उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में शनिवार से अमित शाह की एंट्री होने वाली है। पार्टी पहले अमित शाह के प्रचार अभियान की शुरुआत ब्रज क्षेत्र से करने जा रही थी, लेकिन ऐन मौके पर इसे बदलकर कैराना से कर दिया गया। भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में चले किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी को बीजेपी की दुखती रग माना जा रहा है। अब समझने वाली बात यह है कि आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी को पश्चिमी यूपी में संभावनाएं नजर आने लगीं और कमान संभालने के लिए खुद अमित शाह आगे आए हैं। कैराना से अमित शाह के प्रचार अभियान की शुरुआत नए समीकरणों का स्पष्ट है, जिससे समाजवादी पार्टी को झटका लग सकता है।
मुजफ्फनगर दंगों की टीस अब भी बाकी
अमित शाह 22 जनवरी को कैराना से डोर टू डोर कैंपेन शुरू कर रहे हैं। शामली और मेरठ में भी उनके सार्वजनिक कार्यक्रम होंगे। बागपत में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ अमित शाह की मीटिंग भी रखी गई है। पश्चिमी यूपी में अमित शाह के खुद कमान संभालने के पीछे मुख्य वजह है, सपा और आरएलडी के वोट बैंक में मची खींचतान। 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों के चलते खासतौर से पश्चिमी यूपी में सपा को बड़ा नुकसान हुआ था, जबकि बीजेपी को बड़ा फायदा। सपा-आरएलडी को ऐसा लगा कि कई सालों के बाद मुजफ्फरनगर दंगा अब पश्चिमी यूपी में कोई खास मुद्दा नहीं बनेगा, लेकिन दंगों की टीस यहां अब भी बाकी है, जो कि सपा और आरएलडी गठबंधन के जाट-मुस्लिम वोट को काटती दिख रही है।
जाट और मुसलमान वोट बैंक को साथ लाना सपा-आरएलडी के लिए हो रहा मुश्किल
पहली लिस्ट पर बवाल होने के बाद सपा-आरएलडी भी दंगों के फैक्टर को समझ रहे हैं, यही कारण है कि मुस्लिम बहुल मुजफ्फरनगर जिले में सपा और आरएलडी ने एक भी मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारा है। मुजफ्फरनगर जिले में 40 प्रतिशत मुस्लिम हैं। ऐसे में गठबंधन के सामने दोहरा संकट पैदा होता दिख रहा है। यदि मुस्लिम नेता को टिकट देते तो हिंदू वोट छिटक जाता, अब मुस्लिम नहीं उतारा है तो जाहिर है मुस्लिम वोट गंवाने का खतरा पैदा हो रहा है। सपा-आरएलडी ने पश्चिमी यूपी के उम्मीदवारों की पहली सूची में 29 नाम जारी किए थे, इनमें 9 मुसलमान कैंडिडेट थे। सपा-आरएलडी की इस लिस्ट पर जमकर बवाल मचा। खासतौर से जाट वोटरों में आरएलडी और सपा के प्रति नाराजगी देखने को मिली।
उम्मीदवारों की लिस्ट से बीजेपी को मिला मौका: सर्वे
एबीपी न्यूज-सी वोटर सर्वे में जब मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट के इस विवाद पर सवाल पूछा गया तो जवाब में 54 प्रतिशत ने माना कि विवादित नेताओं को टिकट देकर अखिलेश यादव ने सत्ताधारी बीजेपी को बड़ा मौका दे दिया है। ऐसे में आरएलडी यानी जाट वोट बैंक वाली पार्टी को साथ लाकर सपा को कितना फायदा होता है और खुद सपा को कितना मुस्लिम वोट मिल पाता है, ये तो समय ही बताएगा, लेकिन इस स्थिति ने बीजेपी को अवसर जरूर दे दिया है।
नाहिद हसन की गिरफ्तारी ने बीजेपी को दे दिया बैठे बिठाए मुद्दा
कैराना से चुनाव प्रचार शुरू करने के लिए अमित शाह को सबसे बड़ी वजह इस बार खुद सपा ने ही दी है। यहां से सपा के टिकट पर घोषित उम्मीदवार नाहिद हसन गिरफ्तार हो चुके हैं। अब कहा जा रहा है कि सपा नाहिद हसन की बहन इकरा हसन को कैराना से टिकट दे सकती है। इकरा इस समय कैराना में डोर टू डोर कैंपेन भी कर रही हैं। नाहिद हसन पर 6 फरवरी 2021 को गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। नाहिद हसन के चलते कैराना के आसपास के क्षेत्रों में सपा की मुस्लिम हितैषी वाली छवि जाट वोटरों को सोचने पर मजबूर कर रही है। यही वो फैक्टर है कि अमित शाह कैराना से ही प्रचार अभियान की शुरुआत कर रहे हैं। वैसे भी बीजेपी ने कैराना में हिंदुओं के पलायन को बड़ा मुद्दा बना चुकी है। मुजफ्फनगर दंगे और हिंदुओं के पलायन जैसे मुद्दों ने पश्चिमी यूपी में बीजेपी की पैठ बढ़ाने में बड़ी मदद की थी।
2017 में 80 प्रतिशत सीटों पर मिली थी बीजेपी को जीत
2017 यूपी विधानसभा चुनाव की बात करें तो तब बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 136 में से करीब 109 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी। सपा यहां केवल 21 सीटें ही जीत पाई थी, जबकि कांग्रेस दो और बसपा केवल तीन सीटें प्राप्त कर सकी थी। पिछले चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगों का प्रभाव स्पष्ट था और पूरे प्रदेश में नरेंद्र मोदी की लहर का भी असर था, अब देखना होगा कि 2022 यूपी चुनाव में पश्चिमी यूपी पर बीजेपी को कितनी सीटें मिलती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समीकरण की बात करें तो यहां पर करीब 27 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 17 प्रतिशत जाट, दलित 25 प्रतिशत, गुर्जर 4 और राजपूत 8 प्रतिशत हैं। यह बात सही है कि सपा को बरसों से मुस्लिम आबादी का सपोर्ट है, लेकिन ध्रुवीकरण की स्थिति में दलित, राजपूत, जाट, गुर्जर, राजपूत एकमुश्त वोट करते हैं। यही कारण है जब भी ध्रुवीकरण होता है तो बीजेपी के पक्ष में हिंदू वोट इकट्ठा हो जाता है।