बढ़ती महंगाई को लेकर चौतरफा हाहाकार है, मगर इसे रोकने को लेकर सरकार के प्रयास सफल होते नजर नहीं आ रहे। थोक महंगाई बढ़ कर 15.8 फीसद पर पहुंच गई है। तेल की कीमतों पर काबू पाने के प्रयास बेनतीजा साबित हो रहे हैं। सीएनजी की कीमत में फिर से दो रुपए प्रति किलो की बढ़ोतरी करनी पड़ी है। विमान र्इंधन की कीमत में पांच रुपए से अधिक वृद्धि हुई है। काफी समय तक रिजर्व बैंक ने अपनी ब्याज दरों में इसलिए कोई बदलाव नहीं किया, ताकि बाजार में पैसे का प्रवाह कुछ बढ़े।
मगर ऐसा नहीं हुआ, तो उसे ब्याज दरों में परिवर्तन करना पड़ा। उसने रेपो दरों में चालीस आधार अंक की बढ़ोतरी कर दी। इससे बैंकों को कर्ज पर वसूली जाने वाली दरों में बढ़ोतरी का रास्ता खुल गया। कई बैंक अपनी दरों में वृद्धि कर चुके हैं। अभी भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी ब्याज दर में 0.1 फीसद की और बढ़ोतरी कर दी है। उसका मानना कि महंगाई अभी और बढ़ेगी। यानी घर, वाहन आदि के लिए कर्ज लेने वालों पर बोझ कुछ और बढ़ेगा। रसोई गैस की कीमतें आम उपभोक्ता की पहुंच से दूर हो गई हैं। खुदरा महंगाई भी लगातार बढ़ रही है, जिससे लोगों को अपने रोजमर्रा के खर्चे में कटौती करनी पड़ रही है। पांच खरब की अर्थव्यवस्था बनाने का दम भरने वाली सरकार के सामने अब महंगाई पर काबू पाने का कोई उपाय भी नजर नहीं आ रहा।
महंगाई का गणित कई चीजों पर निर्भर करता है। उसे किसी एक सूत्र को पकड़ कर नहीं साधा जा सकता। इसमें र्इंधन की बढ़ती कीमतें बड़ी भूमिका निभा रही हैं। इसका सीधा असर उत्पादन लागत पर पड़ रहा है। ढुलाई महंगी होने से उभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते वस्तुओं की कीमतें कई गुना बढ़ जाती हैं। जब वस्तु की कीमत बढ़ती है, तो उसी के अनुसार उस पर लगने वाले करों में भी वृद्धि हो जाती है। इसी तरह हवाई यात्रा और निजी तथा सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करने वालों का दैनिक खर्च बढ़ जाता है।
मगर सरकार तेल की कीमत को काबू में नहीं कर पा रही। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अपील की कि वे वैट में कटौती करें, ताकि उपभोक्ता को कुछ राहत मिल सके। मगर केंद्र सरकार कई साल से जो तेल पर ऊंचा उत्पादन शुल्क वसूल रही है, उसमें कटौती की बात नहीं की जा रही। इस वक्त पेट्रोल पर करीब छब्बीस रुपए उत्पादन शुल्क वसूला जा रहा है। यह ठीक है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ी हुई है, जिसका असर हमारे यहां पड़ रहा है। मगर जब महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई है, तो उत्पादन शुल्क घटाने पर विचार क्यों नहीं किया जा सकता।
महंगाई की मार लोगों पर इसलिए भी अधिक पड़ रही है कि उनकी कमाई नहीं बढ़ रही। बहुत सारे लोग अपना रोजी-रोजगार-नौकरी गंवा चुके हैं। बहुतों ने अपने भविष्य निधि से पैसे निकलवा कर भी गुजारा चलाने का प्रयास कर लिया। ऐसे में अगर वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो उनका जीना दूभर हो जाता है। खुद सरकार का दावा है कि वह देश के अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांट रही है। यानी इतने लोगों के हाथ में कोई रोजगार नहीं है। इसलिए सरकार को महंगाई पर काबू पाने के लिए समग्र रूप से विचार करने की जरूरत है।