Mahatma Gandhi Death Anniversary 2023: 75 साल पहले आज ही के दिन 30 जनवरी को महात्मा गांधी दिल्ली के बिरला भवन में प्रार्थना के लिए जा रहे थे। 35 वर्षीय नाथूराम गोडसे ने उनके सीने में 3 गोलियां उतार दी थीं। 15 मिनट के अंदर ही महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का निधन हो गया था। नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) को वहां मौजूद मिलिट्री के जवानों ने पकड़ लिया था और उसकी पिस्तौल छीन ली थी। गोडसे की भीड़ ने पिटाई करनी शुरू कर दी और किसी तरह पुलिस उसे छुड़ाकर तुगलक रोड थाने ले गई और मामले में एफआईआर दर्ज की गई।
कौन था गांधी की हत्या का जांच अधिकारी (IO) ?
महात्मा गांधी की हत्या के बाद इस केस के जांच की जिम्मेदारी जमशेद दोराब नागरवाला (Jamshed Dorab Nagarvala) को सौंपी गई जो जिम्मी नागरवाला के नाम से भी मशहूर थे। जिम्मी उस वक्त मुंबई की स्पेशल ब्रांच के डिप्टी कमिश्नर हुआ करते थे और बाद में आईजी बने। फिर इंडियन हॉकी फेडरेशन की अगुवाई भी की। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी (Tushar Gandhi) अपनी किताब ‘लेट्स किल गांधी’ (Let’s Kill Gandhi) में लिखते हैं कि जमशेद दोराब नागरवाला वालों को इस केस का IO (इन्वेस्टिगेटिव ऑफिसर) इसलिए बनाया गया था, क्योंकि वह ना तो हिंदू थे और न मुसलमान। एक न्यूट्रल कम्यूनिटी से आते थे।
लाल किले में चला था मुकदमा
महात्मा गांधी की हत्या के बाद एक स्पेशल कोर्ट का गठन किया गया और मई 1948 को दिल्ली के लाल किले में ट्रायल शुरू हुआ। गांधी के हत्या से ठीक पहले यहीं आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) पर मुकदमा चला था और उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया गया था। मुकदमे की सुनवाई स्पेशल जज जस्टिस आत्मा चरण कर रहे थे, जो आईसीएस अफसर थे। प्रॉसीक्यूशन की तरफ से मुंबई के एडवोकेट जनरल वीके दफ्तरी मुकदमा लड़ रहे थे, जो बाद में भारत के सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल भी बने।

गोडसे और आप्टे को हुई फांसी
10 फरवरी 1949 को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। नाथूराम गोडसे, नायारण आप्टे और 5 अन्य को दोषी ठहराया गया। गोडसे और आप्टे को मौत की सजा सुनाई गई। जबकि विनायक दामोदर सावरकर को बरी कर दिया गया। फैसले में यह भी कहा गया कि दोषी चाहें तो 4 दिन बाद इस फैसले के खिलाफ अपील भी कर सकते हैं और सभी ने पंजाब हाई कोर्ट में अपील की।
पंजाब हाई कोर्ट ने अपील पर 21 जून 1949 को अपना फैसला सुनाया और लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। सिर्फ दत्तात्रेय परचुरे और शंकर किस्तैया को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
वायसराय ने खारिज कर दी थी दया याचिका
इसके बाद दोषियों ने प्रिवी काउंसिल के सामने स्पेशल अपील दाखिल की, जो ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारत का सर्वोच्च न्यायालय था। बाद में साल 1950 में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जगह ले ली। प्रिवी काउंसिल ने पिटिशन रिजेक्ट कर दी। बाद में तत्कालीन गवर्नर जनरल ने भी नाथूराम गोडसे और आप्टे की दया याचिका खारिज कर दी और 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में दोनों को फांसी दे दी गई थी।