World Cancer Day 2023: हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। बदलती जीवनशैली के कारण अब कैंसर का असर जवान से लेकर बूढ़े तक पर पड़ता दिखाई दे रहा है। इस बीच कैंसर को लाइलाज बीमारी के रूप में देखने की दृष्टि से कई लोगों के मन में इस बीमारी को लेकर डर है।
अंतरराष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ (UICC) ने विश्व कैंसर दिवस को “ग्लोबल इंटीग्रेटेड इवेंट” के रूप में घोषित किया है। इसका मतलब यह भी है कि दुनिया भर के लोग कैंसर से लड़ने के लिए लोगों को पहचानने, उनकी देखभाल करने और उन्हें सशक्त बनाने के साथ-साथ उन लोगों की भावना को मजबूत करने के लिए एक साथ आते हैं जो बीमारी पर काबू पाने और अपने जीवन को फिर से पाने की आशा रखते हैं।
विश्व कैंसर दिवस का इतिहास 2023
4 फरवरी, 2000 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में न्यू मिलेनियम के लिए विश्व कैंसर सम्मेलन के दौरान आयोजित किया गया। उसी दिन, यूनेस्को के तत्कालीन महानिदेशक कोइचिरो मात्सुरा और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जैक्स शिराक ने कैंसर के खिलाफ पेरिस चार्टर पर हस्ताक्षर किए। तभी से इस दिन को हर साल ‘विश्व कैंसर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
युवाओं में कैंसर
पिछले 10 सालों में कैंसर के मामलों में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि इससे होने वाली मौतों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह 1990 और 2016 के बीच मेडिकल जर्नल ऑफ ऑन्कोलॉजी द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कैंसर दुनिया भर में मौत का दूसरा प्रमुख कारण है। पहले डॉक्टरों का मानना था कि कैंसर उम्रदराज लोगों में पाई जाने वाली बीमारी है। लेकिन अब यह बात सामने आ रही है कि युवाओं में भी कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। WHO के अनुसार, कैंसर से होने वाली मौतों में से एक-तिहाई का कारण अधिक वजन होना, फलों-सब्जियों का कम सेवन करना, व्यायाम न करना, तंबाकू और शराब का सेवन करना है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. एस. वी एस. देव के मुताबिक ”तंबाकू का सेवन करने वालों में धूम्रपान शुरू होने के 10-12 साल बाद ही कैंसर की पहचान हो जाती है। हमारे यहां ग्रामीण युवा भी हैं जो बिना धुएं वाले तंबाकू यानी पत्ते, तंबाकू, खैनी, गुटखा का सेवन कर रहे हैं। कम उम्र में भी इसके परिणाम जाने बिना इन चीजों का सेवन इन युवाओं ने करना शुरू कर दिया होगा। तो अब 22-25 साल के युवा हमारे पास कैंसर के इलाज के लिए आ रहे हैं।”
भारत में कैंसर का इतिहास
भारत में आयुर्वेदिक और सिद्ध काल की पाण्डुलिपियों में कैंसर जैसे रोगों और उनके उपचार का उल्लेख मिलता है। जर्नल ऑफ ग्लोबल ऑन्कोलॉजी के अनुसार, मध्यकालीन भारतीय साहित्य में कैंसर का उल्लेख बहुत कम मिलता है, लेकिन कैंसर के मामलों की खबरें 17वीं शताब्दी में सामने आने लगीं। 1860 और 1910 के बीच, भारतीय डॉक्टरों द्वारा कैंसर के मामलों की जांच, निष्कर्ष और केस रिपोर्ट के अंश प्रकाशित किए गए थे।
महिलाओं में कैंसर
‘द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी’ (1990-2016) के अनुसार, भारत में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सबसे ज्यादा हैं। इस अध्ययन के अनुसार महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के बाद सर्वाइकल कैंसर, पेट का कैंसर, कोलन और रेक्टल कैंसर और होंठ और कैविटी कैंसर सबसे आम प्रकार के कैंसर हैं।
धर्मशिला राहत सपोर्टिव & पैलियाटिव केयर सेंटर के डायरेक्टर डॉ सुवर्षा ने जनसत्ता डॉक्टर से बातचीत में बताया कि सामाजिक कलंक और जागरूकता की कमी के कारण देश में क्रोनिक बीमारियों की वजह से मौतें ज्यादा हो रही हैं। ब्रेस्ट कैंसर के मामले में देश के कुछ हिस्सों की महिलाएं आज के समय में भी मैमोग्राफी या सेल्फ एग्जामिनेशन कराने में संकोच करती हैं। ठीक इसी तरह अन्य कैंसर की स्थिति में भी लोग डॉक्टर को नही दिखाते हैं।
वहीं मरीज डॉक्टर को तब दिखाते हैं जब इलाज करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा शहरीकरण, जनसंख्या विस्फोट, और बेरोजगारी से देश में लाइलाज, क्रोनिक, प्रोग्रेसिव और जानलेवा बीमारियों की घटनाएं बढ़ रही हैं। लगभग 60 से 70% कैंसर के मरीज हॉस्पिटल में तब भर्ती होते हैं जब बीमारी गम्भीर अवस्था में पहुंच चुकी होती है। जल्दी डायग्नोसिस, स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट और पैलियाटिव केयर की कमी के कारण लोगों में कैंसर से मौतें ज्यादा होती हैं।
भारत में कैंसर की स्थिति
लैंसेट जर्नल का कहना है कि 2035 तक कैंसर के मामले बढ़ेंगे और यह संख्या 10 लाख से बढ़कर 17 लाख हो जाएगी। जर्नल ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी के मुताबिक, भारत में 18 लाख मरीजों पर सिर्फ 1600 विशेषज्ञ ही उपलब्ध हैं यानी औसतन 1125 कैंसर मरीजों पर एक ऑन्कोलॉजिस्ट।
डॉ सुवर्षा के मुताबिक मरीज़ की जिंदगी और जीवित रहने की दर में सुधार लाने के लिए पैलियाटिव केयर प्रदान करने के लिए भारत में बहुत कम समर्पित पैलियाटिव सेन्टर हैं। छोटे शहरों में कैंसर होने के रिस्क फैक्टर, लापरवाही, देर से डायग्नोसिस, खराब इलाज और पैलियाटिव केयर सुविधाओं के बारे में जागरूकता की कमी के कारण कैंसर से इतनी ज्यादा मौतें हो रही हैं। पैलियाटिव केयर एक पुरानी देखभाल परंपरा है और इसलिए अधिकांश लोगों को क्रोनिक बीमारियों से पीड़ित मरीजों की मदद करने के लिए इसके बारे में जानकारी नही है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने जवाब दिया कि भारत में वर्ष 2022 में कैंसर के 14,61427 मामले थे, जो पिछले दो वर्षों की तुलना में अधिक है। साल 2021 में भारत में कैंसर के 14,26447 मामले सामने आए थे, जबकि साल 2020 में 13,92,179 लोग कैंसर से पीड़ित बताए गए थे। साल 2018 में भारत में कैंसर के 15.86 लाख मामले पाए गए थे। तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने 2018 में लोकसभा के प्रश्नकाल के दौरान एक प्रश्न का उत्तर देते कहा था कि इन मरीजों के इलाज के लिए सर्जरी, रेडियोथैरेपी, कीमोथैरेपी और पैलिएटिव केयर यानी दर्द निवारक सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं।
वेरियन मेडिकल सिस्टम्स में गवर्नमेंट अफेयर्स की डायरेक्टर विनीत गुप्ता का कहना है कि कैंसर आज हमारे देश में हृदय रोगों के बाद मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। उपचार के लिए, तीन मुख्य स्तंभ हैं- सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी। विश्व स्तर पर, लगभग 50% कैंसर रोगियों की रेडिएशन थेरेपी तक पहुंच है। हालांकि, भारत में ये आंकड़े 18 से 20% हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देशों के अनुसार, भारत को प्रति मिलियन जनसंख्या पर एक लीनियर एक्सीलरेटर की आवश्यकता है।
सरकार को 4-5 वर्षों की अवधि में 300 से 400 जिलों में कैंसर देखभाल बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए एक समग्र कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता है, इसके लिए रेडिएशन थेरेपी केंद्र स्थापित करने के लिए निजी खिलाड़ियों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है। यह रेडिएशन थेरेपी केंद्र स्थापित करने के लिए दिशानिर्देशों को सूचीबद्ध करते हुए एक नीति पत्र तैयार कर सकता है। डायग्नोस्टिक्स और पैथोलॉजी स्पेस में ऐसे PPP(पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल की सफलता देखी गई है।