Mahabharat 25th April Episode Updates: कीचक के वध के बाद दुर्योधन को हुई शंका, अज्ञात वास में मत्स्य देश में छुपे पांडव
Mahabharat 25th April Episode Updates: द्रौपदी की सुंदरता पर मोहित हुए कीचक मे भरी सभा में उसका अपमान किया और उसके साथ अभद्र व्यहवाहर करने का प्रयत्न किया। जिसके बाद द्रौपदी के कहने पर भीम ने कीचक को मौत के घाट उतार दिया। वहीं दुर्योधन को इस बात की शंका हो गई की कि अज्ञात वास में पांडव मत्स्य देश में छुपे है। जिसके बाद...

Mahabharat 25th April Episode online Updates: कीचक का वध लेने की शपथ लेने वाली द्रौपदी का वचन भीम ने पूरा कर दिया। भरी सभा में द्रौपदी को स्पर्श करने का पाप करने के उपरांत भीम ने मध्य रात्रि में कीचक का वध कर दिया। जैसे ही ये खबर हस्तिनापुर में पहुंची। कर्ण हैरान रह गया उसने दुर्योधन को बताया कि कीचक जैसे महाबली को सिर्फ 6 ही योद्धा परास्त कर सकते हैं, मैं पितामह भीष्म, बलराम, गुरुद्रोण तुम दु्र्योधन और भीम। जिसके बाद शकुनि और दुर्योधन दिमाह लगाते हैं कि इसका मतलब पांडव अपने अज्ञात वास के दौरान मत्स्य देश में छुपे हैं। जिसके बाद वो मत्स्य देश पर हमला करने की योजना बनाता है।
वहीं इससे पहले द्रौपदी की सुंदरता पर कीचक का दिल आ जाता है वो द्रोपदी की सच्चाई जाने बिना उसको लुभाने का प्रयास कर रहा होता है। द्रौपदी उससे कहती है कि वो शादी शुदा है जिसके जवाब में कीचक कहता है कि वो किसी धर्म को नही मानता और उसे पाने के लिए किसी भी धर्म को तोड़ सकता है। द्रौपदी का क्रोध बढ़ जाता है और वो कहती है कि मैं यहां पर दासी जरूर हूं लेकिन मजबूर नही हूं। वहीं महारानी का भाई द्रौपदी को चेताते हुए कहता है कि तुमने मेरा प्रस्ताव ठुकराकर बहुत बड़ी गलती की है। इसकी सजा तुम्हें भुगतनी होगी।
कीचक द्रौपदी की शिकायत अपनी बहन से करता है। महारानी पहले तो अपने कीचक को समझाने की कोशिश करती हैं लेकिन आखिरकार धर्म और अधर्म का ज्ञान होने के बावजूद वो अपने भाई के साथ देने का फैसला करते हुए द्रौपदी को ये आदेश देती हैं कि वो उसके भाई के कमरे में जाकर मदिरा लाए जो वो उसके लिए लेकर आया है। द्रौपदी महारानी की बातों का आशय समझ जाती है और उनका हुक्म मानते हुए कहती है कि महारानी अब जो कुछ भी होगा उसकी जिम्मेदारी आप होंगी और परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
वहीं दूसरी ओर पांडवों को न तलाश कर पाने के चलते दुर्योधन काफी ज्यादा क्रोधित है। दुर्योधन अपने गुप्त चरों से कहता है कि अगर पांडवों को जल्द से जल्द न तलाशा गया तो फिर वो सबको उनके परिवार समेत मौत के घाट उतार देगा। दुर्योधन का गुस्सा काफी ज्यादा बढ़ता जाता है। गांधारी ने अपने पति को समझाते हुए कहा कि महाराज अभी भी वक्त है देर नही हुई है। आप पांडवों को बुलाकर इन्द्रप्रस्थ उनको सौंप दे और उन्हें सुनहरे भविष्य के लिए शुभकामनाएं दें। गांधारी की बात सुन महाराज व्याकुल हो उठते हैं और कहते हैं कि अब बहुत देर हो चुकी है। अब यह संभव नही है।
Highlights
शकुनि ने एक बार फिर से षड्यंत्र रचा है। जिसके तहत पांडवों को अज्ञात खत्म होने से पहले ही उन्हें ढंढ निकालना चाहते हैं। द्रौपदी से अशिष्ट व्यहवाहर करने के लिए भीम ने कीचक को मृत्युदण्ड दे दिया है। जिसके बाद दुर्योधन मत्स्य देश पर हमला करने का विचार करता है। क्योंकि कर्ण दुर्योधन से कहता है कि कीचक का वध सिर्फ संसार में 6 लोग ही कर सकते थे। जिनमें से 4 हस्तिनापुर में हैं एक द्वारिका में है। इसका मतलब अज्ञात वास में पांडवों ने मत्स्य देश का आश्रय लिया है।
कीचक का वध भीम ने कर दिया है। जिसके बाद दुशासन ने ये सूचना दी कि कीचक का वध हो गया है। वहीं उसके वध की खबर से कर्ण हैरान रह गया है। उसने दुर्योधन को बताया कि कीचक का अंत सिर्फ 6 योद्धा कर सकते हैं। जिनमें से 4 यहां है एक द्वारिका में इसका मतलब अज्ञात वास के दौरान भीम ने कीचक को मृत्युदंड दिया है।
पितामह भीष्म ने पांडवों के 1 वर्ष के अज्ञात वास के पूरा कर लेने पर अपने कक्ष में दिए जलाए हैं। जिन्हें देख कर गांधार नरेश शकुनि हैरानी में पड़ गए और उनसे मिलने पहुंच गए जिसके बाद भीष्म भावुक हो गए।
पांचाली का भरी सभा में अपमान करने वाला मत्स्य देश के सेनापति कीचक को कुंती पुत्र और पांचाली के पति भीम ने मौत के धाट उतार दिया है। जिसके देख पांचाली बेहद खुश नजर आ रही है। भीन ने पांचाली से किया अपना वादा निभाया और कीचक को अगले दिन का सूर्योदय नहीं देखने दिया।
मत्स्य देश के सेनापति कीचक ने द्रौपदी के साथ अभद्र व्यहवाहर किया, जिसके बाद भीम ने पांचाली से कहा कि तुम कीचक को रिझाओ और मेरे पास ले आओ जिसके पश्चात मैं उसका वध कर दूंगा और वो कल सुबह का सूर्य नहीं देख पाएगा। इसी के तहत द्रौपदी अपने मधुर गायन से कीचक को रिझा रही है।
द्रौपदी ने गदाधारी भीम से कीचक द्वारा किये गए अपने अपमान का बदला लेने को कहा है। इस दौरान पांचाली ने कहा यदि कीचक ने कल का सूर्योदय देख लिया तो फिर वो अपने प्राणों का त्याग कर देगी। जिसके बाद भीम ने उससे कहा कि मैं तुमसे वादा करता हूं कि कीचक कल सुबह तक का सूर्य नहीं देख पाएगा।
द्रौपदी के साथ अभद्र व्यहवाहर करने के लिए द्रौपदी ने कीचक को मृत्युदंड देने की मांग की है। इस दौरान उसने रानी से कहा कि मैं तब तक अपने वस्त्र नहीं बदलूंगी जबतक कीचक का अंत नहीं हो जाएगा और मेरी बात याद रखिए कीचक कल सुबह का सूरज नहीं देख पाएगा।
मत्स्य देश के राजा विराट की सभा में कंक बनकर रह रहे, युधिष्ठिर ने द्रौपदी से कहा कि वो कीचक को माफ करदे क्योंकि माफी से बड़ा कोई दान नही है और महारानी के केश संभाले जिसके बाद मायुस होकर द्रौपदी फिर महारानी कक्ष में चली गई है।
मत्य्य देश के राजा विराट की भरी सभा में वहां के सेनापति और राजा के साले कीचक ने द्रौपदी को छेड़ा और उसके साथ अभद्र व्यहवाहर किया।
महारानी का भाई द्रौपदी की शिकायत अपनी बहन से करता है। महारानी पहले तो अपने भाई को समझाने की कोशिश करती हैं लेकिन आखिरकार धर्म और अधर्म का ज्ञान होने के बावजूद वो अपने भाई के साथ देने का फैसला करते हुए द्रौपदी को ये आदेश देती हैं कि वो उसके भाई के कमरे में जाकर मदिरा लाए जो वो उसके लिए लेकर आया है। द्रौपदी महारानी की बातों का आशय समझ जाती है और उनका हुक्म मानते हुए कहती है कि महारानी अब जो कुछ भी होगा उसकी जिम्मेदारी आप होंगी और परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
द्रौपदी की सुंदरता पर महारानी के भाई का दिल आ गया है वो द्रोपदी की सच्चाई जाने बिना उसको लुभाने का प्रयास कर रहा है। द्रौपदी ने जब उससे कहा कि वो शादी शुदा है तो उसने कहा कि वो किसी धर्म को नही मानता और उसे पाने के लिए किसी भी धर्म को तोड़ सकता है। द्रौपदी का क्रोध बढ़ जाता है और वो कहती है कि मैं यहां पर दासी जरूर हूं लेकिन मजबूर नही हूं। वहीं महारानी का भाई द्रौपदी को चेताते हुए कहता है कि तुमने मेरा प्रस्ताव ठुकराकर बहुत बड़ी गलती की है। इसकी सजा तुम्हें भुगतनी होगी।
महारानी युधिष्ठिर को भला-बुरा कह रही होती हैं जिसपर द्रौपदी उनसे कहती है कि जो कुछ भी हुआ उसमें महाराज युधिष्ठर की कोई गलती नही है। इन सबमें थोड़ी गलती द्रौपदी के अभिमान की भी है और हो सकता है कि जो कुछ भी हुआ हो वो आने वाले किसी बड़े शुभ का प्रतीक हो।
कर्ण गुरू द्रौण के पास जाकर उनसे कहता है कि पांडवों का अज्ञातवास खत्म होने को है ऐसे में युद्ध तय है। युद्ध के मैदान में मैं अर्जुन से युद्ध करूंगा और वहां आपके सामने येे तय हो जाएगा कि हम दोनों में से सर्वश्रेष्ठ धनुधर कौन है।
शकुनि से मिलने उसका पुत्र हस्तिनापुर आया है। शकुनि अपने पुत्र से कहता है कि वो महायुद्ध की तैयारी कर रहा है और अब उसके लिए वापस गांधार लौटना संभव नह है। शकुनि अपने पुत्र से कहता है कि उसने युद्ध की तैयारी कर ली है और वो अपने अपमान को कभी नही भूल सकता है। उसने अपने पुत्र से कहा कि एक बार ये युद्ध हो जाने दो उसके बाद मेरे क्रोध की अग्नि शांत होगी। उन्होंने अपने पुत्र को बताया इस युद्ध के उपरांत पूरा कुरुवंश का नाश हो जाएगा।
महारानी का भाई द्रौपदी की शिकायत अपनी बहन से करता है। महारानी पहले तो अपने भाई को समझाने की कोशिश करती हैं लेकिन आखिरकार धर्म और अधर्म का ज्ञान होने के बावजूद वो अपने भाई के साथ देने का फैसला करते हुए द्रौपदी को ये आदेश देती हैं कि वो उसके भाई के कमरे में जाकर मदिरा लाए जो वो उसके लिए लेकर आया है। द्रौपदी महारानी की बातों का आशय समझ जाती है और उनका हुक्म मानते हुए कहती है कि महारानी अब जो कुछ भी होगा उसकी जिम्मेदारी आप होंगी और परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
द्रौपदी की सुंदरता पर महारानी के भाई का दिल आ गया है वो द्रोपदी की सच्चाई जाने बिना उसको लुभाने का प्रयास कर रहा है। द्रौपदी ने जब उससे कहा कि वो शादी शुदा है तो उसने कहा कि वो किसी धर्म को नही मानता और उसे पाने के लिए किसी भी धर्म को तोड़ सकता है। द्रौपदी का क्रोध बढ़ जाता है और वो कहती है कि मैं यहां पर दासी जरूर हूं लेकिन मजबूर नही हूं। वहीं महारानी का भाई द्रौपदी को चेताते हुए कहता है कि तुमने मेरा प्रस्ताव ठुकराकर बहुत बड़ी गलती की है। इसकी सजा तुम्हें भुगतनी होगी।
महारानी युधिष्ठिर को भला-बुरा कह रही होती हैं जिसपर द्रौपदी उनसे कहती है कि जो कुछ भी हुआ उसमें महाराज युधिष्ठर की कोई गलती नही है। इन सबमें थोड़ी गलती द्रौपदी के अभिमान की भी है और हो सकता है कि जो कुछ भी हुआ हो वो आने वाले किसी बड़े शुभ का प्रतीक हो।
राजा अर्जुन की नृत्य कला से काफी ज्यादा मोहित हो जाते हैं और कहते हैं कि तुम्हारी प्रतिभा अद्भुत है तुमने मेरी पुत्री को उचित शिक्षा दी है। वहींं महाराज चाकर बने युधिष्ठिर से भी अर्जुन की तारीफ करता है जिसपर युधिष्ठिर कहते हैं कि महाराज वो नृ्त्य के साथ ही युद्ध कला में भी निपुण हैं। युधिष्ठिर का जवाब सुन महाराज हंस पड़ते हैं।
द्रोणाचार्य ने कर्ण को क्रोध त्यागने की नसीहत देते हुए कहा कि क्रोध से केवल अनर्थ ही होता है और युद्ध में जाने से पहले अपने माता-पिता और गुरू का आशिर्वाद लेना मत भूलना। द्रोण की बात सुनकर कर्ण गुस्से से कहता है कि मुझे अपनी भुजाओं पर पूरा भरोसा है आप अपना आशिर्वाद अपने प्रिय शिष्य अर्जुन के लिए बचा कर रखें।
कर्ण गुरू द्रौण के पास जाकर उनसे कहता है कि पांडवों का अज्ञातवास खत्म होने को है ऐसे में युद्ध तय है। युद्ध के मैदान में मैं अर्जुन से युद्ध करूंगा और वहां आपके सामने येे तय हो जाएगा कि हम दोनों में से सर्वश्रेष्ठ धनुधर कौन है।
शकुनि का पुत्र उससे गांधार चलने की गुहार लगाते हुए कहता है कि ये युद्ध पांडवों और कौरवों का है इसमें आपको क्या करना आप मेरे साथ राजमहल लौट चलिए। पुत्र की बात सुनकर शकुनि कहता है कि वो एक जुआंरी है और यहां से उसका वापस लौटना संभव नही है।
शकुनि से मिलने उसका पुत्र हस्तिनापुर आया है। शकुनि अपने पुत्र से कहता है कि वो महायुद्ध की तैयारी कर रहा है और अब उसके लिए वापस गांधार लौटना संभव नह है। शकुनि अपने पुत्र से कहता है कि उसने युद्ध की तैयारी कर ली है और वो अपने अपमान को कभी नही भूल सकता है।
महाभारत में अब तक आपने देखा कि पांडव अज्ञातवास में रह रहे हैं। पांडवों को न तलाश कर पाने के चलते दुर्योधन काफी ज्यादा क्रोधित हो चुका है। दुर्योधन अपने चाकरों से कहता है कि अगर पांडवों को जल्द से जल्द न तलाशा गया तो फिर वो सबको उनके परिवार सहित मौत के घाट उतार देगा।