टीम इंडिया के स्टार बल्लेबाज और फील्डर सुरेश रैना आज अपना 33वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म आज ही के दिन यानी कि 27 नवंबर को मुरादनगर गाजियाबाद में हुआ था। रैना ने टीम इंडिया के लिए कई ऐतिहासिक मुकाबले खेले हैं लेकिन उनका जीवन भी संघर्ष के दिनों में गुजरा है। एक बार तो उन्हें आत्महत्या तक का ख्याल आया था।
ट्रेन आगरा की तरफ दौड़ी जा रही थी और सुरेश रैना अखबार बिछाकर फर्श पर ही लेटे हुए थे। रात में ठंड से बचने के लिए रैना ने पैड, चेस्ट गार्ड, थाइ गार्ड पहने हुआ था। आगरा क्रिकेट टूर्नामेंट खेलने जा रहे 12-15 साल के और भी बच्चे ट्रेन में सवार थे। देर रात रैना को महसूस हुआ कि उनकी छाती पर कोई बैठा है। जब उन्होंने आंखें खोली तो देखा कि उनके हाथ बंधे हुए हैं और एक मोटा बच्चा उनकी छाती पर बैठकर उनके चेहरे पर पेशाब कर रहा है। काफी मशक्कत के बाद रैना ने उसे एक घूसा मारा और स्टेशन पर रुकी ट्रेन से नीचे गिरा दिया। रैना की उम्र उस वक्त 13 साल थी और लखनऊ स्पोर्ट्स होस्टल में रह रहे थे।
रैना ने ऐसी घटनाओं की वजह से होस्टल छोड़ घर वापस जाने के बारे में भी सोचा। एक बार उनके दिमाग में आत्महत्या करने का भी विचार आया था। रैना अपने कोच के चहेता थे और इसी वजह से उनके हॉस्टल के कुछ एथलीट उनसे जलते थे। कई बार दूध की बाल्टी में घास डाल दिया जाता था। ठंडी रात में तीन बजे ठंडा पानी डाल दिया जाता था। रैना का कहना है कि वे दूध को चुन्नी से छानकर पीते थे। मन करता था उठकर उन्हें पीटें, लेकिन यह भी पता होता था कि अगर एक को मारा तो बाकी के पांच आप पर टूट पड़ेंगे।
एक बार रैना को हॉकी स्टिक से भी पीटा गया था। रैना बताते हैं कि एक साथी को तो इतना पीटा गया कि वह कोमा जैसी स्थिति में पहुंच गया। एक दूसरा डरा हुआ था कि अब उसे पीटा जाएगा तो वह छत से कूदने वाला था। मेरे एक दोस्त नीरज और मैंने मिलकर उसे रोका। हमने उसे बोला कि क्या कर रहा हू तू, सबको मरवा देगा। सब कुछ बंद हो जाएगा। उसके बाद पुलिस वाले रात में गश्त करने लगे। प्रतापगढ़, रायबरेली, गोरखपुर और आजमगढ़ से आने वाले एथलीट अपने साथ रिवाल्वर रखकर सोते थे। रैना एक बार मेरठ की ओर जा रहे ट्रक से कहीं जा रहे थे। ट्रक में और भी कई लोग सवार थे। ड्राइवर ने ट्रक रोकने से मना कर दिया। रैना ने बताया कि मैंने सोचा कि आज कुछ कांड होने वाला है। उन्होंने सोचा कि चिकना लड़का है। लेकिन मेरठ के पास एक टॉल बूथ पर मैं किसी तरह उनके चंगुल से निकलकर भाग गया।
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रैना ने एक साल बाद ही हॉस्टल छोड़ दिया था। फिर रैना के भाई दिनेश ने दोबारा से उन्हें हॉस्टल पहुंचा दिया। हॉस्टल प्रशासन ने उनके भाई को सुरक्षा की पूरी गारंटी दी। रैना दोबारा से हॉस्टल पहुंचे तो उन्होंने अपने गुस्से का इस्तेमाल अपने क्रिकेट प्रदर्शन को सुधारने में किया। रैना बताते हैं कि मेरे पास ज्यादा रुपए नहीं होते थे। पापा की ओर से 200 रुपए का मनी ऑर्डर आता था। हम लोग उससे ही समोसा और बिस्कुट खाते थे। मेरे वो दिन बहुत ही मुश्किल भरे थे। लेकिन धीरे-धीरे लोगों का ध्यान मेरे खेल की ओर जाने लगा। जब हम लोग गांवों में क्रिकेट खेलने जाते थे तो हर कोई मुझे अपनी टीम में शामिल करना चाहता था। मुझे 4-5 छक्के मारने के 200 रुपए मिलते थे। मैंने उन रुपयों से स्पाइक शूज खरीदे थे।
बाद में एयर इंडिया की तरफ से खेलने के लिए रैना के पास ऑफर आया। रैना का कहना है कि इस मौके ने मेरी जिंदगी बदल दी। अगर मैं यूपी में रहता तो छोटे-मोटे गेम खेलकर खत्म हो जाता। 1999 में मुझे एयर इंडिया की तरफ से दस हजार रुपए की स्कॉलरशिप मिली। मैंने आठ हजार रुपए अपने परिवार को भेज दिए। घर पर कॉल करने के लिए एक कॉल के चार रुपए लगते थे, ऐसे में मैं दो मिनट से ज्यादा बात नहीं करता था। इन सब घटनाओं की वजह से मुझे पैसों की कीमत समझ में आ गई।
साल 2003 में रैना इंग्लैंड क्लब क्रिकेट खेलने गए। वहां उन्हें एक सप्ताह क्रिकेट खेलने के 250 पाउंड मिले। बाद में रैना ने साल 2005 में पहली बार भारत की टीम के लिए वनडे मैच खेला। रैना बताते हैं कि सीरिज से पहले कैम्प में महेंद्र सिंह धोनी के साथ रूम शेयर किया था। रैना जमीन पर सोते थे क्योंकि वे बेड यूज नहीं करते थे। धोनी भी जल्द ही उनके साथ नीचे सोने लगे। रैना बताते हैं कि धोनी ने उनके पास आकर कहा कि उन्हें भी बेड पर सोने की आदत नहीं है। एक तरफ धोनी और दूसरी तरफ मैं सोया हुआ था और नीरज पटेल बेड पर पसरे हुए थे। आईपीएल रैना की जिंदगी में दूसरा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। उनके घुटने में चोट आ गई और फिर सर्जरी करवानी पड़ी। रैना का कहना है कि यह मेरे लिए मुश्किल भरा दौर था। मैं डर रहा था कि मेरा करियर खत्म हो गया। उस वक्त मुझे मेरे घर के लोन के 80 लाख रुपए चुकाने थे। लेकिन मैं दोबारा से क्रिकेट खेलने लगा।