जब कभी झूठ की बस्ती में सच को तड़पते देखा, तब मैंने अपने भीतर किसी बच्चे को सिसकते देखा- खड़गे को पीएम का जवाब
पीएम ने कविता के इस अंश को पढ़ा, ‘‘सूरज जायेगा भी तो कहां, उसे यहीं रहना होगा। यहीं हमारी सांसों में, हमारी रगों में, हमारे संकल्पों में, हमारे रतजगों में। तुम उदास मत होओ, अब मैं किसी भी सूरज को नहीं डूबने दूंगा।’’

वर्तमान लोकसभा के अंतिम सत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में ‘‘सूरज को नहीं डूबने दूंगा’’ की पंक्ति वाली एक कविता सुनायी जिसका राजनीतिक विश्लेषक विभिन्न अर्थ निकाल सकते हैं। मोदी ने बृहस्पतिवार (07 फरवरी) को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियों का लेखा जोखा पेश किया तथा विपक्ष के तमाम आरोपों का विस्तार से जवाब दिया। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने हिंदी के मशहूर कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता का अंश पढ़ा। इसका शीर्षक है ‘‘सूरज को नहीं डूबने दूंगा।’’
उन्होंने कविता के इस अंश को पढ़ा, ‘‘सूरज जायेगा भी तो कहां, उसे यहीं रहना होगा। यहीं हमारी सांसों में, हमारी रगों में, हमारे संकल्पों में, हमारे रतजगों में। तुम उदास मत होओ, अब मैं किसी भी सूरज को नहीं डूबने दूंगा।’’ इससे पहले चर्चा में भाग लेते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने संबोधन में कर्नाटक के समाज सुधारक वासवन्ना की एक कविता का जिक्र किया था। खड़गे की कविता पर जवाबी हमला बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने उस कविता के कुछ और अंश भी पढ़े।
उन्होंने कविता के संवेदनात्मक पहलू का उल्लेख करते हुये कहा ‘‘जब कभी झूठ की बस्ती में सच को तड़पते देखा है, तब मैंने अपने अंदर किसी बच्चे को सिसकते देखा है। अपने घर की चार दीवारी में अब लिहाफ में भी सिहरन होती है, जिस दिन से किसी को गुरबत में सड़कों पर ठिठुरते देखा है।’’ पीएम मोदी अपने भाषण के दरम्यान आक्रामक रुख अख्तियार किए रहे। उन्होंने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला और कहा कि उन पर आरोप लगाने से पहले कांग्रेस अपने ऊपर लगे आरोपों को देख ले। मोदी ने कहा, “उल्टा चोर चौकीदार को डांटे।” पीएम ने कहा, “आपातकाल लगाया आपने, सेना का अपमान किया आपने और आरोप मुझ पर लगा रहे हैं, चोर मुझे कह रहे हैं।”