विधानसभा चुनाव आते ही उत्तराखंड में विभिन्न राजनीतिक दलों में दल-बदल का दौर चल पड़ा है। इस दल-बदल के दौर से सबसे ज्यादा नुकसान राज्य के दौरान भाजपा और कांग्रेस को उठाना पड़ रहा है। इन दोनों दलों के नेता इस राजनीति नुकसान की भरपाई के लिए रात दिन ने एक किए हुए हैं। एक-दूसरे के दलों के दिग्गज नेताओं को अपने अपने राजनीतिक दलों में लाने के लिए खींचतान कर रहे हैं, ताकि एक दूसरे दल को नीचा दिखा सकें। नेताओं के दल-बदल से राजनीतिक दलों को ज्यादा नुकसान और दल-बदलू नेताओं को ज्यादा फायदा होता है।
हाल ही में भाजपा की पुष्कर सिंह धामी सरकार के बर्खास्त कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के रवैये ने राज्य की राजनीति में सबसे ज्यादा तूफान खड़ा किया हुआ है। हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे संजीव आर्य के बाहर जाने से भाजपा को नुकसान हो रहा है और इसकी भरपाई के लिए उसने नैनीताल सुरक्षित सीट की पूर्व विधायक और प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष सरिता आर्य को अपने पाले में कर लिया।
उत्तरकाशी जिले की पुरोला विधानसभा सीट से पूर्व भाजपा विधायक मालचंद और उत्तरकाशी के ही जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक विजल्वाण ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। मालचंद की पुरोला और दीपक की यमुनोत्री विधानसभा सीट पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। भाजपा ने पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को भी पार्टी में शामिल करने की कोशिश की थी परंतु एन वक्त पर कांग्रेस ने उपाध्याय को मना लिया। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए राजकुमार पहले भी भाजपा के विधायक रहे हैं। इस तरह पुरोला विधानसभा सीट पर अब भाजपा से राजकुमार और कांग्रेस से मालचंद एक-दूसरे के विधानसभा चुनाव लड़ेंगे जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में राजकुमार कांग्रेस और मालचंद भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस बार दोनों राजनीतिक दलों के समीकरण बदल गए हैं।
इसी तरह नैनीताल विधानसभा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए दलित दिग्गज नेता यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य भाजपा के टिकट पर और सरिता आर्य कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं और संजीव चुनाव जीते थे। जबकि इस बार इसके उलट संजीव आर्य कांग्रेस के टिकट और सरिता आर्य भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगीं। नैनीताल सीट पर भाजपा के दलित नेता हेमचंद्र सरिता आर्य को भाजपा में शामिल करने के खिलाफ खड़े हो गए हैं क्योंकि उनका टिकट काटकर अब सरिता आर्य को भाजपा अपना उम्मीदवार बनाएगी जबकि 2017 में भाजपा नेता हेमचंद्र का टिकट काटकर कांग्रेस के दल-बदलू नेता संजीव आर्य को भाजपा ने टिकट दिया था।
इस तरह दल-बदलुओं के चक्कर में भाजपा और कांग्रेस अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को नाराज कर रही है। इसी दल-बदल के डर के कारण कांग्रेस और भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप नहीं दिया है जबकि दोनों दलों ने दावे किए हैं कि उन्होंने 70 विधानसभा सीटों में से 50-50 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय कर लिए हैं परंतु दोनों दल उम्मीदवारों की घोषणा करने से कतरा रहे हैं। जैसे ही उम्मीदवारों के नामों की घोषणा होगी वैसे ही दोनों दलों में बगावत के सुर और तेज होंगे और दल-बदल का दौर और तेजी से चलेगा। इसलिए अभी क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी ने अपने कुछ उम्मीदवारी घोषित किए हैं।
इस बार विधानसभा चुनाव में सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस के कुछ नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर दल-बदल की राजनीति को बढ़ावा दिया। हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र से आम आदमी पार्टी ने भाजपा के बागी नेता नरेश शर्मा को पुष्कर सिंह धामी सरकार में ताकतवर मंत्री स्वामी यतिस्वरानंद के खिलाफ खड़ा किया है। माना जाता है कि नरेश शर्मा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक के दाहिने हाथ रहे और शर्मा को आम आदमी पार्टी में शामिल कराने में कौशिक का हाथ रहा है क्योंकि कौशिक और स्वामी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 2016 में भाजपा ने कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के खिलाफ कांग्रेस के ही 9 विधायकों को दल-बदल करा कर राज्य की राजनीति में अस्थिरता कायम की थी।
राजनीतिक विश्लेषक सुरेश पाठक का कहना है कि दल-बदल की राजनीति ने राज्य की राजनीति को अस्थिर किया है। इससे फौरी तौर पर कांग्रेस और भाजपा को राजनीति फायदा तो मिलता दिखाई देता है परंतु यह इनके संगठन को कमजोर करता है। वफादार कार्यकर्ता दल-बदल की राजनीति की साजिश का शिकार हो जाते हैं। आने वाले समय में उत्तराखंड में दल-बदलू नेताओं की राजनीति चौपट हो जाएगी क्योंकि इनके विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के वफादार कार्यकर्ता विरोध करते हैं और कुछ विधानसभा क्षेत्रों में दल-बदलूओं को अपनी विधानसभा सीट बदलनी पड़ती है।