खादिजा खान
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा है कि वह किसी सूरत में ‘फोरम शॉपिंग’ की इजाजत नहीं देंगे। उन्होंने एक वकील को कड़ी फटकार भी लगाई। दरअसल, सीजेआई चंद्रचूड़ 19 मई को केसेज की मेंशनिंग कर रहे थे। इसी दौरान वकील ने अपना केस मेंशन किया। वकील ने एक दिन पहले यानी 18 मई को जस्टिस जोसेफ के सामने भी यही केस मेंशन किया था। यह देख जस्टिस चंद्रचूड़ नाराज हो गए।
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि पहले आप जस्टिस जोसेफ के पास गए थे और आज यहां आ गए। फिर तो आप किसी और जज के पास भी जा सकते हैं…अपनी पसंद का जज चुन सकते हैं। बतौर चीफ जस्टिस, मैं किसी भी हालत में फोरम शॉपिंग (Forum Shopping) की इजाजत नहीं दूंगा। जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा, ‘मैं बार मेंबर्स को भी मैसेज देना चाहता हूं कि आपके सामने एक मजबूत चीफ जस्टिस हैं, और इस तरह की प्रैक्टिस की अनुमति कतई नहीं मिलेगी’।
क्या है फोरम शॉपिंग?
जब कोई वकील अथवा वादी अपने केस को जानबूझकर किसी विशेष जज या न्यायालय में ट्रांसफर कराने का प्रयास करता हैं, और उन्हें लगता है कि इससे जजमेंट उनके अनुकूल हो सकता है तो कानून की भाषा में इसे ‘फोरम शॉपिंग’ कहा जाता है। वेबस्टर्स डिक्शनरी के मुताबिक फोरम शॉपिंग का मतलब ऐसी अदालत का चुनाव है, जहां से एडवोकेट अथवा वादी के पक्ष में फैसला आ सकता है।
कोई भी एडवोकेट मुकदमा दायर करने से पहले एक रणनीति बनाता है और तय करता है कि याचिका दायर करने का सबसे सही मंच कौन सा होगा। उदाहरण के लिए कई बार संबंधित वकील हाईकोर्ट न जाकर PIL के जरिये सीधे सुप्रीम कोर्ट चला जाता है, ताकि उसकी याचिका और हाईलाइट हो सके। यह ‘फोरम शॉपिंग’ के दायरे में आता है।
अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक बहस
‘फोरम शॉपिंग’ को लेकर अमेरिका से लेकर ब्रिटेन जैसे देशों में लंबे समय से बहस चल रही है। तमाम देशों ने फोरम शॉपिंग से बचने के लिए “forum non-conveniens” सिद्धांत अपनाया है। इसके तहत न्यायालय को ऐसी शक्ति दी गई है कि वह किसी ऐसे केस में, जिसे किसी और उचित फोरम या न्यायालय में सुना जा सकता है, वहां अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इंकार कर सकता है।
उदाहरण के लिए यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि कोई मामला हाईकोर्ट में जाना चाहिए तो इसका निर्देश दे सकता है। इस सिद्धांत का इस्तेमाल करते हुए न्यायालय, न्याय और याचिकाकर्ता के हित को ध्यान में रखते हुए मामले को उचित पीठ को आवंटित करते हुए खारिज कर सकता है।
पहले सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1988 के बहुचर्चित ‘चेतक कंस्ट्रक्शन लिमिटेड बनाम ओम प्रकाश’ (Chetak Construction Ltd. vs. Om Prakash) मामले में साफ कहा था कि किसी भी याचिकाकर्ता को किसी सूरत में फोरम शॉपिंग की इजाजत नहीं दी जा सकती है और इस तरह के किसी भी प्रयास से कड़ाई से निपटना चाहिए।
जुर्माना भी लग सकता है
कोर्ट, फोरम शॉपिंग के मामले में जुर्माना भी लगा सकता है। इसी साल 28 मार्च को जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने ‘डॉ. खैरुन्निसा व अन्य बनाम जम्मू कश्मीर सरकार व अन्य मामले में याचिकाकर्ता को फोरम शॉपिंग का दोषी मानते हुए 10,0000 का जुर्माना लगा दिया था। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के अलग-अलग विंग्स में अर्जी दायर की थी।
इसी तरह, पिछले साल राजस्थान हाईकोर्ट ने धनवंतरी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज वर्सेस राजस्थान सरकार मामले में एक पार्टी को फोरम शॉपिंग का दोषी मानते हुए 10 लाख रुपये का भारी जुर्माना लगाया था।