Manoj Muntashir-Pankhuri Pathak Controversy: दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU Controversy) की दीवारों पर ब्राह्मण विरोधी नारों के बाद मामला तूल पकड़ता जा रहा है। देशभर से इस मामले पर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। संगीतकार मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir Shukla) ने भी ब्राह्मण विरोधी नारों के बाद एक कविता शेयर की, जिसपर कांग्रेस नेता पंखुड़ी पाठक (Pankhuri Pathak) ने उन्हें घेर लिया है। पंखुड़ी ने मनोज मुंतशिर शुक्ला को भाजपा IT Cell का नया सदस्य बताया है।
कांग्रेस नेता पंखुड़ी पाठक (Pankhuri Pathak) ने क्या लिखा?
पंखुड़ी पाठक ने मनोज मुंतशिर को लेकर ट्विटर पर लिखा ‘मुंतशिर से हाल ही में शुक्ला बने भाजपा IT Cell के नए Recruit को ब्राह्मण-ब्राह्मण का विलाप करने पर लगाया है। आवाज भी फट गई है, बिकने के बाद शब्दों का भार भी कम हो गया है। खोखले लगने लगे हैं। बेचारे समझ नहीं पा रहे कि बिक कर ‘सावरकर’ तो बना जा सकता है पर ‘आज़ाद’ नहीं ।”
मनोज मुंतशिर ने दिया ऐसा जवाब
इसपर मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir) ने जवाब में लिखा, ‘मुझे भला-बुरा कहिए, आपकी रोजी-रोटी चलती रहेगी,पर वीर सावरकर जैसे महापुरुषों पर जुबान खोलने से पहले अपनी ज़ुबान की हैसियत देख लें। इतिहास पढ़ें, श्रीमती इंदिरा गांधी भी सावरकर की प्रशंसक थीं। बाकी,शेरों की आवाज फटी हुई ही होती है,आप ने सिर्फ बकरियों को सुना है,आप नहीं समझेंगी।”
पंखुड़ी ने किया पलटवार
पंखुड़ी पाठक ने एक अन्य ट्वीट में लिखा, ‘हम तो सोच रहे थे कि कवि रहे हैं तो शायद थोड़े अच्छे स्तर पर रिक्रूटमेंट हुआ होगा, लेकिन फिर पता चला कि आम गली छाप ट्रोल वाली कैटेगरी में ही नियुक्त हुए हैं। आप सावरकर के ही दिखाए मार्ग पर चलें क्योंकि सरकार बदलते ही आपने माफीवीर पार्ट 2 बन जाना है।’
पंखुड़ी पाठक ने अन्य ट्वीट में लिखा, ‘बस देखना यह है कि कितने दिन लगेंगे माफीनामा आने में। क्यूंकि सरकार जायेगी तो पगार भी जायेगी और आप कौनसे जन्मजात वाले संघी हैं, कॉन्ट्रेक्ट वाले ही तो हैं।
मनोज मुंतशिर की लिखी कविता हो रही वायरल
आपको बता दें कि JNU विवाद के बाद गीतकार मनोज मुंतशिर की ब्राम्हणों की गौरव गाथा पर लिखी कविता तेजी से वायरल हो रही हैं। मनोज मुंतशिर ने ‘ब्राह्मण’ शीर्षक से एक कविता कही है। जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल का भी जिक्र किया है। इसी मसले पर कुछ लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि बिस्मिल ब्राम्हण नहीं थे।