चुनाव आयोग द्वारा कर्नाटक में विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के किए जाने साथ ही राजनीतिक दलों के बीच सत्ता के लिए लड़ाई तेज हो गई है। यह देखना होगा कि क्या सत्तारूढ़ भाजपा चार दशक पुराने चलन को समाप्त कर राज्य में लगातार दो बार विधानसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाती है या कांग्रेस सत्ता में लौटकर 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी चुनौती पेश करने में सफल होगी।
कर्नाटक में 1985 के बाद से कोई भी राजनीतिक दल लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सका है। भाजपा इस इतिहास को फिर से लिखने और दक्षिण भारत में अपने गढ़ को बनाए रखने के लिए बेहद उत्सुक है।
कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में खुद को मुख्य विपक्षी दल के रूप में स्थापित करने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए सत्ता हासिल करने की इच्छुक है। साथ ही इस बात पर भी नजर रखने की जरूरत है कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के नेतृत्व वाला जनता दल (सेक्युलर) किसी भी दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होने पर सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाकर “किंगमेकर” के रूप में उभर पाएगा।
कांग्रेस और जद (एस) ने क्रमश: 124 और 93 सीट के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। पिछले दो दशकों की तरह कर्नाटक में 10 मई को होने वाले चुनाव में इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलने की उम्मीद है, अधिकतर क्षेत्रों में कांग्रेस, भाजपा और जद (एस) के बीच सीधी लड़ाई होगी। जहां AAP भी राज्य में कुछ पैठ बनाने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरे छोटे दल जैसे खनन कारोबारी जनार्दन रेड्डी का कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (केआरपीपी), वाम दल, BSP और असदुद्दीन ओवैसी AIMIM कुछ चुनिंदा सीट पर चुनाव लड़ेगी।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कर्नाटक चुनाव में सत्ता विरोधी लहर एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को लगातार जनादेश नहीं दिया है। यह आखिरी बार वर्ष 1985 में हुआ था, जब रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सत्ता में वापस आई थी।
पुराने मैसूरु (दक्षिणी कर्नाटक) क्षेत्र के वोक्कालिगा क्षेत्र में जद (एस) का दबदबा है। जहां एक ओर कांग्रेस का वोट आधार पूरे राज्य में समान रूप से फैला हुआ है, वहीं भाजपा का वोट बैंक उत्तर और मध्य क्षेत्रों में वीरशैव-लिंगायत समुदाय के लोगों के बड़ी संख्या में मौजूद रहने के कारण स्पष्ट है। कर्नाटक की कुल आबादी में लिंगायत करीब 17 फीसदी, वोक्कालिगा 15 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 35 फीसदी, अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति 18 फीसदी, मुस्लिम करीब 12.92 फीसदी और ब्राह्मण करीब तीन फीसदी हैं।
भाजपा ने विधानसभा में पूर्ण बहुमत सुनिश्चित करने के लिए कम से कम 150 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है। भाजपा 2018 जैसी स्थिति से बचना चाहती है, जब वह शुरुआत में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई थी, और बाद में उसे सत्ता बचाने के लिए कांग्रेस और जद (एस) के विधायकों के दलबदल पर निर्भर रहना पड़ा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बार-बार कर्नाटक का दौरा करने के अलावा गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के चुनावी राज्य में होने से भाजपा का चुनाव प्रचार तेजी से चल रहा है। लेकिन, भाजपा को सत्ता पर फिर से काबिज होने के लिए जुझारू कांग्रेस का मुकाबला करना होगा, जिसने भ्रष्टाचार को राजनीतिक चर्चा का केंद्रीय विषय बनाने का प्रयास किया है।