बेलाग, सख्त और सटीक टिप्पणी के लिए जाने जाते थे ‘नटसम्राट’ श्रीराम लागू
‘नटसम्राट’ मशहूर मराठी लेखक कुसुमाग्रज (विष्णु वामन शिरवाडकर) का लिखा ऐसा नाटक है, जिसमें अप्पा साहेब की भूमिका करना किसी अभिनेता को प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान मिलने जैसी खुशी देता है। पेश है गणेशनंदन तिवारी की खास रिपोर्ट...

अगर पांच हजार सालों में हमें ईश्वर के होने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं, तो हमें ईश्वर की कल्पना पर पुनर्विचार करना चाहिए। मानव सभ्यता के शुरुआती दौर में ईश्वर की कल्पना ठीक थी, मगर अब समय आ गया है, जब हमें ईश्वर को रिटायर कर देना चाहिए… आधुनिक इनसानी समाज पर इतनी बेलाग, सख्त और विवादास्पद टिप्पणी करने वाले डॉ श्रीराम लागू का 17 दिसंबर, मंगलवार, को निधन हो गया। कई हिंदी-मराठी फिल्मों और नाटकों के अलावा सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे लागू को मराठी नाटकों की दुनिया में ‘नटसम्राट’ माना जाता है। लागू का जाना हिंदी सिनेमा के अभिनेता का जाना भर नहीं, मराठी रंगकर्म की दुनिया के ‘नटसम्राट’ का जाना भी है। ‘नटसम्राट’ मशहूर मराठी लेखक कुसुमाग्रज (विष्णु वामन शिरवाडकर) का लिखा ऐसा नाटक है, जिसमें अप्पा साहेब की भूमिका करना किसी अभिनेता को प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान मिलने जैसी खुशी देता है।
महाराष्ट्र में नाटकों की लंबी परंपरा रही है, जिसे मराठी समाज ने आज भी जतन से संभल कर रखा है। मराठी मानुस आज भी टिकट खरीदकर नाटक देखना पसंद करता है। वाकया 1970 के जाड़ों का है। 23 दिसंबर को द गोवा हिंदू एसोसिएशन के कला विभाग ने विष्णु वामन शिरवाडकर के नाटक ‘नटसम्राट’ का मंचन मुंबई के बिड़ला मातोश्री सभागार में रखा। यह एक उम्रदराज अभिनेता गणपतराव उर्फ अप्पासाहेब बेलवकर की कहानी है, जो अपने बच्चों के नाम अपनी संपत्ति और घर कर देता है और नए सिरे से शुरुआत करता है। उसके सामने क्या स्थितियां बनती है, इसे नाटक में दिखाया गया है। नाटक में अप्पासाहेब की भूमिका कर रहे थे डॉ श्रीराम लागू। अप्पासाहेब की पत्नी कावेरी की भूमिका में थी शांता जोग, जिन्होंने अभिनय के लिए अपना सब कुछ झोंक देने वाले अप्पासाहेब के साथ जिंदगी बिताना, संयम रखना, तनाव झेलना, घर चलाना, समझौते करना जैसी स्थितियों को बखूबी मंच पर उतारा। अप्पासाहेब के रूप में लागू का मशहूर संवाद ‘कोई घर देता है
क्या…’ दर्शकों के दिलों को आज भी छू लेता है। 1970 के ‘नटसम्राट’ को अपार कामयाबी मिली। लागू की खूब वाहवाही हुई।1970 का नटसम्राट मराठी मानुष की धमनियों में ऐसा रचा-बसा कि वह बार बार इसे मंचित होते देखना चाहता है। लिहाजा हुआ यह कि अब तक इसका मंचन कई बार हुआ। अप्पासाहेब की भूमिका नौ कलाकार (सतीष दुभाषी, उपेंद्र दाते, यशवंत दत्त, दत्ता भट्ट, मधुसूदन कोल्हटकर, चद्रकांत गोखले, राजा गोसावी, गिरीश देशपांडे और नाना पाटेकर) कर चुके हैं। बावजूद इसके आज भी ‘नटसम्राट’ अगर याद किया जाता है तो डॉ श्रीराम लागू के निभाए अप्पासाहेब के कारण। दिल तो छू लेने वाली होने के कारण अभिनेताओं को जब अप्पासाहेब की भूमिका मिलती है, तो उसे पूरी मराठी रंगकर्म बिरादरी सम्मान की नजरों से देखती है।
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में दर्ज होने के लिए 27 अगस्त 2013 को मुंबई के बालगंधर्व रंगमंदिर में ‘नटसम्राट’ के लगातार आठ शो चलाए गए। तीन नाटक कंपनियों ने यह जिम्मा संभाला। सुबह छह बजे से नाटक की शुरुआत हुई तो यह काम खत्म हुआ अगले दिन 28 अगस्त दोपहर डेढ़ बजे। गिरीश देशपांडे ने निर्देशन किया और नटसम्राट की भूमिका भी निभाई। इससे पहले 15 जुलाई 2010 को पांच शो लगातार चलाने का रिकॉर्ड बनाया जा चुका था।
दरअसल आठ शो करके अमेरिकी कंपनी सेवन ओ क्लॉक का 23 घंटों तक लगातार एक ही नाटक के शो करने का रिकॉर्ड तोड़ना था। ‘नटसम्राट’ ने 27 घंटे 32 मिनट का नया रिकॉर्ड बनाया। बीच में नियमों के मुताबिक 10 मिनट का इंटरवल और नाटक का एक शो खत्म होने के बाद 15 मिनट का ब्रेक रखा गया था। ‘नटसम्राट’ को लेकर ऐसे कई प्रयोग समय-समय पर हुए। मगर आज भी लागू के निभाए ‘नटसम्राट’ को बेजोड़ माना जाता है।