पांच राज्यों के चुनावों में डिजिटल प्रचार पर खर्च किए गए धन की जानकारी प्रस्तुत करने के लिए उम्मीदवारों के चुनावी खर्च वाले खंड में एक नया कॉलम जोड़ा गया है। उम्मीदवार पिछले चुनावों में भी डिजिटल प्रचार पर खर्च किए गए धन का उल्लेख करते थे। लेकिन ये पहली बार है जब इस तरह के खर्च को दर्ज करने के लिए चुनाव आयोग ने कॉलम अलग से बनाया गया है।
कोरोना को रोकने के लिए आयोग ने 22 जनवरी तक रैलियों, रोड शो और इसी तरह के अन्य प्रचार कार्यक्रमों के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया है। चुनावी सभाओं पर प्रतिबंध के साथ पार्टियां मतदाताओं तक पहुंचने के लिए डिजिटल और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रही हैं। हालांकि, इस बार चुनावी खर्च की सीमा बढ़ाई गई है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले प्रत्याशियों के खर्च की सीमा 28 लाख से बढ़ाकर 40 लाख कर दी गई है। लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशी 70 लाख के बजाय अब 95 लाख रुपये खर्च कर सकेंगे।
लोकसभा चुनाव के लिए बड़े राज्यों में प्रत्याशी 95 लाख और छोटे राज्यों में 75 लाख रुपये खर्च कर सकेंगे। इससे पूर्व यह सीमा क्रमश: 70 लाख और 54 लाख रुपये थी। विधानसभा चुनाव के मामले में पुनरीक्षित खर्च बड़े राज्यों के लिए 28 लाख के बजाय 40 लाख होगा। छोटे राज्यों में अधिकतम खर्च सीमा 20 लाख से बढ़ाकर 28 लाख रुपये की गई है।
एक अधिकारी ने बताया कि पार्टियां और उम्मीदवार अब तक इस तरह के खर्च का खुलासा खुद करते थे। डिजिटल वैन जैसी चीजों पर खर्च का ब्योरा देते थे। लेकिन अब इस चुनाव में इस तरह के खर्च को दर्ज करने के लिए एक अलग कॉलम बनाया गया है।
ध्यान रहे कि जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 10 ए के अनुसार निर्धारित समय के भीतर अपने चुनावी खर्च को दर्ज करने में विफल रहने पर संबंधित उम्मीदवार को चुनाव आयोग द्वारा चुनाव लड़ने से तीन साल की अवधि के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है।