चीन की आर्थिक स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। लोग बैंक में जमा अपना पैसा निकाल रहे हैं। बेरोजगारी बढ़ी है। घरेलू आय में कमी आयी है। चीन की GDP में 30% हिस्सेदारी रखने वाले रियल एस्टेट की हालत भी पस्त हो चुकी है। करीब 9 करोड़ घर बनकर तैयार हैं लेकिन खरीदार नहीं हैं।
देश की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी चाइना एवरग्रांडे ग्रुप समेत 21 प्रमुख डेवलपर्स ने पिछले साल बैंकों का लोन नहीं चुकाया है। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने चेतावनी दी है कि कुल चीनी डेवलपर्स में से करीब 20% दिवालिया हो सकते हैं। एक अध्ययन के अनुसार जनवरी और जून के बीच आवास की बिक्री में 27% की गिरावट आई है। जुलाई की बिक्री जून से 13% कम थी। जुलाई में लगातार 11वें महीने घरों की कीमतों में गिरावट आई है। एसएंडपी का अनुमान है कि 2022 में संपत्ति की बिक्री में एक तिहाई की गिरावट हो सकती है।
ये तो हो गई घर बनाने और न बिकने की बात। लेकिन जिन्होंने घर खरीद लिया है, वो ईएमआई देने की हालत में नहीं है। सभी बैंक ऋणों में से लगभग 30% प्रॉपर्टी से संबंधित हैं। जिस देश पर छोटे-छोटे विद्रोहों को भी कुचलने का दाग है, उस देश में अकल्पनीय रूप से सैकड़ों हजारों नागरिक एक साथ होम लोन चुकाने से इनकार कर रहे हैं। एएनजेड रिसर्च का अनुमान है कि ये बहिष्कार लगभग 222 अरब डॉलर के ऋण को प्रभावित कर सकता है।
इस तरह बैंकों पर दोहरी मार पड़ी है। एक तरफ प्रॉपर्टी डेवलपर्स की हालत खराब है। दूसरी तरफ प्रॉपर्टी बायर्स की। बैंकों के आर्थिक रूप से टूटने की अफवाहों के बाद नागरिक अपनी जमा राशि निकालने की कोशिश कर रहे हैं। इन सब के बीच पिछले वर्ष की तुलना में पिछली तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था केवल 0.4% बढ़ी है। तमाम प्रयासों के बावजूद देश जीडीपी के वृद्धि दर के अपने लक्ष्य 5.5% को नहीं छू पाया है। The International Monetary Fund (IMF) ने अपने अनुमान में चीन के 2023 का जीडीपी का ग्रोथ रेट 5.1% से घटाकर 4.6% कर दिया है।
ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि जिस चीनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक विकास का इंजन माना जाता है, वह इस स्थिति में कैसे पहुंच गया और भारत समेत दुनिया पर इसका क्या असर पड़ने वाला है?
चीन की अर्थव्यवस्था
साल 2001 में चीन वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में शामिल हुआ। कुछ ही साल में चीन अमेरिका को पछाड़कर वैश्विक व्यापार प्रणाली का सेंटर बन गया। Apple और Tesla सहित कई बड़ी वैश्विक कंपनियों के चीन में बड़े मैन्युफैक्चरिंग बेस हैं। विश्व निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 2001 में 4% से बढ़कर 2021 में 15% हो गई है। दूसरी ओर, इसी अवधि के दौरान अमेरिका की हिस्सेदारी 12% से घटकर 8% हो गई है।
इस दौरान चीन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को दुनिया भर में पहुंचाने का भी उस्ताद बन गया। महामारी ने इन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी क्योंकि दुनिया ने बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण को अपनाया। लेकिन कोविड -19 महामारी का कारण जब चीन बुरी तरह प्रभावित हुआ तो इलेक्ट्रॉनिक सामानों की आपूर्ति में बड़े पैमाने पर कमी। इस तरह विश्व अर्थव्यवस्था पर चीनी व्यापार का प्रभाव स्पष्ट रूप से नजर आया।
कोरोना महामारी से निपटने के लिए जीरो-कोविड नीति ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को झटका दिया है। वायरस के कहीं भी सामने आते ही तुरंत लॉकडाउन लगाने और लंबी अवधि के क्वारंटाइन नीति के कारण उत्पादों के निर्माण और ब्रिकी दोनों में कमी आयी है। जीरो-कोविड नीति के कारण कई शहरों में महीनों तक श्रमिकों को काम करने से रोका गया, जिससे कारोबार बंद हो गए। सप्लाई चेन कमजोर पड़ गया। देश में बढ़ी बेरोजगारी से घरेलू आय में भी कमी आयी है।
हालांकि कोरोना महामारी के बाद जहां लुढकती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए भारत, अमेरिका और यूरोपीय देशों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। वहीं चीन के संट्रल बैंक ने चौकाते हुए ब्याज दर में कटौती की है। चीन ने यह कदम मांग को बढ़ाने के लिए उठाया है।
कर्ज बांटना भी पड़ा महंगा
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना (Belt and Road’ initiative- BRI) के लिए चीन ने जरूरतमंद और गरीब देशों को जमकर कर्ज दिया। BRI चीन की एक अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं है जिसके तहत यूरोप तथा अफ्रीका के बीच भूमि और समुद्र क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाना है। इस विकास एवं संपर्क परियोजना के पूरा होने से चीन सड़क, रेल एवं जलमार्गों के माध्यम से यूरोप, अफ्रीका और एशिया से जुड़ जाएगा।
कोविड के कारण यह परियोजना लगभग ठप पड़ गई है। ज्यादातर देश चीन से लिए गए कर्ज का ब्याज भी लौटाने की हालत में नहीं है। जिन लो-इनकम और मिडिल इनकम वाले देशों को कर्ज देकर चीन फंसा हैं, उन देशों की चीन के प्रति देनदारी खुद के जीडीपी से 10% ज्यादा है। यह आंकड़ा डॉ ब्रैंड पार्क्स के एक अध्ययन से सामने आया है। पार्क्स वर्जिनिया के विलियम एंड मैरी कॉलेज में एड डाटा के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। डॉ पार्क्स के अध्ययन की माने तो चीन का BRI के तहत दिया छिपा कर्ज (हिडेन डेट) 385 अरब डॉलर हो सकता है।
भारत कैसे उठा सकता है फायदा?
चीन का संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों प्रदान करता है। इन वर्षों में चीन के साथ भारत का व्यापार, विशेष रूप से आयात तेजी से बढ़ा है। 2013-14 में भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी 10.7 फीसदी थी, जो 2020-21 में बढ़कर 16.6 फीसदी हो गई।
इसी अवधि में चीन में भारत के निर्यात का हिस्सा 6.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गया है। चीन को भारत का प्रमुख निर्यात रसायन, खनिज ईंधन आदि हैं, जबकि मुख्य आयात इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि हैं। चीन में संकट का अर्थ है कि भारत का व्यापार क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। जबकि भारत का निर्यात चीन के लिए उतना आवश्यक नहीं है। मनी कंट्रोल पर प्रकाशित अहमदाबाद यूनिवर्सिटी के फ़ैकल्टी अमोल अग्रवाल के लेख में सुझाव दिया गया है कि भारत अन्य देशों से आयात मांगकर इस चुनौती को अवसर में बदल सकता है।
भारत समय के साथ उन उत्पादों को स्थानीय स्तर पर बनाने की क्षमता भी विकसित कर सकता है। वास्तव में चीनी संकट भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में खुद को पेश करने का अवसर प्रदान करता है। भारत में रोजगार के अवसरों की तलाश करने वाली एक बड़ी युवा आबादी है, और यदि कोई भारत में वैश्विक निवेश ला सकता है, तो यह सभी के लिए एक जीत का अवसर होगा।
आर्थिक चुनौतियों को अवसरों में बदलने के अलावा भारत एशिया और वैश्विक दोनों स्तरों पर खुद को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है। दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में से अधिकांश – श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश – संकट का सामना कर रहे हैं। उनमें से अधिकांश चीन से सहायता पर निर्भर रहे हैं, जबकि चीनी अपने स्वयं के संकट को देखते हुए कोई वित्तीय मदद नहीं कर रहे हैं। भारत पाकिस्तान को छोड़कर इन सभी संकटग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं को सहायता प्रदान कर रहा है, जो देश को इस क्षेत्र में खुद को स्थापित करने में मदद कर सकता है।
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