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ट्रांसजेंडर और समलैंगिक पुरुषों के ब्लड डोनेशन पर क्यों लगाई पाबंदी? केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ ऐसा बताया

LGBTQIA Rights: केंद्र सरकार ने अपने हलफनामा में कहा है कि इस तरह के मुद्दों को सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिए से देखने की जरूरत है, न कि केवल एक व्यक्तिगत अधिकार के नजरिए से।

Uganda | LGBTQ | Same Sex
LGBTQ समुदाय के सदस्य और समर्थक (Express PHOTO BY-ABHISEK SAHA)

ब्लड डोनर सलेक्शन गाइडलाइन को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलफनामा दाखिल बताया है कि  ट्रांसजेंडर, समलैंगिकों और सेक्स वर्कर्स को ब्लड डोनेशन से दूर रखा गया है।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Union Health Ministry) ने अपने हलफनामा में कहा है कि इस नतीजे पर पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर पहुंचा गया है, विभिन्न अध्ययनों के अनुसार ऐसे लोगों में एचआईवी और हेपेटाइटिस बी या सी का प्रसार अधिक पाया जाता है। बता दें कि केंद्र सरकार ने यह हलफनामा ‘थंगजाम संता सिंह बनाम भारत संघ और अन्य’ मामले में दाखिल किया है।

कई देशों में यह प्रावधान- सरकार

केंद्र सरकार ने कहा है कि विशेषज्ञों ने रक्तदान से दो तरह के लोगों को बाहर रखने के की सिफारिश की है। कई यूरोपीय देशों में समलैंगिक पुरुषों को इसी तरह रक्तदान से बाहर रखा गया है।

सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है:

“दिशानिर्देशों के तहत बाहर किए गए व्यक्तियों की श्रेणी वे हैं जिन्हें हेपेटाइटिस बी या सी संक्रमण फैलने का अधिक खतरा रहता है। यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि ट्रांसजेंडर्स, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष और महिला यौनकर्मियों को एचआईवी, हेपेटाइटिस का खतरा अधिक रहता है।”

हलफनामे में लिखा है कि इस तरह के मुद्दों को सार्वजनिक स्वास्थ्य के नजरिए से देखने की जरूरत है, न कि केवल एक व्यक्तिगत अधिकार के नजरिए से।

याचिकाकर्ता का पक्ष क्या है?

केंद्र सरकार ने यह हलफनामा एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में दायर की है। जनहित याचिका केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ब्लड डोनर गाइडलाइन के कानूनी और संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए दायर की गई है। दरअसल स्वास्थ्य मंत्रालय का गाइडलाइन  ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और समलैंगिक पुरुषों को रक्तदान करने से रोकता है।

याचिकाकर्ता ने इस कारण अदालत का रुख किया कि जेंडर आइडेंटिटी और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर इस तरह का बहिष्करण पूरी तरह से मनमाना, अनुचित, भेदभावपूर्ण और अवैज्ञानिक है।

दलील में कहा गया है कि COVID-19 महामारी के दौरान कई ट्रांसजेंडर व्यक्ति जिन्हें रक्त की आवश्यकता थी, वे गाइडलाइन के कारण अपने ट्रांस रिश्तेदारों या प्रियजनों से ब्लड डोनेट नहीं कर पाए।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह के दिशानिर्देशों उन कानूनों का उल्लंघन करते हैं कि जिनके अनुसार जेंडर आइडेंटिटी और सेक्सुअल ओरिएंटेशन  के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने नवतेज जौहर और एनएएलएसए के फैसलों में भी जेंडर आइडेंटिटी और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर भेदभाव न करने की बात कही थी।

किसने तय किया कि कौन करेगा रक्तदान?

केंद्र ने जिस गाइडलाइंन के आधार पर ट्रांसजेंडर लोंगों, समलैंगिक पुरुषों और महिला सेक्स वर्करर्स के ब्लड डोनेट करने पर प्रतिबंध लगाया लगाया है, उसे 2017 में नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूशन काउंसिल ने तैयार किया गया था। बताया जाता है कि काउंसिल में डॉक्टर और साइंटिफिक एक्सपर्ट शामिल थे, उन्हीं की सिफारिश के आधार पर ट्रांसजेंडर्स, समलैंगिक पुरुषों और महिला सेक्स वर्करर्स को बाहर रखा गया था।

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First published on: 12-03-2023 at 12:41 IST
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