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संबंधों की संवेदना

भारतीयों की दुनिया काफी तेजी से बदल रही है। इसीलिए भारतीय संबंधों का परंपरागत स्वरूप भी आज काफी संकट की स्थिति में आ गया है।

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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो- इंडियन एक्‍सप्रेस)।

सदाशिव श्रोत्रिय

आज लोगों की व्यस्तता बढ़ गई है और फुर्सत का अभाव पैदा हो गया है। संबंधियों के बीच भौतिक दूरियां बढ़ती जा रही हैं। मोबाइल क्रांति और सोशल मीडिया ने प्रत्यक्ष मगर आभासी मिलन के शक्तिशाली विकल्प उपलब्ध करवा दिए हैं। किसी बड़े शहर में रहने वाले रिश्तेदार और मित्र भी अब महीनों तक एक दूसरे से सीधे नहीं मिल पाते।

रोजगार की खोज में भीलवाड़ा का युवक जाकर बंगलुरु में रहने लगता है और कभी-कभी तो देश की सरहद पार कर किसी दूसरे देश पहुंच जाता है और वहीं का नागरिक हो जाता है। इतनी दूरी से किसी के लिए अपने संबंधों और संबंधियों की परवाह भला कैसे संभव है? हर व्यक्ति आज एक ओर मेहनत से बचना चाहता है तो दूसरी ओर रातोरात करोड़पति हो जाना चाहता है। हमारे समाज की आज की अनेक विकृतियों का मूल इन नई प्रवृत्तियों में ढूंढ़ा जा सकता है।

संबंधों का निर्वाह व्यक्ति से दूसरों के काम आने और उनके लिए कुछ कष्ट उठाने की अपेक्षा रखता है। जो दूसरों द्वारा किए गए उपकार के लिए कृतज्ञता महसूस करते हैं, केवल उन्हीं से संबंधों के निर्वाह की उम्मीद की जा सकती है। जो बच्चे अपने माता-पिता द्वारा उनके लालन-पालन के लिए उठाए गए कष्टों को यह कह कर भुला देते हैं कि जब उन्होंने हमें पैदा किया, तब वह कष्ट तो उन्हें उठाना ही था। उन बच्चों से कोई माता-पिता अपनी वृद्धावस्था में किसी आलंबन की अपेक्षा नहीं रख सकते।

एक समय वह था जब लोगों के बहुत से काम अन्य लोगों की सहायता के बिना हो ही नहीं सकते थे। आज पैसे से उपलब्ध अनेक साधनों ने उस तरह की अनिवार्य निर्भरता का अंत कर दिया है। इसीलिए अब अन्य बातों की परवाह न करते हुए अधिकाधिक पैसा कमाना ही व्यक्ति को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लगने लगा है।

किसी के प्रति कृतज्ञता की अभिव्यक्ति भी आजकल लोग उसके लिए पैसा खर्च करके ही कर देते हैं। माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों की इतिश्री आजकल बहुत-सी संतानें उनके इलाज या उनके लिए जरूरी साधन जुटाने के लिए पैसा खर्च करके कर देती हैं। लेकिन वृद्धावस्था में लोगों को जिस प्रकार के भावनात्मक आलंबन की आवश्यकता होती है, वह पैसे से नहीं मिलता।

सार्वजनिक संबंधों पर विचार किया जाए तो हम पाते हैं कि किसी व्यक्ति को दिए जाने वाले महत्त्व और सम्मान के पीछे भी एक सामूहिक कृतज्ञता-भाव रहता है। बुद्ध या महावीर को दिए जाने वाले आदर के पीछे कहीं न कहीं लोगों का वह सामूहिक कृतज्ञता भाव है जो वे इन महापुरुषों की तपस्या द्वारा अर्जित उस ज्ञान के लिए महसूस करते हैं, जिसे उन्होंने उनके मार्गदर्शन के लिए वितरित किया।

संबंधों की दृढ़ता में निस्वार्थता की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है। जब आपसी संबंधों में स्वार्थ की बू आने लगती है, तब उनमें निश्चय ही खटास पैदा हो जाती है। स्वस्थ संबंध वही होता है, जिसमें दो व्यक्तियों की निकटता आनंद और भावनात्मक उष्णता का संचार करती हो। यह तभी संभव है, जब ये व्यक्ति एक दूसरे से अपने लिए कुछ करवाने के बजाय एक दूसरे के लिए कुछ करने में खुशी महसूस करें। आपसी संबंधों की गरमाहट और मधुरता को दिल से महसूस करने वालों की संख्या अब तेजी से घट रही है, पर जो लोग उसका मूल्य समझते हैं, वे आज भी उनके निर्वाह का प्रयत्न करते हैं और उसके लिए आवश्यक कष्ट उठाने को तैयार रहते हैं।

परिवार या समाज में पहले हर संबंधी की भूमिका पूर्व-निर्धारित रहती थी। लोग यह मान कर चलते थे कि अगर कोई किसी का भाई या शिष्य या पड़ोसी है तो वह उसके प्रति अपने अमुक नैतिक कर्तव्य का पालन तो करेगा ही। जाति, धर्म और पारिवारिक-सामाजिक परंपराएं इन नैतिक कर्तव्यों को परिभाषित भी करती रहती थीं।

आज की धर्मनिरपेक्षता और सार्वभौमिकता ने कर्तव्य-विमुख होने के लिए किसी अन्य धर्म या अन्य देश की प्रथाओं के हवाले को भी लोगों के लिए संभव बना दिया है। संबंधों का मामला दोतरफा रहता है। बढ़ती आत्मपरकता के आज के समय में कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो दूसरों का एहसान तो आसानी से ले लें पर जो दूसरों के लिए कुछ करने की जरूरत जरा भी न समझें। उनकी तमाम होशियारी के बावजूद ऐसे लोगों के इरादों की पोल खुल ही जाती है।

दरअसल, संबंधों के निर्वाह में आज पैसे की भूमिका प्रमुख होती जा रही है। आज का बच्चा माता-पिता के अपने प्रति प्रेम को उस पैसे से मापता है, जो उन्होंने उसके जन्मदिन की पार्टी पर खर्च किया। आज वही दादा पोते को अधिक सगा लगता है जो उसे विदेश में पढ़ाई के लिए अपने पास से लाखों रुपए देने को तैयार हो जाए।

महंगे वस्त्राभूषण, महंगे होटल, महंगे उपहार ही आज संबंधों में घनिष्ठता का पर्याय बनते जा रहे हैं। संबंधों के निर्वाह का ताल्लुक प्रमुख रूप से व्यक्तियों की संवेदनशीलता और उनके संबंधों की सच्चाई और गहराई से है। इसी कारण कई बार मुंहबोले रिश्तों में संबंधों का निर्वाह रक्त-संबंधियों से भी अधिक घनिष्ठता और आत्मीयता के साथ देखा जा सकता है।

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First published on: 21-02-2023 at 04:50 IST
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