उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और बहुमत किसको मिलेगा यह भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही तय करेगा। किसान आंदोलन के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति बदली है। इसके साथ ही यह भी माना जा रहा है कि जाट बीजेपी से नाराज है। 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में जाटों ने बीजेपी को एकमुश्त वोट किया था और बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विरोधियों का सूपड़ा साफ कर दिया था।
बीजेपी के पास पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई फायर ब्रांड नेता है। इनमें दो नेता ऐसे हैं जो ध्रुवीकरण के मास्टर कहे जाते हैं। हम बात कर रहे हैं बीजेपी के विधायक संगीत सोम और बीजेपी विधायक और सरकार में गन्ना मंत्री सुरेश राणा के बारे में जो वर्तमान में क्रमशः मेरठ की सराधना और शामली की थाना भवन सीट से विधायक हैं। दोनों नेता राजपूत समुदाय से आते हैं।
बीजेपी ने दिया टिकट: बीजेपी ने संगीत सोम और सुरेश राणा दोनों विधायकों को फिर से टिकट दिया है। संगीत सोम को बीजेपी ने मेरठ जिले की सरधना सीट से टिकट दिया है। संगीत सोम 2012 और 2017 में विधायक बन चुके हैं। जबकि गन्ना मंत्री सुरेश राणा को बीजेपी ने शामली जिले की थानाभवन विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। थाना भवन से सुरेश राणा पिछले दो बार से विधायक चुने जा रहे हैं।
मुज्जफरनगर दंगों की दिला रहें हैं याद: संगीत सोम और सुरेश राणा दोनों नेता पश्चिमी यूपी में बीजेपी के फायर ब्रांड नेता है। विपक्षी पार्टियां इन दोनों ही नेताओं पर आरोप लगाती हैं कि यह लोग ध्रुवीकरण करते हैं और एक समुदाय पर निशाना साधते हैं। वहीं पर संगीत सोम और सुरेश राणा 2022 का चुनाव प्रचार करते हुए लोगों से अपील कर रहे हैं कि समाजवादी पार्टी को वोट मत करना क्योंकि मुजफ्फरनगर दंगे उन्हीं के कारण हुए थे।
दोनों नेताओं का कहना है कि दंगों में समाजवादी पार्टी ने हिंदू समुदाय को निशाना बनाया था। इसके साथ ही संगीत सोम और सुरेश राणा लोगों से अपील करते हैं कि मुज्जफरनगर दंगों में सिर्फ हिंदू पक्ष पर ही कार्यवाही की गई थी। हालांकि ये नेता कहते हैं कि बीजेपी सरकार सबका साथ – सबका विकास की नीति पर चल रही है और सबके लिए काम होता है।
अखिलेश पर लगाए तुष्टीकरण के आरोप: संगीत सोम और सुरेश राणा दोनों नेता चुनाव प्रचार में अखिलेश यादव पर तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक पक्षीय कार्यवाही की थी। दोनों नेताओं का मानना है कि एक समुदाय को खुश करने के लिए दूसरे समुदाय को सपा सरकार ने निशाना बनाया था और उनपर कार्यवाही की थी।
सुरेश राणा शामली की थानाभवन सीट से उम्मीदवार: गन्ना मंत्री सुरेश राणा को बीजेपी ने शामली जिले की थाना भवन सीट से उम्मीदवार बनाया है। 2012 और 2017 का चुनाव सुरेश राणा यहीं से जीते थे। रालोद ने यहां से अशरफ अली को प्रत्याशी बनाया है जबकि बीएसपी ने सपा के बागी जहीर मलिक को अपना उम्मीदवार बनाया है।
बता दें कि थानाभवन सीट मुस्लिम बाहुल्य सीट है और यहां पर 95000 के आसपास मुस्लिम वोट है। 45 हजार जाट, 25 हजार ठाकुर, 15 हजार ब्राह्मण और 22 हजार सैनी मतदाता भी यहां पर हैं। थाना भवन से समाजवादी पार्टी के बागी शेर सिंह राणा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है जिसके बाद से ही बीजेपी प्रत्याशी की मुसीबतें बढ़ी हुई है। हालांकि अगर चुनाव में पोलराइजेशन हुआ तो सुरेश राणा लगातार तीसरी बार विधायक बन सकते हैं।
संगीत सोम मेरठ की सरधना सीट से उम्मीदवार: बीजेपी ने सरधना विधानसभा सीट से संगीत सोम को लगातार तीसरी बार टिकट दिया है। जबकि बीएसपी से संजीव कुमार धामा और समाजवादी पार्टी से अतुल प्रधान प्रत्याशी हैं। सरधना विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य सीट है और यहां पर 95 हजार के करीब मुस्लिम मतदाता है जबकि 65 हजार ठाकुर मतदाता भी सरधना सीट पर है। 45 हजार दलित, 30 हजार गुर्जर, 55 हजार जाट मतदाता भी सरधना विधानसभा सीट पर हैं। सरधना विधानसभा सीट पर बीजेपी ने अब तक 6 बार जीत प्राप्त की है जबकि समाजवादी पार्टी को अभी तक एक भी जीत नहीं प्राप्त हुई है।
दंगों के आरोप में दोनों नेता हुए थे गिरफ्तार: बता दें कि 2013 मुजफ्फरनगर दंगों में बीजेपी के दोनों विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा को गिरफ्तार किया गया था। संगीत सोम पर फर्जी वीडियो अपलोड करने और दंगा भड़काने के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत केस दर्ज किया गया था। वहीं सुरेश राणा पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। जिसमें कहा गया था कि उन्होंने ऐसा भाषण दिया जिससे दो समुदायों के बीच में तनाव पैदा हो। दोनों नेताओं को इसी मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। पिछ्ले साल ही उत्तर प्रदेश सरकार ने संगीत सोम और सुरेश राणा के खिलाफ मुकदमों को वापस ले लिया था। एमपी एमएलए कोर्ट ने इसकी सहमति भी दे दी थी।