नेटफ्लिक्स पर शृंखला ट्रायल बाई फायर और मिशन मजनू और जी फाइव पर छतरीवाली पिछले दिनों दर्शकों मेँ चर्चित रहीं।
ट्रायल बाई फायर : उपहार सिनेमा का दंश
13 जून 1997 को नई दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके के उपहार सिनेमा मेँ जेपी दत्ता की फिल्म बार्डर के प्रदर्शन के दौरान हुए अग्निकांड मेँ 59 लोगों ने जान गंवाई थी। ये सीरीज पीड़ितों और दोषियों के बीच सालों लम्बी चली कानूनी लड़ाई का दस्तावेज है, जिसमें भावनाओं का उतार चढाव महत्त्वपूर्ण है।
अपने दो लाड़ले बच्चों को खो चुके शेखर कृष्णमूर्ति और नीलम कृष्णमूर्ति हादसे की वजहों और दोषियों को खोज निकालने मेँ सफल जरूर हो जाते हैं, लेकिन न्यायपालिका की प्रणाली और बेहद लम्बी प्रक्रिया का फायदा उठाकर मुख्य दोषी माकूल सजा से बच ही जाते हैं। शेखर की भूमिका मेँ अभय देओल और नीलम की भूमिका मेँ राजश्री देशपांडे ने कमाल की अभिव्यक्ति दी है। अनुपम खेर,आशीष विद्यार्थी, रत्ना पाठक शाह और राजेश तेलंग के अभिनय तथा प्रशांत और रणदीप झा के निर्देशन मेँ भी कसावट है।
मिशन मजनू : जासूस की सच्ची कहानी
नेटफ्लिक्स पर पसंद की जा रही फ़िल्म मिशन मजनू रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के, पाकिस्तान मेँ जासूस बतौर रचे कीर्तिमान पर आधारित मानी जाती है। हालांकि सच्ची कहानी मेँ रोमांस और रोमांच का तड़का भी लगाया गया है। सिद्धार्थ मल्होत्रा और रश्मिका मन्दाना की जोड़ी यक़ीनन पर्दे पर खूब जमी है। शांतनु बागची के निर्देशन में कुमुद मिश्रा, ज़ाकिर हुसैन, शारिब हाशमी और रजित कपूर की भूमिका भी उल्लेखनीय हैं।
छतरीवाली : सामाजिक जागरूकता का मामला
कुछ समय पहले चुपचाप आकर चली गई एक अच्छी फिल्म जनहित में जारी का विषय छतरीवाल में दोहराया गया है। एक अजूबा है हमारी मानसिकता जिसमें मां-बहन के रिश्तों को प्रतिपल तार-तार करती गंदी गालियों को तो नीचे से ऊपर तक हर वर्ग में सर्वमान्यता है, लेकिन परिवार नियोजन के सशक्त साधन का नाम तक लेना सामाजिक अपराध की श्रेणी में शुमार है।
देश के निचले माने जाने वाले तबकों ही नहीं कतिपय ऊंचे और कथित सभ्य घरों में भी.. आवश्यक संरक्षण के अभाव में..गर्भपात का खामियाजा सैकड़ों महिलाओं को रोज भुगतना पड़ रहा है। इस फ़िल्म में ये कड़वा सच बेहद दिलचस्प तरीके से पेश किया गया है।
मध्यवर्गीय परिवेश में रची-बुनी पटकथा के मुताबिक नायिका का, एक निरोध बनाने वाली कम्पनी में काम करना ही कथित रूप से सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने का कारण माना जाता है। तमाम नाटकीय घटनाक्रम के बाद महिलाओं को संगठित कर नायिका उनके भीतर परिवार नियोजन के साधन के प्रति जागरूकता स्थापित करने में कामयाब हो जाती है। रकुलप्रीत सिंह की कुछ खास फिल्मों मेँ एक और नाम बढ़ गया है. सुमित व्यास, सतीश कौशिक और राजेश तेलंग का अभिनय भी उम्दा की श्रेणी मेँ है।