‘रहे ना रहे हम’, ‘महका करेंगे’, ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा’, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ है’…जैसे कई अनगिनत गाने जो कि 50 से 60 साल पहले बने थे आज भी लोगों को रोमांचित कर देते हैं। कहना गलत ना होगा कि आज भी पुराने गाने दिल को छू लेते हैं। क्या वजह है कि एआर रहमान के संगीत में संगीतबद्ध जय हो …के बाद एक बार फिर दक्षिण में बनी फिल्म आरआरआर के गीत नाटू नाटू को आस्कर द्वारा सम्मानित किया गया है। वहीं हमारी बालीवुड फिल्मों में पुराने गानों को पुनर्मिश्रित करने का तड़का लगाकर आने वाली नई फिल्मों में धूम-धड़ाके से प्रस्तुत किया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है की क्यों बालीवुड वास्तविक गाने पेश करने के लिए कोई मेहनत नहीं कर रहा? पेश है इसी सिलसिले पर एक नजर…..
पुराने गानों को पुनर्मिश्रित करके नई फिल्मों में उसका इस्तेमाल बहुत पुरानी बात है लेकिन आजकल एक नया चलन शुरू हुआ है । जिसमें पुराने गानों को उसी अंदाज में नई फिल्म में प्रस्तुत किया जा रहा है। जैसे कि सनी देओल अभिनीत और निर्देशित फिल्म चुप में पुरानी फिल्म ‘कागज के फूल’ के गाने जैसे जाने ‘क्या तूने कही जाने क्या मैंने सुनी’ और यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है… गानों का इस्तेमाल बिना किसी फेरबदल के किया गया है।
इसी तरह अक्षय कुमार की फिल्म सेल्फी में मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी शीर्षक गीत को उसी अंदाज में पेश किया गया है। अजय देवगन की आने वाली फिल्म भोला में पुराना गाना आज फिर जीने की तमन्ना है आज फिर मरने का इरादा है को झलकी तक में दिखाया गया है। इसी तरह खबरों के अनुसार अमिताभ बच्चन और गोविंदा अभिनीत फिल्म बड़े मियां छोटे मियां का शीर्षक गाने को भी आने वाली नई फिल्म बड़े मियां छोटे मियां, अक्षय कुमार और टाइगर श्राफ अभिनीत में भी बिना किसी बदलाव के रखा गया है। पुराने गानों को बिना कोई बदलाव के फिल्म में रखने के पीछे भी कोई ना कोई वजह भी प्रस्तुत की गई है।
जैसे कि कभी वह कहानी की मांग पर होता है। या कभी पुराना गाना फिल्म की कहानी से संबंध करते हुए फिल्म के साथ चलता है। ऐसी कई सारी वजह हैं जिससे नए गानों में वह दम नजर नहीं आता जो पुराने गानों में मिलता है। जैसे कि पहले के गानों के स्वर बहुत अच्छा होते थे लेकिन वीडियो उतना अच्छा नहीं होता था। जिसके चलते पहले के गाने देखने से ज्यादा सुनने में अच्छे लगते थे। वहीं आज के गानों में वीडियो ज्यादा अच्छा होता है लेकिन स्वर उतने दमदार नहीं होते। ना तो गाने के बोल ढंग के होते हैं ना हीं संगीत दमदार होता है। जिसकी वजह से 100 में से सिर्फ 10 गाने चर्चित होते हैं।
बाकी गाने कब आए, कब गए पता ही नहीं चलता। पहले के संगीत निर्देशक सारे साजिंदों को स्टूडियो में बुलाकर गाने की रिकार्डिंग के दौरान हर साज को अलग-अलग तरह से बजवाते थे। जैसे तबला, सारंगी, हारमोनियम, पियानो,ढोलक आदि। आज के निर्देशक सिंथेसाइजर का इस्तेमाल करते हैं जिसमें पहले से ही सारे संगीत होते हैं जिस वजह से वास्तविक संगीत का अभाव नजर आता है। पहले के गाने हल्के संगीत के साथ मीठी आवाज के तहत भावनाओं से भरे होते थे जो ना कि सिर्फ दिल तक पहुंचते थे , बल्कि उनको आम श्रोता द्वारा गाना भी आसान होता था। ऐसा नहीं है कि आज के गायक योग्य नहीं है या निर्देशक और गीतकार कुछ अच्छा पेश करने की ताकत नहीं रखते। बल्कि इसके पीछे खास वजह ये है आज के खासतौर पर हिंदी फिल्मों के निर्माता या संगीतकार अपनी कला दिखाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करना चाहते। जैसे कि पहले गाने के बोल लिखे जाते थे और उसके हिसाब से धुन बनती थी लेकिन आज पहले धुन बनती है और उसमें शब्दों को ठूंसा जाता है।
आज भी एक से एक बेहतरीन गायक हैं जैसे श्रेया घोषाल, सुनिधि चौहान, सोनू निगम, अभिजीत,आदि। लेकिन इसके बावजूद पहले के मुकाबले आज के गाने बहुत कम समय तक बजते हैं। शायद यही वजह है कि अब गायक अपने निजी एलबम बनाने लगे हैं। ताकि उनको फिल्म की असफलता की वजह से अपने गाने की असफलता का नुकसान न झेलना पड़े। संगीतकार गायक हिमेश रेशमिया के अनुसार वह फिल्मों से ज्यादा अपने एलबम पर इसलिए ज्यादा ध्यान देते हैं , क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनके द्वारा संगीत दी हुई फिल्म पिटने का असर उनके अपने संगीत करिअर पर पड़े ।
ऐसे में कहना गलत ना होगा कि संगीतकार और गायकों को भी आज के संगीत पर विश्वास नहीं रहा और वह फिल्मों में संगीत देने के बजाय अपना खुद का एलबम बनाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।
आरती सक्सेना