अगर कोई कहे कि एक छोटे से गांव में मेहनत-मज़दूरी कर रिक्शा चलाने वाले एक रिक्शा चालक की साधारण सी ज़िंदगी पर भी फिल्म बन सकती है तो आपके मन में एक सवाल जरूर आएंगा कि आखिर गांव में रहने वाले रिक्शा वाले की जिंदगी में ऐसा क्या खास हो सकता है कि इस पर एक फिल्म बनानी पड़ी? उस पर से अगर आपसे यह कहा जाए कि रिक्शा चालक की जिदगी पर बनी यह फिल्म देखने लायक है तो आप यकीनन सोच में पड़ जाएंगे। जी हां,यह सच है कि संजय मिश्रा जैसे कलाकारों के शानदार अभिनय से बनी फ़िल्म ‘वो 3 दिन’ एक बेहतरीन फ़िल्म है और इसे सिनेमा के बड़े पर्दे पर देखा जा सकता है।
गांव की कहानी पर आधारित है फिल्म
फिल्म ‘वो 3 दिन’ के लेखन, संपादन, निर्देशन और एक से बढ़कर एक परफॉर्मेंस ने एक बार फिर से इस बात को साबित कर दिया है कि फ़िल्म का बजट नहीं, बल्कि फ़िल्म बनाने का नज़रिया बड़ा होना चाहिए और तभी एक अच्छी फ़िल्म बनाई जा सकती है। यह खास और बेहतरीन फिल्म न केवल बहुत ही अनोखे तरीके से आपका मनोरंजन करती है, बल्कि देश के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में कठोर जीवन से भी परिचय कराती है।
क्या है फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी शुरु होती है उत्तर प्रदेश के एक गांव से, जहां बड़े दिल वाले रिक्शा चालक रामभरोसे अपनी आजीविका कमाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। रामभरोसे की मुलाक़ात जब एक ऐसी सवारी से होती है जो 3 दिनों के लिए उसके रिक्शा को किराए पर लेता है तो सफर के दौरान आख़िर क्या कुछ होता है? अजनबी के इरादों से अनजान, रामभरोसे उसे अपने रिक्शे पर जहां भी जाना होता है, ले जाता है। ऐसा करने पर, रामभरोसे इस अजनबी के साथ यात्रा करते समय रास्ते में कई रहस्यों को जानकर हैरान रह जाता है।
फिल्म के किरदार
बता दें कि फल्म में रिक्शा चालक की भूमिका में संजय मिश्रा ने निभाई है। वो अपने साधारण से किरदार को भी असाधारण बना देते हैं। संजय मिश्रा के अलावा फिल्म में राजेश शर्मा, चंदन रॉय सान्याल, पूर्वा पराग, पायल मुखर्जी और अमज़द क़ुरैशी ने भी बढ़िया अभिनय किया है। फिल्म को राज आशु ने निर्देशित किया है। यह फ़िल्म आपको महसूस कराएगी कि आख़िर गांव और गांव का जीवन कैसा होता है।