Mahabharat 22nd May Episode Update: वासुदेव के युद्ध टालने के सुझाव पर दुर्योधन हुआ क्रोधित, कृष्ण को बनाया बंदी
Mahabharat' 22nd May Episode Online Update: वासुदेव युद्ध को टालने का सुझाव देते हुए कहते हैं कि यदि दुर्योधन द्रुपद के चरणों को छूकर माफी मांग लेते हैं तो पांडव उसे भी दंड मान लेंगे। वासुदेव की इस बात पर ना सिर्फ शकुनि मामा बल्कि दुर्योधन भी क्रोधित हो जाता है। वह कृष्ण को बंदी बनाने का प्रयत्न करता है....

Mahabharat’ 22nd May Episode Online Update: युद्ध को टालने के लिए कृष्ण शांति का प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाने की योजना बनाते हैं। द्रोपदी शांति प्रस्ताव की बात पर काफी क्रोधित होती है और कृष्ण शांति का प्रस्ताव लेकर जा ही रहे होते हैं कि बीच रास्ते में पांचाली उन्हें रोक लेती हैं और पूछती हैं कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं। कृष्ण कहते हैं कि युद्ध से पहले शांति का प्रस्ताव जरूरी है। पांचाली पूछती हैं कि कौरव अगर शांति प्रस्ताव मान लेते हैं तो क्या युद्ध नहीं होगा। वासुदेव कहते हैं कि युद्ध तो आवश्य होगा पांचाली।
शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे वासुदेव से धृतराष्ट्र कहते हैं कि अब आपही कुछ युद्ध रोकने का हल निकाल सकते हैं। कृष्ण कहते हैं कि पांडवों को इंद्रप्रस्थ लौटा दिया जाए। वासुदेव से ऐसी बात सुन दुर्योधन क्रोधित हो जाता है और कहता है कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। और वे राजा नहीं हैं तो युद्ध का अधिकार ही नहीं। वासुदेव कहते हैं कि अधर्म के खिलाफ युद्ध करना सबका अधिकार है। और पांडवों का आभार मानिए कि उन्होंने इतने दिनों तक युद्ध नहीं किया।
वासुदेव युद्ध को टालने का सुझाव देते हुए कहते हैं कि यदि दुर्योधन द्रुपद के चरणों को छूकर माफी मांग लेते हैं तो पांडव उसे भी दंड मान लेंगे। वासुदेव की इस बात पर ना सिर्फ शकुनि मामा बल्कि दुर्योधन भी क्रोधित हो जाता है। वह कृष्ण को बंदी बनाने का प्रयत्न करता है….
Highlights
दुर्योधन सैनिकों को वासुदेव को बंदी बनाने का आदेश देता है। सैनिक बेड़ियां लेकर वासुदेव की तरफ बढ़ते ही हैं कि बेड़ियों का वजन इतना भारी हो जाता है कि सभी सैनिक उसके भार तले नीचे ही दब जाते हैं। सभा में मौजूद सभी लोग दुर्योधन के इत कृत्य की निंदा करते हैं। वहीं धृतराष्ट्र बेटे को रोकने का काफी कोशिश करते हैं लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाते हैं। दुर्योधन फिर वासुदेव को बेड़ियों में जकड़ देता है और कारागार की तरफ बढ़ चलता है...
भगवान श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर में गए दुर्योधन से पांच गांव की मांग रखते हैं। लेकिन दुर्योधन क्रोधित हो जाता है और पांच गांव पांडवों को देने से मना कर देता है। इस फैसले को मानने से कर्ण से लेकर भीष्मपितामह तक तैयार होते हैं लेकिन दुर्योधन शकुनि की बात मानता है और गांव देने से इंकार कर देता है।
वासुदेव दुर्योधन के इंद्रप्रस्थ सभा में शस्त्र उठाने की बात को याद दिलाते हैं। वासुदेव दुर्योधन के सामने कहते हैं कि ये युद्ध तभी टल सकता है जब आप पांचाली के चरणों को छूकर माफी मांग लेते हैं। पांडव इसे भी दंड मान लेंगे। दुर्योधन इससे मानने से इंकार करते हुए सभा से बाहर जाने की कोशिश करता है तभी कृष्ण कहते हैं कि सभा से बाहर जाने के बाद हमारा सीधा सामना युद्ध भूमि में होगा..।
दुर्योधन वासुदेव से कहता है कि क्या युधिष्ठिर ने अपनी संपत्ति, पांचाली को जानबुझकर दांव पर नहीं लगाया था। वासुदेव कहते हैं कि लेकिन क्या तुमने अपने ही परिवार की एक स्त्री को भरी सभा में निर्वस्त्र कर सभा में अधर्म किया था। दुर्योधन फिर वासुदेव को शिशुपाल के वध को भी अधर्म की श्रेणी में रखता है...
वासुदेव युद्ध को टालने का सुझाव देते हुए कहते हैं कि यदि दुर्योधन द्रुपद के चरणों को छूकर माफी मांग लेते हैं तो पांडव उसे भी दंड मान लेंगे। वासुदेव की इस बात पर ना सिर्फ शकुनि मामा बल्कि दुर्योधन भी क्रोधित हो जाता है। वह कृष्ण को बंदी बनाने का प्रयत्न करता है....
वासुदेव से धृतराष्ट्र कहते हैं कि अब आपही कुछ युद्ध रोकने का हल निकाल सकते हैं। कृष्ण कहते हैं कि पांडवों को इंद्रप्रस्थ लौटा दिया जाए। वासुदेव से ऐसी बात सुन दुर्योधन क्रोधित हो जाता है और कहता है कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। और वे राजा नहीं हैं तो युद्ध का अधिकार ही नहीं। वासुदेव कहते हैं कि अधर्म के खिलाफ युद्ध करना सबका अधिकार है। और पांडवों का आभार मानिए कि उन्होंने इतने दिनों तक युद्ध नहीं किया।