सोमवार को मिजोरम की 40 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव प्रचार थम गया। इस चुनाव में बीजेपी पूरी कोशिश में है कि वह कांग्रेस के किले में किसी तरह सेंध लगा दे। लेकिन, हिंदुत्व की राजनीति की पहचान बीजेपी को ईसाई बहुल मिजो समुदाय में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना टेढ़ा साबित हो है। इस बात को बीजेपी के नेता भी महसूस कर रहे हैं। बीजेपी का हिदुत्ववादी चेहरा प्रदेश में सबसे बड़ी चुनौती है। खुद मिजोरम के बीजेपी अध्यक्ष जॉन वी ह्लूना ने जीत में हिंदुत्व को बड़ी बाधा बताया है। न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘हिंदुत्व सबसे बड़ी चुनौती है। यहां (चर्च) प्रार्थना सभा में कहा जाता है कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए प्रार्थना करें।”
बीजेपी अध्यक्ष ने बताया कि ऐसे कई मौकों के वह गवाह रहे हैं जब चर्च में बीजेपी को ईसाई समुदाय के लिए ख़तरा बताया गया है। उन्होंने बताया कि चर्च में स्वघोषित आंकड़े दिए जाते हैं कि कैसे 2014 से 2017 के बीच बीजेपी के शासनकाल में ईसाई मारे गए हैं। ऐसी स्थिति में हिंदुत्व बीजेपी के लिए मिजोरम में बड़ी रुकावट है। इस दौरान उन्होंने बताया कि वे जनता को समझाने का प्रयास करते हैं कि मिजोरम में अगर बीजेपी की सत्ता आती है तो यहां शासन करने के लिए उत्तर प्रदेश से लोग नहीं आएंगे। बल्कि, उन्हीं के समाज के मिजो (ईसाई) लोग होंगे।
मिजोरम को लेकर बीजेपी हाईकमान की नीतियों पर भी प्रदेश अध्यक्ष ने अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि मिजोरम के प्रति हाईकमान का रवैया संतोषजनक नहीं हैं। उनके क्षेत्र में हाईकमान से कोई भी नेता दौरा करने नहीं पहुंचा। इसके अलावा पार्टी राज्य में आर्थिक मसलों से जूझ रही है। लेकिन, इस तरफ कोई ध्यान नहीं है। इसके अलावा मिजो जनता हिंदी या अंग्रेजी नहीं बोलती, जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या दूसरे मंत्रियों का जनता पर कोई प्रभाव यहां नहीं है। उन्होंने इशारा किया कि बीजेपी हाईकमान लोकल स्तर पर नेताओं को मज़बूत करने का काम करे। इसके लिए फंड की जरूरत है और इस कमी को पूरा करना बहुत जरूरी है।