Bihar Elections 2020: ‘मौसम विज्ञानी’ रामविलास के “चिराग” ने लिया है सियासी जीवन का पहला बड़ा फैसला, जानें पासवान की कहानी
चिराग, फैशन डिजाइनिंग और फिल्मी दुनिया में भी किस्मत आजमा चुके हैं, पर वहां उनका सिक्का खास चला नहीं। फ्लॉप हुए तो पिता की विरासत संभाली और सियासत में आ गए। बीते छह सात साल से सक्रिय राजनीति में हैं।

Bihar Elections 2020: सियासत के ‘मौसम विज्ञानी’ कहे जाने वाले केंद्रीय मंत्री और LJP संरक्षक रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने राजनीतिक जीवन का पहला बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने सूबे में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से रविवार को किनारा कर लिया। साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा। कहा कि उनकी पार्टी चुनाव में JD(U) कैंडिडेट्स उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशियों को उतारेगी। हालांकि, लोजपा ने यह सुनिश्चित किया है कि वह भगवा पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेगी।
चिराग मौजूदा समय में बिहार के जमुई से दूसरी बार के सांसद हैं। मूल रूप से बिहार के हैं, पर उनका जन्म दिल्ली में 31 अक्टूबर, 1982 को हुआ था। उनके जन्म के अगले ही साल यानी कि 1983 में रामविलास पालवान ने ‘दलित सेना’ का गठन हुआ था। वह उसी को लोजपा की रीढ़ की हड्डी मानते हैं। चिराग शुरुआती दिनों में मंत्री बनने के बारे में सोचते थे। हाल ही में ‘India Today Group’ को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था- 1989 में पिता सामाजिक कल्याण मंत्री थे। तब मेरा जवाब होता था कि मैं ये मंत्री बनूंगा। फिर पिता रेल मंत्री बने तब मैं उस मंत्रालय का काम संभालने की बात कहता था। पर मुझे तब नहीं मालूम था कि पहले सांसद बनना पड़ता है।
वह एयरफोर्स स्कूल से पढ़े हैं। आगे कंप्यूटर साइंस स्ट्रीम से बीटेक की पढ़ाई की। चूंकि, इंजीनियरिंग के दौर में दोस्त-यार चिराग से कहते थे कि वह अच्छा दिखते हैं। उन्हें फिल्म लाइन में जाने की कोशिश करनी चाहिए। हालांकि, सिनेमा इंडस्ट्री में जाने के चक्कर में वह अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए। पहले उन्होंने एमिटी में दाखिला लिया था, फिर बाद में बुंदेलखंड विवि में एडमिशन लिया, लेकिन फिल्मों के सिलसिले में उनका मुंबई आना-जाना लगा रहता था, लिहाजा बीटेक आधे में ही छूट गया।
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2003 के आसपास से उनका मुंबई आना जाना शुरू हुआ था। वहां उन्होंने एक्टिंग और थियेटर की क्लासेज लीं। डांस की ट्रेनिंग भी ली। वह मानते हैं कि उनके डिक्शन में उस दौरान काफी सुधार हुआ, जिसका फायदा उन्हें राजनीति में मिल रहा है। बहरहाल, फैशन डिजाइनिंग और फिल्मी दुनिया में आगे किस्मत आजमाई, पर वहां उनका सिक्का खास चला नहीं। ‘मिलें न मिले हम’ फिल्म चिराग का पहला और आखिरी ब्रेक था। वह मानते हैं कि भले ही वह हीरो बनने गए हों, मगर यही वह दौर था जब उनका खुद से परिचय हुआ था।
उनके मुताबिक, “यह फिल्म मैंने नहीं की होती, तो शायद मैं खुद को नहीं पहचान पाते। मुझे वहां जाने के बाद पता लगा कि मैं उसके लिए बना नहीं हूं। मैं डायलॉग बोलता था, तो बोलता ही जाता था। दूसरों के डायलॉग काट देता था। धीरे-धीरे मुझे पता लगा कि मैं रील लाइफ के बजाय रील लाइफ के लिए बना हूं। मुझे लगा कि मैं भाषण दे सकता हूं और अगर काम किया जाए, तो अच्छा कर सकता हूं।” फ्लॉप हुए तो पिता की विरासत संभाली और सियासत में आ गए। बीते छह सात साल से सक्रिय राजनीति में हैं। वह नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता के कायल हैं। LJP के UPA में रहने के दौरान चिराग की ओर से पिता पर दबाव था कि वह गठबंधन बदलें। LJP को NDA में लाने के लिए पिता को उन्होंने ही मनाया था। बता दें कि गुजरात दंगों के बाद रामविलास एनडीए से अलग हो गए थे।
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