योगेश कुमार गोयल
प्लास्टिक का प्रदूषण बेहद खतरनाक इसलिए है, क्योंकि इसके कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि ये बड़ी आसानी से रक्त के जरिए शरीर में पहुंच सकते हैं। सूक्ष्म प्लास्टिक के बढ़ते खतरे को इसी से समझा जा सकता है कि यह अब पृथ्वी पर हर जगह मौजूद है। दुनिया के सबसे ऊंचे ग्लेशियर हों या सबसे गहरी समुद्री खाइयां, हर जगह इसकी मौजूदगी है।
विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि प्लास्टिक के अत्यंत सूक्ष्म कण मानव शरीर के लिए जानलेवा बनते जा रहे हैं। अब पहली बार वैज्ञानिकों को संवहनी ऊतकों में भी माइक्रो प्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला है, जिससे स्पष्ट होता है कि ये महीन कण रक्त वाहिकाओं के माध्यम से मानव ऊतक में प्रवेश कर सकते हैं। हालांकि इससे पहले प्लास्टिक के महीन कण रक्त तथा इंसानी फेफड़ों के अंदर काफी गहराई में पाए जा चुके हैं।
अब पेंट तथा भोजन की डिब्बाबंदी में इस्तेमाल होने वाले माइक्रो प्लास्टिक के कणों का इंसानी शिराओं में मिलना यह स्पष्ट करता है कि वातावरण में बढ़ता इसका जहर हमारी नसों तक में घुल चुका है। कुछ समय पहले अजन्मे शिशुओं के गर्भनाल में माइक्रो प्लास्टिक होने का पता चला था। अब नसों में इसका पाया जाना गंभीर चिंता का विषय है।
हाल के एक अध्ययन में दावा किया गया है कि प्लास्टिक को ज्यादा टिकाऊ बनाने वाले पदार्थ ‘थैलेट’ के संपर्क में आने से खासकर महिलाओं में मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे पहले किसी भी अध्ययन में यह जांच नहीं की गई थी कि माइक्रो प्लास्टिक रक्त वाहिकाओं में घुसपैठ या फिर उसे पार कर सकता है।
उनके मुताबिक नसों में मिले माइक्रो प्लास्टिक के ये कण पांच अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक पालीमर के थे, जो पहले से अलग थे। नसों में इनकी मौजूदगी शिराओं के अंदरूनी हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे ये समय बीतने के साथ अवरुद्ध हो सकती हैं। शोधकर्ताओं को नसों में माइक्रो प्लास्टिक के जो कण मिले, उनमें सिंथेटिक पेंट, वार्निश, इनेमल आदि में इस्तेमाल होने वाला अल्काइड रेसिन, खाद्य पैकेजिंग, शिपिंग बाक्स, बैग, कागज, प्लास्टिक, फायल में चिपकने के लिए उपयोग होने वाला घटक पालीविनाइल एसीटेट (पीवीएसी), प्लास्टिक पालीमर को जोड़ने, लचीले पैकेजिंग उत्पाद बनाने के लिए उपयोग होने वाले तार, केबल, पाइप में परत बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले नायलान और ईवीओएच-ईवीए के भी अंश शामिल थे।
इससे पहले अमेरिकी केमिकल सोसायटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में कुल सैंतालीस नमूनों में मानव अंगों की जांच करने पर वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक संदूषण पाया था। अध्ययन में फेफड़ों, यकृत, प्लीहा तथा गुर्दे से लिए गए नमूनों में माइक्रो प्लास्टिक और नैनो प्लास्टिक मिला था। ‘केमिकल रिसर्च टाक्सिकोलाजी’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से भी पता चला है कि माइक्रो प्लास्टिक शरीर की कोशिकीय कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक प्लास्टिक के ये महीन कण जब सांस या किसी अन्य तरीके से शरीर में पहुंच जाते हैं तो वे कुछ ही दिनों में फेफड़ों की कोशिकाओं, चयापचय और विकास को प्रभावित कर सकते हैं। उसके आकार में भी बदलाव कर सकते हैं। अध्ययन से यह भी पता चला कि टूथपेस्ट, क्रीम से लेकर हमारे भोजन, हवा और पानी तक में मौजूद ये माइक्रो प्लास्टिक बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध को तीस गुना तक बढ़ा सकते है।
‘एनवायरमेंट इंटरनेशनल’ जर्नल में प्रकाशित एक शोध में शोधकर्ता पहले ही यह खुलासा कर चुके हैं कि पृथ्वी के प्रत्येक कोने तक पहुंच चुका माइक्रो प्लास्टिक अजन्मे शिशुओं के गर्भनाल में भी मिला है। यह बेहद चिंता का विषय है, क्योंकि भ्रूण के विकास में गर्भनाल की बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जहां किसी भी जहरीली चीज का पहुंचना ठीक नहीं है। यह शोध रोम के फेटबेनेफ्राटेली हास्पिटल तथा पोलेटेक्निका डेल मार्श यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया था।
इस शोध के दौरान अठारह से चालीस वर्ष आयु की छह स्वस्थ महिलाओं के प्लेसेंटा का विश्लेषण करने पर इनमें से चार में माइक्रो प्लास्टिक कण मिले थे। गर्भावस्था के दौरान ये महिलाएं सामान्य रहीं और इन्होंने सामान्य तरीके से बच्चे को जन्म दिया। माइक्रो प्लास्टिक बच्चे की ओर के नाल के हिस्से और मां की ओर के नाल के हिस्से में पाया गया, साथ ही उस मेंब्रेन में भी मिला, जहां भ्रूण का विकास होता है।
गर्भनाल में मिले माइक्रो प्लास्टिक सिंथेटिक यौगिकों से युक्त थे और इन बारह टुकड़ों में से नौ टुकड़ों में सिंथेटिक पेंट सामग्री थी, जिसका इस्तेमाल क्रीम, मेकअप या नेलपालिश बनाने में होता है और तीन की पहचान पालीप्रोपाइलीन के रूप में की गई थी, जिसका इस्तेमाल प्लास्टिक की बोतलें बनाने में किया जाता है।
हालांकि शोधकर्ताओं ने केवल चार प्रतिशत गर्भनाल का अध्ययन किया था, जिससे स्पष्ट है कि नाल के अंदर माइक्रो प्लास्टिक की संख्या काफी ज्यादा हो सकती थी। अध्ययन के अनुसार नीले, लाल, नारंगी और गुलाबी रंग के माइक्रो प्लास्टिक के जो कण मिले, वे मूल रूप से पैकेजिंग, पेंट या सौंदर्य प्रसाधन से नाल तक पहुंचे थे। दस माइक्रोन तक के ये सभी माइक्रो प्लास्टिक आसानी से रक्त के रास्ते बच्चे के शरीर में जा सकते थे। शोधकर्ताओं के मुताबिक ये कण मां की सांस और मुंह के जरिए ही भ्रूण में पहुंचे होंगे।
माइक्रो प्लास्टिक के कणों में पैलेडियम, क्रोमियम, कैडमियम जैसी जहरीली भारी धातुएं शामिल होती हैं। प्लास्टिक का यह प्रदूषण बेहद खतरनाक इसलिए है, क्योंकि इसके कण इतने सूक्ष्म होते हैं, जिन्हें सामान्य आंखों से देख पाना असंभव होता है। ये बड़ी आसानी से रक्त के जरिए शरीर में पहुंच सकते हैं। माइक्रो प्लास्टिक के बढ़ते खतरे को इसी से समझा जा सकता है कि यह अब पृथ्वी पर हर जगह मौजूद है।
दुनिया के सबसे ऊंचे ग्लेशियर हों या सबसे गहरी समुद्री खाइयां, हर जगह इसकी मौजूदगी है। कुछ समय पहले एक शोध में यह तथ्य सामने आया था कि वर्ष भर में हर मनुष्य में करीब दस हजार माइक्रो या नैनो प्लास्टिक के टुकड़े भोजन या पेय पदार्थों के जरिए या सांस के माध्यम से अनजाने में ही शरीर के भीतर पहुंच जाते हैं।
एक शोध में पाया गया कि भोजन की एक बड़ी थाली में औसतन प्लास्टिक के 114 सूक्ष्म कण होते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में एक व्यक्ति प्रति वर्ष इसी प्रकार भोजन के जरिए प्लास्टिक के 68415 सूक्ष्म कण निगल लेता है। इसका अर्थ है कि हम अपने शरीर की प्रत्येक मांसपेशी के लिए हर साल प्लास्टिक के कम से कम दो सूक्ष्म कण भोजन के जरिए ही निगलते हैं।
वातावरण में तैरते प्लास्टिक के कणों के शरीर में समाने का आंकड़ा इससे अलग है। चाहे दरी हो या कालीन, किसी सामान की पैकेजिंग हो, कुर्सी, सोफा और यहां तक कि हमारे कपड़ों में भी इन कणों की मौजूदगी हो सकती है, जिन्हें हम देख नहीं पाते और न चाहते हुए भी ये सांस के जरिए हमारी दैनिक खुराक का हिस्सा बनते रहते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार इनके दुष्प्रभावों के शुरुआती संकेत तो यही हैं कि प्लास्टिक रसायनों या कणों के कारण होने वाली सूजन से पाचन अंगों को नुकसान हो सकता है। उनके अनुसार माइक्रो प्लास्टिक को इंसान के शरीर में जाने से रोकने के लिए सबसे बेहतर और कारगर तरीका यही है कि प्लास्टिक का निर्माण और उपयोग न्यूनतम किया जाए।
शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि लाल और श्वेत रक्त कोशिकाओं के संपर्क में आने के बाद माइक्रो और नैनो प्लास्टिक एक विशेष प्रकार की रासायनिक प्रक्रिया उत्पन्न करते हैं, जिससे दोनों प्रकार की रक्त कोशिकाएं मर जाती हैं और इनके मरने के बाद यह जहर धीरे-धीरे शरीर में आगे बढ़ते हुए अन्य कोशिकाओं को भी मारता जाता है।