बॉलीवुड में अपने अलग अंदाज के लिए मशहूर रहे अभिनेता राजकुमार की फिल्में आज भी लोकप्रिय हैं। वो निजी जिंदगी में जिस एटीट्यूड के साथ जीते थे, वैसा ही एटीट्यूड उनकी फिल्मों में भी दिखता था। वो किसी फिल्म में विलेन से मार नहीं खाते थे। फिल्मों में अपने रोल का चुनाव भी इस तरीके से करते कि उनका किरदार कहीं से भी बड़े पर्दे पर कमज़ोर न दिखने पाए। इसी एटीट्यूड का असर था कि राजकुमार 1987 में आई फिल्म ‘मरते दम तक’ के क्लाइमेक्स को लेकर अड़ गए थे। फिल्म के निर्देशक मेहुल कुमार ने जो क्लाइमेक्स राजकुमार को बताया वो उन्हें मंजूर नहीं था और उन्होंने उसे बदलने की जिद कर ली थी।
इस फिल्म के क्लाइमेक्स में राजकुमार को गोली लगनी थी जिसके बाद वो जमीन पर गिर जाते हैं और अपने डायलॉग्स बोलने के बाद आखिरी सांस लेते हैं। लेकिन जमीन पर गिरना राजकुमार को कतई मंजूर नहीं था। उन्होंने निर्देशक मेहुल कुमार से कहा कि मैं गोली लगने के बाद भी जमीन पर नहीं गिरूंगा बल्कि दीवार के सहारे खड़े होकर अपने डायलॉग्स बोलूंगा।
उन्होंने कहा कि मैंने अपने पूरे करियर में किसी हीरो या विलेन से मार नहीं खाई है। ऐसे में मैं गोली खाकर जमीन पर नहीं गिरूंगा। उनकी यह बात सुन मेहुल कुमार सोच में पड़ गए। क्लाइमेक्स को पूरी तरह बदलना मुश्किल था लेकिन राजकुमार के एटीट्यूड से वो पूरी तरह वाकिफ थे।
जब यह सीन फिल्माया गया तो राजकुमार के कहे अनुसार ही फिल्माया गया। जब उन्हें गोली लगती है तब फिल्म के एक्टर गोविंदा और एक्ट्रेस फराह नाज़ उन्हें एक दीवार के सहारे खड़ा करते हैं। राजकुमार जब अपने डायलॉग्स खत्म करते हैं तब वो फराह नाज़ के गोद में गिरकर अपनी आखिरी सांस लेते हैं।
राजकुमार का यह एटीट्यूड कई निर्देशकों के लिए मुश्किल भी बन गया था। कितने ही निर्देशकों की फिल्मों को बेवजह उन्होंने मना कर दिया था। 1968 की फिल्म आंखें के निर्देशक रामानंद सागर के साथ भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया।
दरअसल जब रामानंद सागर उनके पास फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर गए और उन्हें कहानी सुनाई तो राजकुमार ने अपने पालतू कुत्ते को बुला लिया। रामानंद सागर के सामने ही फिल्म अपने कुत्ते की ऑफर कर दी। फिर रामानंद सागर से मुखातिब होकर कहा कि ये फिल्म तो मेरा कुत्ता भी नहीं करेगा।