Loksabha Elections 2019: आम चुनाव के नतीजों से ऐन पहले विपक्षी खेमे में सुगबुगाहट तेज हो चली है। पूरे महासमर में मोटे तौर पर गायब रहीं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) अध्यक्ष सोनिया गांधी राजनीतिक रूप से अंतिम सक्रिय पर हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-बीजेपी चीफ अमित शाह की जोड़ी से निपटने और जोड़-तोड़ के लिए वह विपक्ष के तमाम नेताओं से संवाद साध रही हैं। सोनिया की इस मोर्चाबंदी में उनके प्रमुख सारथी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) सर्वेसर्वा एम.के.स्टालिन, कांग्रेस के सहयोगी और दिग्गज नेता शरद पवार व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ हैं। यूपीए अध्यक्ष की निगाहें इसके अलावा बिहार के सीएम और जनता दल (यूनाइटेड) अध्यक्ष नीतीश कुमार के साथ लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के रामविलास पासवान को भी एनडीए से तोड़ने पर टिकी हैं।
दरअसल, विपक्षी खेमा किसी भी हाल में बीजेपी या फिर एनडीए की सरकार नहीं बनने देना चाहता है। यही वजह है कि गुरुवार (16 मई, 2019) को कांग्रेस ने एक बड़ा त्याग कर दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्पष्ट किया कि अगर कांग्रेस को पीएम पद नहीं मिलता है, तो इस बात से उसे कोई परेशानी नहीं होगी। इससे पहले तक पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी इस पद की दौड़ में सबसे प्रमुख दावेदार माने जा रहे थे।

बहरहाल, ताजा मामले में एनडीटीवी की साइट पर छपे पत्रकार-लेखिका स्वाति चतुर्वेदी के लेख में बताया गया कि सोनिया करीब 15 दिनों से विपक्ष के तमाम नेताओं को साधने में जुटी हैं। हाल ही में उन्होंने द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) सर्वेसर्वा एम.के.स्टालिन समेत विपक्ष के अन्य नेताओं को मुकालात करने के लिए खत भी लिखे थे।
लेख के मुताबिक, यूपीए अध्यक्ष के कहने पर ही हाल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ओडिशा के सीएम व बीजू जनता दल (बीजेडी) अध्यक्ष नवीन पटनायक और तेलंगाना के सीएम व तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के.चंद्रशेखर राव को फोन किया था। कमलनाथ ने इन दोनों नेताओं को दिल्ली में सोनिया से आकर मिलने के लिए कहा था। चूंकि, कमलनाथ और पटनायक दून स्कूल से साथ में पढ़े हैं, लिहाजा उनके बीच अच्छी घनिष्ठता बताई जाती है।
उधर, स्टालिन को केसीआर और वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी को मनाने का काम सौंपा गया है। सोमवार को स्टालिन व केसीआर की भेंट भी हुई थी। यह भी बताया गया कि केसीआर पहले से आजाद और कांग्रेस के ट्रेजरर अहमद पटेल के संपर्क में हैं। वहीं, कांग्रेस के सहयोगी और दिग्गज नेता शरद पवार ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) अध्यक्ष मायावती और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को साधेंगे। उनके इन दोनों से अच्छे राजनीतिक संबंध बताए जाते हैं।
इससे पहले, आजाद ने कहा था कि अगर बीजेपी को चुनावी नतीजों में कम सीटें मिलीं तब एनडीए के घटक दल उसका साथ छोड़ देंगे। उनका दावा था कि ऐसी स्थिति में वह नीतीश सरीखे नेताओं संग मिल कर दिल्ली में सरकार बना लेंगे, जबकि पासवान भी यूपीए-1 में कांग्रेस के साथी रह चुके हैं। मौजूदा समय में बिहार में नीतीश की पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही है। वहीं, पासवान मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं।
[bc_video video_id=”5802407266001″ account_id=”5798671092001″ player_id=”JZkm7IO4g3″ embed=”in-page” padding_top=”56%” autoplay=”” min_width=”0px” max_width=”640px” width=”100%” height=”100%”]
यह है सोनिया के एक्टिव मोड में आने की वजह: चुनाव के अंतिम समय में सोनिया अचानक से एक्टिव इसलिए हुईं हैं, क्यों कि विपक्ष के ज्यादातर नेताओं के बीच उनकी अच्छी पैठ है। फिर चाहे दीदी से उनके अच्छे राजनीतिक रिश्ते की बात हो या फिर पासवान से पुराना नाता। राजनीतिक जानकारों की मानें तो राहुल नई पीढ़ी के नेताओं मसलन लालू के बेटे तेजस्वी यादव, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल सरीखे नए चेहरों को आसानी से मना लेंगे। पर उन्हें पुराने और अनुभवी नामों को साधने में थोड़ी दिक्कत का सामना करना होगा। ऐसे में सोनिया उन लोगों को साथ लाने के लिए फ्रंटफुट पर आई हैं।