उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और राजनीतिक दल पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है। ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है और उत्तर प्रदेश की सत्ता का रास्ता पूर्वांचल से होकर गुजरता है। उत्तर प्रदेश विधानसभा की करीब 30 फीसदी सीटें पूर्वांचल से आती हैं। पूर्वांचल के महत्व को ऐसे भी समझ सकते हैं कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल से ही आते हैं। साथ ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पूर्वांचल की वाराणसी सीट से ही सांसद हैं।
बता दें कि पूर्वांचल के 19 जिलों में उत्तर प्रदेश की 117 विधानसभा सीटें आती हैं। इन जिलों में बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थ नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली ,वाराणसी, कौशांबी, प्रयागराज, संत रविदास नगर, मिर्जापुर और सोनभद्र शामिल है।
बीजेपी ने जीती थी 76% सीटें: 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने पूर्वांचल की 117 सीटों में से 90 सीटें जीती थीं। अकेले बीजेपी ने 80 सीटें हासिल की थी, जबकि अपना दल (एस) ने 6 और सुभासपा ने 4 सीट जीती थी। वहीं समाजवादी पार्टी ने 14 और बीएसपी ने 10 सीटों पर जीत प्राप्त की थी। जबकि कांग्रेस और निषाद पार्टी ने 1-1 और एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई थी। इस तरह बीजेपी ने पूर्वांचल की 76% सीटें पिछले चुनाव में अपने नाम की थी।
छोटे दल बड़े काम के: पूर्वांचल में छोटे दलों की भी भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। इसीलिए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (एस), अपना दल (के), निषाद पार्टी महान दल जैसे राजनीतिक दलों की भी भूमिका और सक्रियता काफी अधिक रहती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (एस) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, तो वहीं निषाद पार्टी अकेले मैदान में थी। जबकि इस बार स्थिति कुछ अलग है।
अगर हम छोटे दलों से गठबंधन की बात करें तो समाजवादी पार्टी इस बार काफी आगे दिखाई दे रही है। समाजवादी पार्टी ने ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, केशव देव मौर्य की पार्टी महान दल और कृष्णा पटेल की पार्टी अपना दल (कमेरावादी) के साथ गठबंधन किया है। जबकि बीजेपी के साथ निषाद पार्टी और अपना दल (एस) का गठबंधन है।
अगर हम पूर्वांचल के छोटे दलों की बात करें तो यह सभी दल पिछड़े समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और बीजेपी के नॉन यादव ओबीसी वोट बैंक को प्रभावित करते हैं। समाजवादी पार्टी ने मौर्य, कुर्मी, पटेल और राजभर समुदाय को अपने साथ लेने की कोशिश की है क्योंकि 2017 में इन सभी जातियों ने बीजेपी को भरपूर मात्रा में वोट किया था।
असरदार नेताओं को सपा ने दी जगह: समाजवादी पार्टी ने सिर्फ छोटे दलों से गठबंधन ही नहीं किया है बल्कि कई जिलों में उन जिलों के असरदार नेताओं को भी सपा में शामिल करवाया है। बलिया के कद्दावर नेता अंबिका चौधरी को समाजवादी पार्टी ने स्थान दिया और उनके आने से पार्टी मजबूत हुई। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में समाजवादी पार्टी को सफलता भी मिली। बस्ती में कुर्मी समाज के बड़े नेता राम प्रसाद चौधरी को बहुजन समाज पार्टी से तोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल कराया गया।
गोरखपुर में ब्राह्मण नेता और बाहुबली हरिशंकर तिवारी के परिवार को भी समाजवादी पार्टी ने सदस्यता ग्रहण करवाई। स्वामी प्रसाद मौर्य को भी समाजवादी पार्टी ने सदस्यता दिलवाई जो कुशीनगर के पड़रौना सीट से विधायक हैं। वही मऊ की मधुबन सीट से विधायक दारा सिंह चौहान को भी समाजवादी पार्टी ने अपने पाले में लिया।
बीजेपी का निषाद पार्टी और अपना दल से गठबंधन: वही पूर्वांचल में पिछला प्रदर्शन दोहराने के लिहाज से बीजेपी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। 2017 चुनाव में अकेले रही निषाद पार्टी के साथ बीजेपी ने गठबंधन किया। वहीं पर अपना दल (एस) के साथ बीजेपी का गठबंधन बरकरार है। 2017 में निषाद समाज का वोट बंटा था उसे बीजेपी ने इस बार अपने साथ लाने की कोशिश की है।
वहीं पर कर्मी और पटेलों को रिझाने के लिए अपना दल (एस) के साथ बीजेपी का गठबंधन जारी है। उत्तर प्रदेश में और खासकर पूर्वांचल में जातीय राजनीति हमेशा हावी रही है। सभी राजनीतिक दल जो सत्ता में आना चाहते हैं वो जातीय समीकरण को साधते हुए ही आगे बढ़ते हैं।