दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई वकील आपराधिक मुकदमा (Criminal Case) लड़ रहा है, इस आधार पर हथियार का लाइसेंस मांगने का हकदार नहीं हो जाता है। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि यदि इस तरीके से सभी आपराधिक वकील शस्त्र लाइसेंस की मांग करने लगे तो अंधाधुंध तरीके से लाइसेंस जारी करने पड़ेंगे। हाईकोर्ट एडवोकेट शिव कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में उन्होंने दिल्ली के उप-राज्यपाल के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके हथियार लाइसेंस के आवेदन को रद्द कर दिया गया था।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
दिल्ली हाईकोर्ट में बहस के दौरान एडवोकेट ने दो जजमेंट का हवाला दिया और कहा कि यदि शस्त्र अधिनियम के आर्टिकल 14 के तहत रिजेक्ट करने का कोई आधार नहीं है, तो लाइसेंस जारी करना होगा। इस पर जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि लाइसेंस जारी करने वाली अथॉरिटी को खतरे का आकलन करना होता है। आवेदक ने जो कारण बताए हैं, उसकी पड़ताल करनी होती है और इसी आधार पर लाइसेंस जारी होता है। इस केस में अपराधिक मुकदमें में पेश होना, हथियार के लाइसेंस लिए कोई आधार नहीं है।
कौन ले सकता है हथियार का लाइसेंस? (Gun Licence Eligibility)
आर्म्स एक्ट 1959 (Arms Act 1959) के मुताबिक कोई भी ऐसा शख्स जो भारत का नागरिक है और उसकी उम्र 21 साल या इससे अधिक है, वह लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकता है। आवेदनकर्ता पर न तो कोई आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए ना ही कोई आपराधिक रिकॉर्ड होना। साथ ही शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी जरूरी है।
कहां से मिलता है हथियार का लाइसेंस? (Gun Licence Application)
हथियार के लाइसेंस के लिए संबंधित जिला अधिकारी या कमिश्नर ऑफिस के शस्त्र लाइसेंस विभाग में आवेदन करना होता है। आवेदन के बाद इसकी कॉपी संबंधित जिले के एसएसपी या पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय को भेजी जाती है और यहां से कॉपी संबंधित थाने को जाती है। साथ जिला अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो भी भेजा जाता है। ताकि पता किया जा सके कि संबंधित आवेदक पर कोई एफआईआर या आपराधिक इतिहास तो नहीं रहा है।

आवेदन में क्या जानकारी देनी होती है?
आवेदन में इस बात को साफ-साफ बताना होता है कि आप को हथियार के लाइसेंस की आवश्यकता क्यों है? किससे जान का खतरा है और क्यों। आवेदन फॉर्म में यह भी बताना होता है कि किस तरीके के हथियार का लाइसेंस चाहते हैं। साथ ही एड्रेस प्रूफ, पहचान पत्र, आयु प्रमाण पत्र, चरित्र प्रमाण पत्र, इन्कम सर्टिफिकेट, मेडिकल सर्टिफिकेट जैसे दस्तावेज भी जमा करने होते हैं।
पुलिस रिपोर्ट के आधार पर ही मिलता है लाइसेंस
पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर ही डीएम या संबंधित अधिकारी लाइसेंस जारी करता है। मंजूरी के बाद लाइसेंस की फीस जमा करनी होती है, जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। लाइसेंस जारी होने के बाद हथियार खरीद सकते हैं। इसके बाद दोबारा जिला प्रशासन लाइसेंस और हथियार का मिलान करता है और अपने रिकॉर्ड में दर्ज करता है। प्रत्येक 5 वर्ष के दौरान लाइसेंस रिन्यू भी कराना होता है।

गोलियों का हिसाब भी रखना होता है
लाइसेंस के साथ गोलियों का भी पूरा हिसाब रखना होता है। प्रशासन एक कोटा निर्धारित करता है और उतनी ही गोली रख सकते हैं। गोली खरीदते वक्त आपको पूरा हिसाब देना पड़ता है कि कहां खर्च किया।
कब कैंसिल हो सकता है हथियार का लाइसेंस
जिला प्रशासन या सक्षम अधिकारी के पास लाइसेंस रद्द करने का अधिकार भी है। आर्म्स एक्ट के मुताबिक किसी को डराने-धमकाने, शिकार अथवा मनोरंजन, हर्ष फायरिंग, रुतबा दिखाने और बेजा इस्तेमाल जैसी स्थिति में लाइसेंस रद्द किया जा सकता है। इसके अलावा चुनाव अथवा सार्वजनिक व्यवस्था बिगड़ने के डर से प्रशासन हथियार जमा भी करवा सकता है।