कहानी 1974-1979 बीच की है। 1974 में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया था, तो उसके बाद पाकिस्तान भी परमाणु परीक्षण करना चाहता था। भारतीय गुप्तचर संस्था रॉ चाहता है ये परीक्षण न हो इसलिए पाकिसान में एजेंट अमनदीप सिंह उर्फ तारिक (सिद्धार्थ मल्होत्रा ) को सक्रिय किया जाता है। लेकिन तभी भारत में चुनाव हुए और सरकार बदल गई। फिर भी रॉ सक्रिय रहा और पाकिस्तान में क्या हो रहा है, इसकी खबर लेता रहा। फिल्म के मुताबिक इजरायलियों को शक है कि पाकिस्तान के क्वेटा में ये परमाणविक प्रयोगशाला है और वे उसे खत्म करना चाहते हैं।
लेकिन तारिक और उसके दोस्त मिलकर पता लगाते हैं कि ये प्रयोगशाला कहूटा में है। क्या पाकिस्तान परीक्षण कर पाएगा या उसे रोका जा सकता है। ‘मिशन मजनू’ इसी का बयान है। साथ ही इसमें एक प्रेम कथा भी है। तारिक और नसरीन (रश्मिका मंडाना) की। तारिक जब दर्जी के रूप में पाकिस्तान में काम कर रहा है तो उसे दृष्टिहीन नसरीन से प्रेम हो जाता है और उन दोनों की शादी हो जाती है। क्या अंत होता है इस प्रेम कहानी का। क्या नसरीन पाकिस्तान में रह पाती है। या वहां से अपने पति के साथ निकलने में काययाब हो पाती है?
निर्दशक शांतनु बागची की इस जासूसी कथा और प्रेम कहानी में इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के साथ आरएन काव का भी जिक्र है। काव की 1971 के भारत – पाकिस्तान युद्ध के दौरान एक बड़ी भूमिका थी। वे सुपर जासूस माने जाते रहे है। आज उनका व्यक्तित्व अक दंतकथा बन चुका है और हाल में कई ऐसी फिल्में आईं है जिनमें या तो उनका उल्लेख है या उनके नाम का किरदार है। इस फिल्म में भी काव एक किरदार के रूप में है।
सिद्धार्थ मल्होत्रा ने तारिक या अमनदीप का किरदार को बखूबी निभाया है लेकिन ज्यादा असरदार चरित्र निभाया है रश्मिका मंडाना ने जिनकी भूमिका सीमित है लेकिन उन्होंने जिस मासूम नसरीन का किरदार जिस तरह निभाया है वो दिल को छू लेने वाला है। फिल्म के बीच में दो जगह एक्शन सीन भी हैं हालांकि वे साधारण से हैं।