाना।।
हमने डायनासुर देखे हैं तुम जिनके फॉसिल चुनते हो।
खशबू की सौं हमने देखा बड़े बड़ों का आना-जाना।।
पूजे है अवतार पयम्बर तुझसे भी ज़्यादा हमने।
धर्म हमारा खुशबू वाला ना बदला तो ना बदला ना।।
गंगा बैतरणी कर डाली फाड़ा तूने नील गगन।
यह जग कितना सुंदर होता जो तू पैदा ही होता ना।।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)