सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक मर्डर केस (Murder Case) में आजीवन कारावास की सजा पाए एक शख्स की सजा रद्द कर दी। इसका आधार चश्मदीद की गवाही में तमाम खामियों को बनाया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच के सामने नरेंद्र सिंह केशुभाई जाला नाम के शख्स ने अपनी सजा के खिलाफ अपील की थी। आरोपी को राम नाम के एक शख्स के मर्डर के आरोप में साल 2003 में गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद में हाईकोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी थी।
क्या है पूरा मामला?
पूरा मामला राम नाम के शख़्स के मर्डर से जुड़ा था। इस मर्डर केस (Murder Case) के एकमात्र चश्मदीद नीरव बिपिनभाई पटेल ने दावा किया कि उन्होंने पूरी घटना को अपनी आंखों से देखा था। अपने बयान में उन्होंने दावा कि वह अपने मृत दोस्त के साथ सड़क किनारे बैठे थे। इसी दौरान आरोपी एक अन्य शख्स के साथ मोटरसाइकिल से आया और मृतक को बंदूक दिखाते हुए अपना पैसा मांगने लगा और फिर गोली मार दी। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट में चश्मदीद के बयान के आधार पर आरोपी को उम्रकैद की सजा सुना दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गवाही में तमाम खामियां पाई।
सुप्रीम कोर्ट ने कैसे पकड़ लिया झूठ?
Live Law की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा तो उच्चतम न्यायालय गवाह की बातों पर भरोसा नहीं कर पाया। गवाह ने बताया कि जब आरोपी गोली मारने के बाद चले गए तो वह इतना डर गया था कि अपने दोस्त को लहूलुहान हालत में छोड़कर अपने चाचा को पूरी बात बताने उनके घर चला गया। उसके चाचा ने उसे सलाह दी कि घर जाकर सो जाए। उसके बाद अगले दिन वह मृतक राम के घर गया और उनकी मां और बहनों को घटना की जानकारी दी।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि घटना के चश्मदीद की गवाही अप्राकृतिक और विश्वास करने लायक नहीं है। खासकर वह अपने दोस्त को लहूलुहान हालत में छोड़कर सोने चला गया, जो विश्वास करने लायक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात भी नहीं मानी कि वह (गवाह) घटना के बाद डर गया था, क्योंकि घटनास्थल से महज तीन-चार मिनट की दूरी पर पुलिस मुख्यालय था और वह वहां भी जा सकता था।
सजा पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सजा पलटते हुए कहा कि इस मामले का गवाह एक वयस्क और परिपक्व आदमी है। 24 साल का यह शख्स ग्रॉसरी शॉप चलाता है और अनपढ़ भी नहीं है। इसके बावजूद उसने अपने दोस्त की जान बचाने के लिए कुछ नहीं किया। उसका यह दावा कि वह घर जाकर सो गया, जबकि घटनास्थल से महज 2-3 मिनट की दूरी पर पुलिस हेडक्वार्टर था, कतई विश्वास करने लायक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा- गवाह ने अपने दोस्त को लहूलुहान हालत में छोड़ दिया। न तो अस्पताल पहुंचाया और ना ही किसी से मदद मांगी। इस तरह अपने दोस्त को ऐसी हालत में छोड़कर सोने चले जाना, अस्पताल न पहुंचाना और किसी से कोई मदद नहीं मांगना सत्य प्रतीत नहीं होता है। उसने मृतक के परिजनों को भी घटना की जानकारी नहीं दी। बाद में जब पुलिस ने पूछताछ की तब उसने आरोपी का नाम बताया।