टोक्यो ओलंपिक में सालों बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने कोई मेडल (कांस्य पदक) जीता है। इसी जीत के बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार का नाम, ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ से बदलकर ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’ कर दिया गया। नाम बदले जाने पर बहस छिड़ गई कि नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली के नाम पर रखे गए स्टेडियम के नाम भी बदले जाने चाहिए। अब वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने ध्यानचंद को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न न दिए जाने पर सवाल उठाया है।
उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया है, ‘क्या ये भी संभव है…अगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं दे सकते तो राजीव गांधी के भारत रत्न को ही मेजर ध्यानचंद को दे दें?’
मेजर ध्यानचंद को वर्ष 1956 में देश के तीसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नवाजा गया था। कुछ समय पहले यह मांग उठी कि खेलों में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। इस पर काफी चर्चा और बहस भी हुई लेकिन उन्हें भारत रत्न नहीं मिल पाया। भारत रत्न कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा व खेलों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है।
क्या ये भी संभव है…..
अगर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं दे सकते..
तो राजीव गॉंधी के भारत रत्न को ही मेजर ध्यानचंद को दे दे ??— punya prasun bajpai (@ppbajpai) August 7, 2021
बहरहाल, पुण्य प्रसून बाजपेयी के इस मांग पर ट्विटर यूजर्स की मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। अनुज कुमार नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘घटिया राजनीति के तहत ऐसा भी किया जा सकता है, क्योंकि फलाने हैं तो मुमकिन है।’ विवेक सिंह नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘90% देश राजीव, नेहरू के नाम कर दिया, किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई। लेकिन खेल रत्न पुरस्कार मेजर ध्यानचंद के नाम हुआ तो आप जैसे पत्रकारों की नींद हराम हो गई।’
दीपा नाम की एक यूजर लिखती हैं, ‘जब कांग्रेस का राज था तब आपने कितनी बार ध्यानचंद के लिए भारत रत्न मांगा था सरकार से?’ देवेंद्रन पिल्लई नाम के एक यूजर ने लिखा, ‘बाबू जी इसके लिए सिर्फ कांग्रेस जिम्मेदार है। जिसको भारत रत्न देना था उसको नजरअंदाज़ कर दिया और जिन्होंने खेल में कुछ नहीं किया उनके नाम पर पुरस्कार शुरू कर दिया।’
जोशुआ नाम के यूजर ने बाजपेयी को जवाब दिया, ‘माहौल ऐसा बनाया गया कि जैसे ध्यानचंद जी के नाम पर इस देश में कोई पुरस्कार दिया ही नहीं जाता है। दरअसल बात ये है कि उन्हें भ्रम से भरा विमर्श निर्मित करना था कर चुके, ताकि अपनी नाकामी छुपा सकें।’