पांच राज्यों में चुनाव को लेकर खासी उठापटक हो रही है। यूपी में बीजेपी को अपने विधायकों को संभालने में खासी परेशानी हो रही है तो उत्तराखंड में भी बगावत के सुर देखने को मिल रहे हैं। काफी दिनों से चर्चा थी कि कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत पार्टी को अलविदा कह सकते हैं। लेकिन फिलहाल बीजेपी ने उन्हें खुद ही पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। उधर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के गवर्नर से उनको कैबिनेट से बर्खास्त करने की सिफारिश की है।
मिली जानकारी के अनुसार हरक सिंह रावत के बगावती तेवर से बीजेपी काफी दिनों से परेशान थी। कई बार नेतृत्व से टकराव हो चुका था। रावत और भाजपा के बीच पिछले कुछ महीनों से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले महीने मंत्री ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।
कोटद्वार के विधायक ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर हमला करते हुए कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज के लिए मंजूरी की अपनी मांग पर सरकार के फैसले पर नाराजगी व्यक्त की थी। इसके बाद, एक बैठक बुलाई गई और उन्हें अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए राजी कर लिया गया था।
उत्तराखंड में डा. हरक सिंह रावत का राजनीतिक सफर कम दिलचस्प नहीं है। उत्तर प्रदेश के समय 1984 में भाजपा से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े, तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 1991 में भाजपा के टिकट पर पौड़ी से फिर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। तब तत्कालीन भाजपा की कल्याण सिंह सरकार में उन्हें पर्यटन मंत्री बनाया गया। वे उस कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री थे।
1993 में एक बार फिर हरक सिंह रावत भाजपा के टिकट पर पौड़ी से ही चुनाव लड़े और दोबारा विधायक बने। तीसरी बार टिकट नहीं मिलने पर भाजपा को छोड़ दी और बसपा का दामन थाम लिया। कुछ समय बसपा में रहने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। 2016 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार से बगावत करने पर उन्हें विधासनसभा सदस्यता गवानीं पड़ी। उन्हें विधायक पद से बर्खास्त कर दिया गया। अभी भाजपा में थे। धामी कैबिनेट में वो अहम मंत्रालय संभाल रहे थे। माना जा रहा है कि वो फिर से कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं।