Coronary artery disease: कोरोनरी धमनी रोग (coronary artery disease) एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोरोनरी आर्टरीज के अंदर प्लाक का निर्माण होता है। ये आर्टरीज हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन युक्त ब्लड की आपूर्ति करती हैं। जब कोरोनरी आर्टरीज संकुचित या बंद हो जाती हैं, तो ऑक्सीजन से भरपूर ब्लड हृदय की मांसपेशियों (Heart Muscles) तक नहीं पहुंच पाता है।
इससे गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें दिल का दौरा, स्ट्रोक या मौत भी शामिल है। लेकिन कोई क्या खाता है, कितनी बार व्यायाम करता है, कितना वजन कम करता है और तनाव को कैसे प्रबंधित करता है जैसे कुछ परिवर्तन अपनी लाइफस्टाइल में लाकर हृदय रोग पर ब्रेक लगाने में मदद मिल सकती है।
इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख के मुताबिक दिल का ख्याल रखने के लिए कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। जबकि हृदय संबंधित रोगों को ठीक करने की एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ सकता है। हृदय से संबंधित रोगों से बचने के लिए लाइफस्टाइल और डाइट अहम भूमिका निभाते हैं। फोर्टिस हार्ट एंड वैस्कुलर इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के चेयरमैन डॉ. टीएस क्लेर का कहना है कि हमें यानि भारतीयों को दो मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। वह है कोलेस्ट्रॉल, विशेष रूप से कम डेंसटी वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) जो प्लाक बिल्ड-अप को तेज करता है। दूसरा मौजूदा प्लाक बनने की प्रक्रिया को स्थिर करना है क्योंकि हम इसे गायब या खत्म नहीं कर सकते हैं।
प्लाक कब बनता है ?
डॉ. टीएस क्लेर के मुताबिक प्लाक का निर्माण तब होता है जब कोलेस्ट्रॉल आर्टरी वॉल पर चिपक जाता है और इसे मोटा और सख्त बना देता है। वहीं बड़े प्लाक आर्टरीज सिकोड़ देते हैं जिससे ब्लड का फ़्लो कम हो जाता है। लेकिन छोटे प्लाक और खतरनाक होते हैं जो ब्लड फ़्लो को पूरी तरह से रोक सकते हैं जिसके कारण दिल का दौरा, स्ट्रोक या मौत जैसी घटना हो सकती है।
आर्टरी ब्लॉकेज को रिवर्स किया जा सकता है ?
आचार्य बालकृष्ण के मुताबिक आयुर्वेद के माध्यम से आर्टरी ब्लॉकेज को खोला जा सकता है। इसके लिए अनार का सेवन, अर्जुन वृक्ष की छाल, दालचीनी आदि का उपयोग कर इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
वहीं डॉ. टीएस क्लेर के मुताबिक आमतौर पर कोलेस्ट्रॉल के मरीजों के जोखिम कारकों के आधार पर परीक्षण करते हैं, जिसमें हृदय का सीटी स्कैन, ट्रेडमिल टेस्ट, एमआरआई और कैरोटिड अल्ट्रासाउंड शामिल हो सकते हैं। इसके बाद ही उन्हें लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ ही लिपिड कम करने वाली दवा शुरू करते हैं। इसके साथ ही जिन्हें बहुत अधिक जोखिम का खतरा नहीं होता है उन्हें 3 से 6 महीने का समय दिया जाता है ताकि खुद को ठीक कर सकें।
जिसमें डाइट पर ध्यान, लाइफस्टाइल में बदलाव, धूम्रपान न करना, मछली और चिकन को छोड़कर वेज डाइट के साथ 130/80 रखने के लिए कहा जाता है और आवश्यकता पड़ने पर इसे नियंत्रित करने के लिए दवा भी दी जाती है। एंटीलिपिडेमिक थेरेपी शुरू करने के तीन से छह महीने के भीतर प्लाक को बनने से रोका जा सकता है।