Spring Season Google Doodle: देखिए कैसा है फूल पत्तियों वाला गूगल का वसंत वाला डूडल
Spring Season (वसंत का मौसम) Google Doodle, Spring Season Months, Meaning, Images, Quotes in Hindi: वसंत के मौसम का जश्न मनाने के लिए, Google ने प्रकृति के जीवंत रंगों जैसे नीले, हरे, लाल, नारंगी, पीले, गुलाबी और हरे रंग का एक सुंदर डूडल बनाया है।

Spring Season (वसंत का मौसम) Google Doodle, Spring Season Months, Meaning, Images, Quotes: Google आज, 20 मार्च, 2021 को कलरफुल डूडल के साथ वसंत के मौसम का जश्न मना रहा है। उत्तरी गोलार्ध में स्प्रिंग सीजन 20 मार्च से शुरू होता है और 21 जून तक रहता है। वसंत का पहला दिन और सूरज दक्षिणी से उत्तरी गोलार्ध में जाने वाले भूमध्य रेखा को पार करेगा। वसंत विषुव तब होता है जब सूर्य सीधे भूमध्य रेखा के अनुरूप होता है। दिन उत्तर में वसंत की शुरुआत के रूप में चिह्नित करता है क्योंकि दिन के उजाले में जून में गर्मियों में संक्रांति तक लंबे समय तक जारी रहता है, जबकि दक्षिण में, शरद ऋतु का मौसम शुरू होता है।
वसंत के मौसम का जश्न मनाने के लिए, Google ने प्रकृति के जीवंत रंगों जैसे नीले, हरे, लाल, नारंगी, पीले, गुलाबी और हरे रंग का एक सुंदर डूडल बनाया है। यह खिलते हुए फूलों, मधुमक्खियों और पत्तियों और एक एनिमेटेड जानवर के साथ है जो एक हाथी जैसा दिखता है। जो वसंत में हाइबरनेशन से निकलता है।
Highlights
खगोल विज्ञान के अनुसार, दिन वह समय होता है जब सूर्य का प्रकाश बिना किसी स्थानीय अवरोध के सीधा जमीन पर पहुंचता है। विषुव के दिन सूर्य का केंद्र धरती की हर जगह पर क्षितिज के ऊपर और नीचे बराबर समय बिताता है।
इक्विनॉक्स के दिन सूरज सीधा पूरब से निकलता है और सीधा पश्चिम में अस्त होता है। साल में बाकी के दिन सूरज ठीक पूरब से नहीं निकलता है। इस प्रकार साल में दो बार इक्विनॉक्स होता है। एक मार्च महीने में और दूसरा सितंबर महीने में।
मार्च इक्विनॉक्स तक होता है जब सूरज आकाशीय भूमध्य रेखा को दक्षिण से उत्तर की ओर पार करता है- ये पृथ्वी के भूमध्य रेखा के ऊपर आकाश में एक काल्पनिक लाइन होती है। जबकि सितंबर में ठीक इसका उल्टा होता है।
भारत में इस खखोलीय घटना को वसंत विषुव के साथ-साथ वसंत संपात भी कहा जाता है। आज के दिन से सूर्य धीरे-धीरे उत्तरी गोलार्द्ध की ओर जाने लगता है जिससे दिन की अवधि बड़ी और रातें छोटी होने लगती है।
वसंत विषुव नाम की परिघटना साल में दो बार होती है। एक बार वसंत ऋतु की शुरुआत में और दूसरा पतझड़ के शुरू होने पर। उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत विषुव 20 मार्च के आसपास होता है। यही परिघटना 23 सितंबर के आस-पास दोहराई जाती है।
भारत में विभिन्न प्रकार के कैलेंडर प्रचलित हैं। उत्तरी भारत में विक्रम सम्वत, नेपाली कैलेंडर, मलायलम कैलेंडर, तमिल कैलेंडर, बंगाली कैलेंडर इस्तेमाल होते हैं। शैलवाहन कैलेंडर का इस्तेमाल दक्षिणी भारत में होता है। हिंदू कैलेंडर का एक पुराना रूप श्रीलंका, थाइलैंड, लाओस, म्यांमार जैसे देशों में प्रचलित है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर को अंतरराष्ट्रीय मानक माना जाता है। नया साल 1 जनवरी से शुरू होता है। यह पूरी तरह से सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के चक्कर लगाने पर आधारित है। इस कैलेंडर के एक वर्ष में 365.2425 दिन होते हैं, जबकि सूर्य वर्ष में 365.2422 दिन होते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर, मध्य काल में इस्तेमाल होते रहे जूलियन कैलेंडर का परिष्कृति रूप है।
धरती से सूरज रोशनी के एक बिंदु की बजाय एक डिस्क (वलय) जैसा दिखता है। जब सूर्य का किनारा क्षितिज के नीचे होता है, तो उसका ऊपरी भाग दिखाई पड़ रहा होता है। सूर्योदय तब होता है जब पूर्वी क्षितिज पर सूर्य की डिस्क का ऊपरी हिस्सा दिखाई देता है। इस वक्त भी, डिस्क का केंद्र क्षितिज के नीचे होता है।
खगोल विज्ञान के अनुसार, दिन वह समय होता है जब सूर्य का प्रकाश बिना किसी स्थानीय अवरोध के सीधा जमीन पर पहुंचता है। विषुव के दिन सूर्य का केंद्र धरती की हर जगह पर क्षितिज के ऊपर और नीचे बराबर समय बिताता है।
चैत्र (21 या 22 मार्च), वैशाख (21 अप्रैल), ज्येष्ठ (22 मई), आषाढ़ (22 जून), श्रावण (23 जुलाई), भाद्र (23 अगस्त), अश्विन (23 सितंबर), कार्तिक (23 अक्टूबर), मार्गशीर्ष (22 नवंबर), पौष (22 दिसंबर), माघ (21 जनवरी), फाल्गुन (20 फरवरी)
भारत के राष्ट्रीय कैलेंडर के अनुसार, नया साल वसंत ऋतु के साथ ही शुरू होता है। सामान्यत: 22 मार्च को चैत्र का महीना शुरू होता है तब इस माह में 30 दिन होते हैं। जबकि लीप ईयर में यह महीना 21 मार्च से शुरू हो जाता है, उस साल 31 दिन का माह होता है।
मार्च में पड़ने वाले वसंत विषुव को उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत ऋतु की शुरुआत, शीत ऋतु के अंत के तौर पर देखा जाता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इसे गर्मी के मौसम का अंत माना जाता है। खगोल विज्ञान के लिहाज से देखें तो यह समय कैलेंडर्स तय करने में अहम भूमिका निभाता है।
Spring Equinox यानी वसंत विषुव से संचार सैटेलाइट्स की कार्यप्रणाली कुछ देर के लिए बाधित हो जाती है। सारे भू-स्थैतिक सैटेलाइटट्स के साथ कुछदिन ऐसा होता है जब धरती के सापेक्ष सैटेलाइट के ठीक पीछे सूरज चला जाता है। सूरज की अपार ऊर्जा धरती के रिसेप्शन सेंटर्स के काम में खलल डालती है। यह प्रभाव कुछ मिनटों से लेकर घंटों तक बरकरार रह सकता है।
दुनिया की अधिकतर जगहें ऐसा टाइमजोन इस्तेमाल करती हैं तो स्थानीय सौर समय से मिनटों या घंटों आगे-पीछे होता है। सूर्य की परिक्रमा कर रही पृथ्वी की कक्षीय गति के चलते भी दिन की लंबाई प्रभावित होती है। सूर्योदय और सूर्यास्त को सामान्य तौर पर सोलर डिस्क के ऊपरी हिस्से से परिभाषित किया जाता है, न कि केंद्र से।
धरती का वातावरण सूरज की रोशनी को परावर्तित करता है। इसी की वजह से लोगों को सूरज की रोशनी पहले दिखती और क्षितिज पर सूर्योदय बाद में। इसके चलते भूमध्य रेखा पर दिन, रात के मुकाबले 14 मिनट लंबे होते हैं। सूर्यास्त और सूर्योदय का समय देखने वाले की लोकेशन के हिसाब से बदलता रहता है।
कैलेंडर्स में इसी बदलाव की वजह से पोप ग्रेगरी XIII ने आधुनिक ग्रेगोरियन कैलेंडर बनाया। इस में लीप ईयर का प्रावधान था। खगोलशास्त्रियों ने कैलेंडर में कुछ बदलाव किए ताकि विषुव 19 से 21 मार्च (यूरोप में) के बीच पड़े, पर 22 मार्च को कभी नहीं।
जब जूलियस सीजर ने 45 ईसापूर्व जूलियन कैलेंडर लागू किया तो उसने Spring Equinox के लिए 25 मार्च की तारीख तय की थी। भारतीय और पर्शियन कैलेंडर्स में यह पहले से ही साल का पहला दिन था। चूंकि जूलियन साल, ट्रॉपिकल साल से 11.3 मिनट लंबा होता है, ऐसे में Equinox की तारीख पहले होती चली गई। 300 AD में Spring Equinox 21 मार्च को पड़ा था और 1500 AD आते-आते यह 11 मार्च तक आ गया।