उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी पार्टियां जातीय समीकरण साधने में जुटी हुई हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश में बिना जातीय समीकरण साधे सत्ता तक पहुंचना असंभव सा लगता है। सभी दल अपने हिसाब से जातीय समीकरण साधते हैं और सत्ता की दहलीज तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ी आबादी काफी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि जिन पार्टियों को पिछड़ी आबादी का समर्थन मिलता है वही सत्ता तक पहुंचने में कामयाब होते हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव से बीजेपी ने नॉन जाटव दलित और नॉन यादव ओबीसी समीकरण को साधा और उत्तर प्रदेश में शानदार जीत प्राप्त की। 2014 से ही बीजेपी ने पिछड़े समाज के नेताओं को संगठन में भी महत्वपूर्ण जगह दी और जिम्मेदारी भी दी। उन्हीं नेताओं में एक नाम केशव प्रसाद मौर्य का है। वर्तमान में केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा चेहरा हैं।
केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं और पिछड़ों को बीजेपी से जोड़ने का श्रेय भी उनको जाता है। केशव, मौर्य समाज से आते हैं जिनकी आबादी उत्तर प्रदेश में करीब 4 फीसदी है। लेकिन उत्तर प्रदेश के करीब 12 जिलों में यह आबादी 12 से 15 फ़ीसदी हो जाती है और चुनाव की दृष्टि से भी काफी निर्णायक साबित होती है।
पहली बार सिराथू में खिलाया था कमल: केशव प्रसाद मौर्य ने 2012 में सिराथू विधानसभा से विधानसभा चुनाव जीता था और पहली बार सिराथू विधानसभा में कमल खिलाया था। उसके बाद 2014 में उन्हें फूलपुर लोकसभा से बीजेपी ने टिकट दिया और पहली बार फूलपुर लोकसभा से उन्होंने पार्टी को जीत दिलाई। 2016 में बीजेपी ने पिछड़े समाज को साधने के लिए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया और केशव प्रसाद मौर्य की लोकप्रियता भी कार्यकर्ताओं और पिछड़े समाज में बढ़ती चली गई।
बीजेपी को जिताने के लिए केशव प्रसाद मौर्य ने खूब मेहनत की और 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भारी बहुमत प्राप्त कर सरकार बनाई। बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पिछड़े समाज ने बीजेपी को खुलकर वोट किया था।
2017 में सीएम के लिए सामने आया था नाम: 2017 में जब बीजेपी की सरकार बनी उस समय केशव प्रसाद मौर्य का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए भी चला था। लेकिन आखिरी वक्त में योगी आदित्यनाथ का नाम सामने आया और पार्टी ने उनको उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था। कई बार ऐसी खबरें भी आईं कि केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच बनती नहीं है। मीडिया से बातचीत में खुद केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि चुनाव कमल के निशान पर लड़ा जा रहा है। इससे इन अफवाहों को और भी बल मिल जाता है कि केशव प्रसाद मौर्य, योगी आदित्यनाथ के नाम पर सहमत नहीं है। हालांकि समय समय पर दोनों नेता इन खबरों का खंडन भी करते रहे हैं।
पिछड़े नेताओं ने छोड़ी बीजेपी: 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्या, धर्म सिंह सैनी जैसे कुछ और नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया था। ये नेता भी पिछड़े समाज से आते थे। बीजेपी यह संदेश देने में कामयाब रही कि पिछड़ों का हित बीजेपी ही कर सकती है। लेकिन 2022 चुनाव से पूर्व स्वामी प्रसाद मौर्या ,दारा सिंह चौहान ,धर्म सिंह सैनी, समेत कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी पर आरोप लगाया कि बीजेपी पिछड़े समाज का हित नहीं चाहती है। बीजेपी छोड़ने वाले सभी नेताओं ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा और सभी ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही।
केशव प्रसाद मौर्य की बढ़ी अहमियत: आगामी 2022 चुनाव के पहले जब बीजेपी से पिछड़े नेताओं ने त्यागपत्र दिया है, ऐसे में केशव प्रसाद मौर्य की अहमियत भी पार्टी में काफी बढ़ गई है। पार्टी ने पिछड़ों को साधने की जिम्मेदारी केशव प्रसाद मौर्य को दी है। अगर पिछड़े समाज ने बीजेपी से दूरी बनाई तो 2022 में बीजेपी का सरकार में आना काफी मुश्किल होगा। इस लिहाज से पिछड़ों को साधने की जिम्मेदारी बीजेपी के लिए सबसे जरूरी है। इसी कड़ी में बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्या को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। बता दें कि यूपी में करीब 51 फ़ीसदी आबादी पिछड़े समाज की है और 2014 ,2017 और 2019 के चुनाव में बीजेपी को इस समाज का भरपूर समर्थन मिला था।
केशव का भी नाम संभावित सीएम उम्मीदवारों में: वर्तमान में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश 2022 चुनाव के लिए सीएम पद का कोई चेहरा घोषित नहीं किया है। पार्टी 2017 से लेकर अब तक किए गए कार्यों के मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है। समय-समय पर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पीठ थपथपाते रहते हैं और उनकी प्रशंसा करते रहते हैं। लेकिन अभी तक बीजेपी ने आधिकारिक रूप से मुख्यमंत्री पद के लिए किसी के नाम का ऐलान नहीं किया है। इसलिए केशव प्रसाद मौर्य के समर्थक मानते हैं कि केशव प्रसाद मौर्या का नाम सीएम चेहरे के रूप में पूरी तरह से बाहर नहीं हुआ है।