Ramayan 22nd May Episode Update: भरत को राजगद्दी सौंप वनवास के लिए आगे बढ़े श्री राम, रानी कैकेयी हुईं व्याकुल
Ramayan 22nd May Episode Update: प्रभु राम की आज्ञा का पालन करते हुए भरत ने कार्यभार संभाल लिया है। वहीं भरत को राजगद्दी सौंप श्री राम भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास के लिए आगे बढ़ चुके हैं।

Ramayan 22nd May Episode Update: प्रभु राम की आज्ञा का पालन करते हुए भरत ने कार्यभार संभाल लिया है। वहीं भरत को राजगद्दी सौंप श्री राम भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास के लिए आगे बढ़ चुके हैं। भरत अपनी मां से आशीर्वाद लेते हुए नंदीग्राम की ओर रवाना हो जाते हैं। भरत कहते हैं कि जब तक श्री राम अयोध्या वापस नही आएंगे तब तक वो भी अयोध्या का सुख नही भोगेंगे और वन में रहकर ही राज्य का सारा कार्यभार संभालेंगे।
प्रभु श्री राम के प्रति भाई के इस आदरभाव को देखकर सभी लोग भावुक हो उठते हैं। कुमार भरत से नंदीग्राम में मिलने उनकी पत्नी आती हैं और उनसे गुहार लगाते हुए सेवा का आधिकार मांगती हैं।भरत की पत्नी उनसे कहती हैं कि वो भी उनके साथ वन में रहकर उनकी सेवा करना चाहती हैं। जिसपर भरत उनसे कहते हैं कि वो इस घड़ी में उनका साथ दें और अयोध्या में रहकर माता की सेवा करें।
रानी कैकेयी भी राम से क्षमा मांगती है और कहती हैं कि वो अपने वचनों को वापस लेकर उन्हें उन वचनों से मुक्त करती है। इसपर राम कहते हैं कि वचन वापस लेने का अधिकार सिर्फ पिताश्री का था और अब बहुत देर हो चुकी है। पिताश्री की मृत्यु के पश्चात हम ये वचन नहीं तोड़ सकते। बहुत मनाने पर भी श्रीराम नहीं मानते और वनवास को त्यागने को तैयार नहीं होते हैं। इससे पहले रामायण में दिखाया गया कि राम से बिछड़ने के वियोग में भाई भरत का काफी बुरा हाल हो जाता है। ऐसे में भरत श्रीराम से वापस अयोध्या चलने की गुहार लगाते हैं।
प्रभु श्रीराम अपने धर्म को ध्यान में रख कर अपने निर्णय पर अटल रहते हैं। भाई के प्रेम को देखकर प्रभु राम अपने भाई भरत को गले से लगा लेते हैं और कहते हैं कि जो राज्य आज तुम मुझे देने आए हो मैं उसे स्वीकार करता हूं लेकिन पिता जी की आज्ञा को मैं टाल नही सकता ऐसे में तुमको 14 वर्षों तक अयोध्या का कार्यभार संभालना होगा। भरत, प्रभु राम की बात सुनकर कहते हैं कि ये मेरे लिए संभव नही जिसपर राम कहते हैं कि तुम्हें इस कार्य में बड़ों से पूरा सहयोग मिलेगा। भाई भरत प्रभु राम की बातों से सहमत होकर 14 वर्षों तक अयोध्या के राजा के रूप में कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन वो जाते जाते राम जी के निशानी के रूप में उनकी चरण पादुका मांगते हैं। प्रभु राम भाई का प्रेम देखकर काफी भावुक हो जाते हैं।
Highlights
श्री राम भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ महामुनि के दर्शन करने के लिए पहुंच चुके हैं। ऋषि मुनियों ने श्री राम को अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि बुरी शक्तियों के वजह से उन्हें यज्ञ में काफी दिक्कत होती है जिसपर राम उन्हें वचन देते हैं कि वो उन सभी बुरी शक्तियों का नाश कर देंगे जिनसे उनके यज्ञ में बाधा पहुंचती है।
कैकेयी पश्चाताप की अग्नि में जल रही हैं। राजमाता अपनी पुत्रियों को समझाते हुए कहती हैं कि इस बुरे वक्त में तुम लोगों को माता कैकेयी का विशेष ध्यान रखना है और अपनी बहन सीता की तरह ही मिसाल कायम करनी है।
श्री राम वन में समय बिता रहे हैं ऐसे में बहुत जल्द रामायण में प्रभु राम की लीला का नया अध्याय शुरू होगा। वहीं दूसरी ओर सीता जी की माता का आगमन अयोध्या में हुआ है कैकेयी शर्मिंदा हैं कि उनकी वजह से सीता जी को अयोध्या की जगह वन में जाना पड़ा। सीता जी की मां माता कहती हैं कि महाराज ने मुझसे कहा है कि लौटने से पहले एक बार माता कौशल्या के पैर छू लेना और इसी कार्य के लिए मैं यहां आई हूं।
कैकेयी भरत से मिलने के लिए नंदीग्राम में जाती हैं। कैकेयी भरत से गुहार लगाते हुए अयोध्या वापस चलने के लिए कहती हैं जिसपर भरत उनसे कहते हैं कि ये संभव नही है। भरत का राम के प्रति प्रेम देखकर कैकेयी मन ही मन काफी पछताती हैं और सोचती हैं कि आज जो कुछ भी हो रहा है उसकी जिम्मेदार में ही हूं। मेरी ही वजह से राम, लक्ष्मण और सीता को अयोध्या क्षोड़कर वन जाना पड़ा और राजा दशरथ की मृत्यु हो गई।
कुमार भरत से नंदीग्राम में मिलने उनकी पत्नी आती हैं और उनसे गुहार लगाते हुए सेवा का आधिकार मांगती हैं। भरत की पत्नी उनसे कहती हैं कि वो भी उनके साथ वन में रहकर उनकी सेवा करना चाहती हैं। जिसपर भरत उनसे कहते हैं कि वो इस घड़ी में उनका साथ दें और अयोध्या में रहकर माता की सेवा करें।
भरत अपनी मां से आशीर्वाद लेते हुए नंदीग्राम की ओर रवाना हो जाते हैं। भरत कहते हैं कि जब तक श्री राम अयोध्या वापस नही आएंगे तब तक वो भी अयोध्या का सुख नही भोगेंगे और वन में रहकर ही राज्य का सारा कार्यभार संभालेंगे।
भरत, उर्मिला से माफी मांगते हुए कहते हैं कि वो उन्हें क्षमा कर दें कि वो उन्हें अपने साथ नही ले जा पाए जिसपर उर्मिला उनसे कहती हैं कि कुमार भरत आप ऐसा मत कहें आपके त्याग के आगे तो मेरा दुख कुछ भी नही। उर्मिला की महानता देखकर भरत की आंखे भर आती हैं।
राम से मिलने माता कैकेयी आती हैं और कहती हैं कि वो उन्हें दंड नहीं देते तो माफ भी नहीं करते। राम कहते हैं कि वो उन्हें दोषी ही नहीं मानते। रानी कैकयी कहती हैं कि अगर तुम मुझे सच में अपनी मां मानते हो तो लौट चलो अयोध्या। इस बात पर राम, कैकयी से कहते हैं कि आप मां का मोल मांगने आई हो? अगर आप चाहती हैं कि मैं जिसे धर्म को मानता हूं उसे भंग कर दूं, आपकी यही आज्ञा है तो मैं मान लेता हूं, परंतु मेरा जीवन रण से भागे एक कायर की तरह रह जाएगा।
श्रीराम भरत से कहते हैं कि वो अयोध्या के राज्य को स्वीकारते हैं परंतु पिताश्री का वचन न टूटे इसलिए राजा का कार्यभार राम की गैर मौजूदगी में 14 वर्ष के लिए भरत को ही संभालना होगा। वनवास से लौटकर राम अपनी राजगद्दी संभल लेंगे। भरत अपने भैया राम की बात मान लेते हैं परंतु ये भी कहते हैं कि अगर 14 वर्ष के बाद राम ने आने में एक दिन की भी देरी की तो वो भरत की चिता जलते देखेंगे। इसपर राम अपने भाई को वचन देते हैं कि वो 14 वर्ष के बाद जरूर लौटेंगे और एक दिन की भी देरी नहीं करेंगे।