गिरिजाशंकर
पिछले सालों की तरह इस साल भी वहां फिल्मोत्सव आयोजित किया गया। जिसे देखने के लिए तीन दिनों तक दर्शकों का सैलाब उमड़ा रहा। चार साल पहले फिल्म संपादक प्रवीण चौहान ने इस फिल्म समारोह के आयोजन की रूपरेखा तैयार की, जिसे इंद्रावती नाट्य संस्था के रंगकर्मियों के सहयोग से सफलतापूर्वक संपन्न कराया गया।
इस वर्ष विंध्य फिल्मोत्सव में देश विदेश की कुल 260 से अधिक फिल्मों की प्रविष्टियां आई जिनमें से चुनी हुई लगभग 30 फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। अलग-अलग वर्गों में आमंत्रित प्रविष्टियों में से पुरस्कार भी दिए गए। जिसमें आदिवासी वर्ग विशेष रूप से शामिल था। छोटी फिल्म तथा वृत्तचित्र वर्ग में अनेक नौजवानों ने विविध विषयों पर बेहतरीन फिल्मों का निर्माण किया था।
इनमें छोटे शहरों में रहने वाले नौजवान फिल्म निर्माता शामिल थे, जिन्होंने सीमित सुविधाओं के बाद भी अच्छी फिल्में बनाई थी। इस फिल्म समारोह में निर्देशक यशपाल शर्मा की फिल्म ‘दादा लखमी’ का विशेष प्रदर्शन उनकी उपस्थिति में किया गया। हरियाणवी भाषा की इस क्षेत्रीय फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार सहित दर्जनों अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अब तक मिल चुके हैं। ‘दादा लखमी’ यानी पंडित लखमीचंद हरियाणा के लोक कलाकार व कवि थे।
अनपढ़ होते हुए भी उन्हें वेद-पुराणों का ज्ञान था। कहा जाता है कि आजादी की लड़ाई के समय जब वे अपनी रागिनी छेड़ते थे तो लोग नेहरू जी का भाषण छोड़कर दादा लखमी को सुनने चले जाते थे। हरियाणा में तो उन्हें भरपूर सम्मान मिला, विश्वविद्यालयों का नाम उन पर रखा गया, उनके नाम पर हर साल सरकारी सम्मान दिया जाता है लेकिन दुर्भाग्य से वे हरियाणा के बाहर नहीं जाने गये। मात्र 42 साल की उम्र में अपना जीवन समाप्त करने वाले दादा लखमी को देश भर में जो ख्याति और प्रतिष्ठा मिलनी थी, वह नहीं मिल सकी और हरियाणा के बाहर वे अब भी अपरिचित बने हुए हैं।
ऐसे में नौजवान रंगकर्मी और फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा द्वारा दादा लखमी पर फिल्म बनाना किसी ऐतिहासिक काम से कम नहीं है। उनकी यह फिल्म सत्यजीत रे द्वारा फिल्म ‘सद्गति’ की निर्माण प्रक्रिया की तरह लगी। ‘दादा लखमी’ भी आत्मकथात्मक फिल्म है। अभिनय हो, निर्देशन हो, गीत संगीत हो या फोटोग्राफी, ऐसा क्या है ‘दादा लखमी’ में जिसे अद्भुत न कहा जाए।
तकनीकी रूप से यह क्षेत्रीय भाषा हरियाणवी की फिल्म है लेकिन वास्तव में है यह एक विश्व सिनेमा है। यह संयोग है कि फिल्म के तीनों बड़े कलाकार यशपाल शर्मा, राजेंद्र गुप्ता व मेघना मलिक हरियाणा के ही है। रंगकर्मियों और सिनेमा का करीबी रिश्ता रहा है। कई नामचीन फिल्मी कलाकार रंगमंच से ही आए हैं जिनमें यशपाल शर्मा भी शामिल हैं। छोटे शहर के जो रंगकर्मी सिनेमा में नहीं गए वे अपने-अपने शहरों में फिल्म समारोह आयोजित कर सिनेमा व रंगमंच के रिश्ते को मजबूत भी कर रहे हैं। और दर्शकों तक अच्छी फिल्में भी पहुंचा रहे हैं।
सीधी के विंध्य फिल्मोत्सव का आयोजन भी इंद्रावती नाट्य संस्था के रंगकर्मी नीरजकुंदेर, रोशनी मिश्र आदि ने किया तो आजमगढ़ में युवा रंगकर्मी दंपति अभिषेक व ममता पंडित तथा आगरा में नौजवान रंग निर्देशक देव फौजदार हर साल फिल्म समारोह आयोजित करते हैं। छोटे-छोटे शहरों में फिल्म समारोहों का आयोजन प्रकारांतर से फिल्म सोसायटी आंदोलन के पुनर्जीवन से जैसा जगता है।